(प्रारंभिक परीक्षा– राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : भारत एवं इसके पड़ोसी संबंध, भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव, अंर्तराष्ट्रीय कानून)
संदर्भ :
हाल ही में, तुर्की ने इस्तांबुल अभिसमय से बाहर होने की घोषणा की है। इसके पश्चात् तुर्की में महिलाओं द्वारा व्यापक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया।
इस्तांबुल अभिसमय (The Istanbul Convention)
- ‘इस्तांबुल अभिसमय’ का प्रारूप यूरोपीय परिषद् द्वारा तैयार किया गया था, जिस पर वर्ष 2011 में तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में हस्ताक्षर हुए। तुर्की इस पर हस्ताक्षर करने वाला पहला देश था। वर्तमान में एक संगठन के रूप में ‘यूरोपीय संघ’ (EU) तथा 45 अन्य यूरोपीय देश इस अभिसमय पर हस्ताक्षर कर चुके हैं।
- यह अभिसमय कम-से-कम 8 हस्ताक्षरकर्ता देशों द्वारा अनुसमर्थित (Ratify) किये जाने के बाद वर्ष 2014 से प्रभावी हुआ था। इसका आधिकारिक नाम ‘द कन्वेंशन ऑन प्रिवेंटिंग एंड कॉम्बैटिंग वॉयलेंस अगेंस्ट विमेन एंड डोमेस्टिक वॉयलेंस’ (the Convention on Preventing and Combating Violence against Women and Domestic Violence) है।
- इसका मौलिक उद्देश्य महिलाओं के विरुद्ध होने वाले लैंगिक भेदभाव को समाप्त करना, पीड़ितों को सुरक्षा प्रदान करना तथा अपराधियों को सज़ा दिलवाना है।
- वस्तुतः यह अभिसमय लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के साथ-साथ महिलाओं को हिंसा के सभी स्वरूपों से सुरक्षा प्रदान करता है। साथ ही, यह कानूनी रूप से बाध्यकारी है तथा राज्यों को अधिकृत करता है कि वे महिलाओं को लैंगिक हिंसा से सुरक्षा प्रदान करें। इस अभिसमय के माध्यम से महिलाओं को न सिर्फ सार्वजनिक स्थल पर होने वाली हिंसा से बल्कि घरेलू हिंसा से भी सुरक्षा प्रदान की गई है।
यूरोपीय परिषद् (Council of Europe)
- गठन : 5 मई, 1949
- मुख्यालय : स्ट्रासबर्ग, फ्राँस
- आधिकारिक भाषा : अंग्रेज़ी व फ्रेंच
- सदस्य : 47 (यूरोपीय संघ के 28 सदस्य देशों सहित)
- पर्यवेक्षक देश : जापान, कनाडा, मेक्सिको और यू.एस.ए.
- उद्देश्य : संपूर्ण यूरोप में मानवाधिकारों का संरक्षण करना, लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था तथा विधि के शासन को स्थापित करना। उल्लेखनीय है कि द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका के पश्चात् ऐसे किसी संगठन की आवश्यकता महसूस की गई थी, जो यूरोप में मानवाधिकारों का संरक्षण करने के साथ शांतिपूर्ण शासन व्यवस्था सुनिश्चित कर सके।
- ध्यातव्य है कि सिर्फ यूरोपीय देश ही यूरोपीय परिषद् के सदस्य नहीं हैं, बल्कि अर्मेनिया तथा अज़रबैजान जैसे कुछ गैर-यूरोपीय देश भी इस संगठन के सदस्य हैं।
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तुर्की के इस अभिसमय से बाहर होने के कारण
- तुर्की सरकार का मत है कि तुर्की में महिलाओं के लिये समानता स्थापित करने तथा उनके प्रति हिंसा व भेदभाव रोकने संबंधी पर्याप्त क़ानून मौजूद हैं। तुर्की सरकार द्वारा निर्मित क़ानून तथा तुर्की की न्याय व्यवस्था महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा करने में सक्षम है। अतः तुर्की को ऐसे किसी अन्य अभिसमय की आवश्यकता नहीं है।
- तुर्की के एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि यह अभिसमय तलाक़ को बढ़ावा देता है तथा पारंपरिक परिवार व्यवस्था को कमज़ोर करता है। चूँकि तुर्की में राष्ट्रपति तैय्यप एर्दोगन के नेतृत्व वाली दक्षिणपंथी सरकार सत्ता में है, ऐसे में, दक्षिणपंथी लोग इस अभिसमय को इस्लामिक संस्कृति के पारंपरिक मूल्यों के विरुद्ध मान रहे हैं।
अन्य प्रमुख बिंदु
- ‘तुर्की’ इस अभिसमय की सदस्यता त्यागने वाला पहला देश नहीं है। इससे पूर्व स्लोवाकिया, पोलैंड, हंगरी जैसे देश इसकी सदस्यता छोड़ने की घोषणा कर चुके हैं।
- चूँकि यह अभिसमय यूरोपीय परिषद् के सदस्य देशों के लिये ही उपलब्ध है, अतः स्वाभाविक रूप से भारत इसका सदस्य नहीं है।