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IAS Foundation New Batch, Starting from 27th Aug 2024, 06:30 PM | Optional Subject History / Geography | Call: 9555124124

न्यायिक पीठों के गठन संबंधी मुद्दे

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 :  विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान, न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य)

संदर्भ

हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय की एक संवैधानिक पीठ ने सर्वसम्मति से यह निर्णय दिया कि बड़ी बेंच (पीठ) द्वारा दिया गया निर्णय छोटी बेंच के निर्णय पर प्रभावी होगा, भले ही बड़ी बेंच में बहुमत वाले न्यायाधीशों की संख्या कितनी भी हो।

पृठभूमि

  • यह सर्वविदित है कि एक उच्चतर न्यायालयों का निर्णय हमेशा अधीनस्थ न्यायालयों के लिये बाध्यकारी होता है। साथ ही, एक बड़ी बेंच का निर्णय हमेशा उस न्यायालय की एक छोटी बेंच पर प्रभावी होगा। 
  • कानून का यह कसौटी न्यायालयों के निर्णय में स्थिरता और निरंतरता सुनिश्चित करता है। यह सिद्धांत इस धारणा से उत्पन्न हुआ है कि अधिक संख्या वाली बेंच के सही निर्णय पर पहुंचने की संभावना अधिक होती है।

पीठ में संख्या का महत्त्व

  • सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अधिकांश मामलों की सुनवाई और निर्णय दो न्यायाधीशों (डिवीजन बेंच/खण्ड पीठ) या अधिक न्यायाधीशों (फुल बेंच/पूर्ण पीठ) की बेंच द्वारा किया जाता है। 
    • सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ में पाँच या उससे अधिक न्यायाधीश शामिल होते हैं।
  • यह एक स्थापित तथ्य है कि समान संख्या वाली पीठ समकक्ष पीठ के निर्णय को रद्द या उसके निर्णय पर पुनर्विचार नहीं कर सकती है तथा अधिकतम उसके निर्णय की शुद्धता पर संदेह कर सकती है।
  • जब भी समतुल्य पीठों के निर्णयों के मध्य कोई संदेह या संघर्ष होता है, तब इसे भारत के मुख्य न्यायाधीश के पास भेजा जाता है जो बड़ी पीठों का गठन करते हैं। 
  • बड़ी पीठें प्रश्न या निर्णय की सत्यता की जाँच करती हैं और उनके द्वारा व्यक्त बहुमत की राय निर्णय का रूप ले लेती है, जो अधीनस्थ पीठों पर बाध्यकारी होती है।

विसंगतियाँ

  • विसंगति यह है कि बहुमत के फैसले को पूरी बेंच का फैसला मान लिया जाता है, जिसमें असहमति वाले न्यायाधीश के मत भी शामिल होते हैं। 
  • यदि पांच-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सर्वसम्मति से निर्धारित कानून की शुद्धता पर संदेह व्यक्त किया जाता है, तो क्या इसे सात-न्यायाधीशों की पीठ के चार न्यायाधीशों द्वारा खारिज किया जा सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय 

  • सर्वोच्च न्यायालय ने इस मुद्दे पर मत व्यक्त किया कि बड़ी बेंच में योग्यता का महत्त्व होता है न्यायाधीशों की संख्या का नहीं। यदि यह न्यायाधीशों की संख्या तक सीमित हो तब बड़ी बेंच के फैसले पर संदेह किया जा सकता है।
  • न्यायालय ने तर्क दिया कि किसी अध्ययन में बड़े नमूने (बड़ी पीठ) पर आधारित निष्कर्ष के सही होने की संभावना छोटे नमूने (छोटी पीठ) पर आधारित अध्ययन से अधिक होती है। यह सिद्धांत ही इस नियम का मूल कारण है। 

निर्णय की आलोचना 

  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों के गंभीर परिणाम हो सकते हैं, क्योंकि किसी निर्णय की शुद्धता कारणों की बजाए संख्याओं पर आधारित हो जाएगी।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने बड़ी बेंच के दृष्टिकोण की बाध्यकारी प्रकृति को उचित ठहराते हुए तर्क दिया  कि यह मत अधिक न्यायाधीशों द्वारा विचार-विमर्श के बाद आया था। हालाँकि, केवल इस आधार पर कि किसी निर्णय पर अधिक न्यायाधीशों ने विचार किया है, उसे उचित नहीं माना जा सकता है। 

अन्य देशों में स्थिति 

  • अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में इस प्रकार की विसंगति की स्थिति में पूर्व निर्णय पर पुनर्विचार करते समय किसी बड़ी बेंच के स्थान पर न्यायालय में न्यायाधीशों की कुल संख्या द्वारा विचार-विमर्श किया जाता है।
  • ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भारत के समान प्रणाली का पालन करते हैं। इन देशों में पूर्व निर्णय पर पुनर्विचार के पूरे कार्य को एक नाजुक और गंभीर न्यायिक उत्तरदायित्व के रूप में देखा जाता है।

आगे की राह 

  • यदि भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस तरह के संघर्षों से बचना है, तो बड़ी पीठों के गठन के संदर्भ में कुछ बदलावों की आवश्यकता है। 
  • 'बड़ी बेंच' शब्द को निचली बेंच की तुलना में केवल अधिक शक्तिशाली होने के संकुचित अर्थ में नहीं समझा जाए। इसके स्थान पर ब्रेक-ईवन या निचली बेंच की तुलना में अधिक बहुमत के साथ कोरम रखने का प्रयास होना चाहिये। 
  • यदि पांच-न्यायाधीशों के सर्वसम्मत निर्णय को एक बड़ी पीठ को संदर्भित किया जाता है, तो इसे सात के बजाय नौ-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा माना जाना चाहिये ताकि किसी भी मामले में कम-से-कम पांच न्यायाधीशों के बहुमत से निर्णय लिया जा सके।
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