रॉलेट एक्ट के तहत पंजाब में दो मशहूर नेताओं डॉक्टर सत्यपाल और डॉ. सैफुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर लिया गया।
इनकी गिरफ्तारी के विरोध में कई प्रदर्शन हुए और कई रैलियां भी निकाली गईं। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने अमृतसर में मार्शल लॉ लागू कर दिया और सभी सार्वजनिक सभाओं और रैलियों पर रोक लगा दी।
13 अप्रैल, 1919 को बैशाखी के दिन, सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल की गिरफ्तारी तथा रॉलेट एक्ट का विरोध करने के लिये जलियाँवाला बाग में लगभग 10,000 पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की भीड़ जमा हुई।
ब्रिगेडियर जनरल डायर ने अपने सैनिकों के साथ घटनास्थल पर पहुँचकर सभा को घेर लिया और वहाँ से बाहर जाने के एकमात्र मार्ग को अवरुद्ध कर अपने सिपाहियों को प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दिया।
सरकारी अनुमानों के अनुसार, इस हत्याकांड में लगभग 400 लोग मारे गए और 1200 लोग घायल हुए।
जलियाँवाला बाग हत्याकांड के विरोध में रवींद्रनाथ टैगोर ने नाइटहुड कीउपाधि को त्याग दिया।
महात्मा गांधी ने कैसर-ए-हिंद की उपाधि वापस कर दी, जिसे बोअर युद्ध के दौरान अंग्रेज़ों द्वारा दिया गया था।
वायसराय की कार्यकारिणी परिषद के भारतीय सदस्य शंकर नायर ने इस हत्याकाण्ड के विरोध में कार्यकारिणी परिषद से इस्तीफा दे दिया।
इस हत्याकांड की सब जगह निंदा हुई, परन्तु 'ब्रिटिश हाउस ऑफ़ लाडर्स' में जनरल डायर की प्रशंसा की गई।
14 अक्तूबर, 1919 को भारत सरकार ने जलियाँवाला बाग हत्याकांड की जाँच करने के लिए डिसऑर्डर इन्क्वायरी कमेटी (Disorders Inquiry Committee) के गठन की घोषणा की, जिसमें भारतीय सदस्य भी शामिल थे।
इस समिति के अध्यक्ष लॉर्ड विलियम हंटर थे, जिसके कारण इसे हंटर कमीशन भी कहा जाता है।
मार्च 1920 में प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट में इस समिति ने सर्वसम्मति से डायर के कृत्यों की निंदा की और उसे अपने पद से इस्तीफा देने का निर्देश दिया।
भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस ने भी जलियाँवाला बाग हत्याकांड की जाँच करने के लिए अपनी गैर-आधिकारिक समिति नियुक्त की थी, जिसमें मोतीलाल नेहरू, सी. आर. दास, अब्बास तैयब जी, एम. आर. जयकर और महात्मा गांधी को शामिल किया गया था।
रॉलेट एक्ट
रॉलेट एक्ट 10 मार्च 1919 को पारित किया गया।
यह कानून सिडनी रौलेट की अध्यक्षता वाली राजद्रोह समिति की सिफारिशों के आधार पर बनाया गया था।
रॉलेट एक्ट का सरकारी नाम अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम, 1919 (The Anarchical and Revolutionary Crime Act of 1919) था।
इस एक्ट के अनुसार, ब्रिटिश सरकार के पास यह शक्ति थी कि वह बिना ट्रायल चलाए किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती थी या उसे जेल में डाल सकती थी।
इसके अंतर्गत राजद्रोह के मुकद्दमे की सुनवाई के लिए एक अलग न्यायालय स्थापित किया गया तथा मुकद्दमे के फैसले के बाद किसी उच्च न्यायालय में अपील करने का अधिकार भी नहीं था।