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आईटी नियम बनाम प्रामाणिक जानकारी का अधिकार

(मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।)

संदर्भ 

हाल ही में, मुंबई उच्च न्यायालय ने संशोधित आईटी नियम, 2023 को रद्द करने का निर्णय दिया है। ये नियम केंद्र सरकार को गलत सूचनाओं की निगरानी के लिए एक तथ्य-जांच इकाई स्थापित करने की अनुमति देते थे।

संशोधित आईटी नियम, 2023 

  • संशोधित नियमों के तहत केंद्र सरकार को सोशल मीडिया पर सरकार और उसके प्रतिष्ठानों के संबंध में फर्जी, झूठी और भ्रामक सूचनाओं की पहचान करने के लिए एक तथ्य जांच इकाई (Fact Check Unit) स्थापित करने का अधिकार दिया गया था।
  • 6 अप्रैल 2023 को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने पत्र सूचना कार्यालय के तहत फैक्ट चेक यूनिट को ऐसी सामग्री की पहचान करने के लिए प्राधिकारी के रूप में नामित किया गया था। 
  • नए आईटी नियमों के तहत यह फैक्ट चेक यूनिट सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में केंद्र सरकार कार्यों के संदर्भ में, किसी भी सामग्री/समाचार के ‘फर्जी, गलत या भ्रामक’ होने की पहचान करके उसे हटाने के लिए कह सकती है।
  • यदि सोशल मीडिया मध्यस्थ फैक्ट चेक यूनिट के निर्देशों का पालन करने में विफल रहते हैं, तो उन्हें सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 79 के तहत मिलने वाले संरक्षण से वंचित किया जा सकता है। 

 उच्च न्यायालय के निर्णय के प्रमुख बिंदु 

  • मौलिक अधिकार का उल्लंघन : मुंबई उच्च न्यायालय ने संशोधित आईटी नियम 2023 को इस आधार पर रद्द कर दिया कि वे संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 19 (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और 19(1)(जी) (किसी भी पेशे को अपनाने की स्वतंत्रता) का उल्लंघन करते हैं।
  • अस्पष्ट और भ्रामक शब्द : उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा गया है कि ‘फर्जी, झूठी और भ्रामक’ जैसे शब्द अस्पष्ट और अतिव्यापक हैं। यह सुनिश्चित करना राज्य का कार्य नहीं है कि नागरिकों को केवल ‘सत्य’ जानकारी ही मिले।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नकारात्मक प्रभाव : फैसले में कहा गया है कि फैक्ट चेक यूनिट के निर्देशों के गैर-अनुपालन में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों/मध्यस्थों के लिए मिलने वाले संरक्षण को समाप्त करने का प्रावधान, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
  • फैक्ट चेक यूनिट की व्यापक शक्तियां : फैसले में फैक्ट चेक यूनिट की शक्तियों को अतिक्रमणकारी बताया गया है और कहा गया है कि राज्य द्वारा भाषण को सत्य या असत्य के रूप में वर्गीकृत करना तथा उसे प्रकाशित न करने के लिए बाध्य करना, सेंसरशिप के समान है।

आगे की राह 

  • सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप : कुणाल कामरा बनाम भारत संघ (2023) मामले में मुंबई उच्च न्यायालय के फैसले ने संशोधित आईटी नियमों के तहत तथ्य जाँच इकाइयों की स्थापना को असंवैधानिक माना है। 
    • सर्वोच्च न्यायालय को सूचनाओं की प्रमाणिकता और आईटी नियमों की अन्य चिंताओं को शामिल पर अंतिम फैसला सुनाना चाहिए, जैसे कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिए शिकायत निवारण और अनुपालन तंत्र स्थापित करना।
  • अधिक पारदर्शी और सहभागी प्रक्रिया को अपनाया जाना : सरकार को नागरिक समाज, मीडिया संगठनों और अन्य हितधारकों के साथ मिलकर काम करना चाहिए ताकि सूचनाओं की प्रमाणिकता के लिए अधिक पारदर्शी और भागीदारीपूर्ण प्रक्रिया विकसित की जा सके।
  • एक स्वतंत्र और गैर-पक्षपाती तथ्य-जांच निकाय : सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तथ्य-जाँच करने वाली कोई भी संस्था या व्यक्ति स्वतंत्र और गैर-पक्षपाती हो। साथ ही इस संस्था द्वारा निर्णय लेने के तरीके पर स्पष्ट दिशानिर्देश तैयार किए गए हों।
  • न्यायिक और कानूनी दिशानिर्देशों का अनुपालन : सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों/मध्यस्थों से किसी भी सूचना को हटाने के अनुरोध में श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ या आईटी अधिनियम की धारा 69A के तहत निर्धारित प्रक्रियाओं और सुरक्षा उपायों का अनुपालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
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