(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : आंतरिक सुरक्षा)
संदर्भ
हाल ही में, भारत और अमेरिका के मध्य संपन्न रक्षा प्रौद्योगिकी एवं व्यापार पहल (DTTI) की बैठक में अंतरिक्ष सहयोग को एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में रेखांकित किया गया है।
संयुक्त सैन्याभ्यास
- भारत और अमेरिका ने अक्तूबर माह में उत्तराखंड के औली में संयुक्त सैन्य अभ्यास करने का निर्णय लिया है।
- उल्लेखनीय है कि औली 10,000 फीट की ऊंचाई पर और वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) से लगभग 95 किमी. की दूरी पर स्थित है।
भारत की स्थिति
इसरो के प्रयास
- ऐतिहासिक रूप से भारत की अंतरिक्ष संबंधी सभी गतिविधियों का संचालन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा किया जाता रहा है।
- वर्ष 2019 में मिशन शक्ति के तहत उपग्रह-रोधी (ASAT) मिसाइल के सफल परीक्षण ने भारत के अंतरिक्ष स्थिति में व्यापक परिवर्तन किया।
- इसी वर्ष भारत ने चीन से खतरों के बीच अपने पहले अंतरिक्ष युद्धाभ्यास ‘इंडस्पेसएक्स’ (IndSpaceX) का आयोजन किया था।
नई एजेंसियों की स्थापना
- भारत ने तीनों सेनाओं के लिये रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (DSA) की स्थापना की है। इससे अंतरिक्ष क्षेत्र में सैन्य मामले और नागरिक मामले पूर्णतया पृथक हो गए हैं।
- साथ ही, सरकार ने रक्षा अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी (DSRA) की भी स्थापना की है जिसका उद्देश्य डी.एस.ए. के लिये अंतरिक्ष हथियारों का विकास करना है।
- सैन्य मामलों में जल, थल, वायु और साइबर के समान ही अंतरिक्ष क्षेत्र को महत्वपूर्ण माना जाता है।
अमेरिका का अंतरिक्ष सैन्य क्षेत्र
- वर्ष 2019 में अमेरिका ने वायु सेना विभाग के अंतर्गत अंतरिक्ष बल की स्थापना की थी।
- उस समय अमेरिका अंतरिक्ष बल से सुसज्जित एकमात्र राष्ट्र बन गया था। एक सैन्य क्षेत्र के रूप में अंतरिक्ष की महत्ता एक सर्वमान्य तथ्य है।
भारत-अमेरिका संयुक्त सैन्य अभ्यास
- भारत और अमेरिका ने आज तक संयुक्त अंतरिक्ष सैन्य अभ्यास नहीं किया है, जबकि दोनों की चिंताएँ सामान हैं।
- इस प्रकार के अभ्यास क्वाड के विस्तार, मृतप्राय डी.टी.टी.आई. में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने और विरोधियों को कड़ा संदेश भेजने में सहायक होगा।
- दोनों राष्ट्र संयुक्त उपग्रह-रोधी मिसाइल परीक्षण के माध्यम से अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर सकते हैं। इससे न तो अंतरिक्ष मलबा उत्पन्न होगा और न ही ये अमेरिका द्वारा अंतरिक्ष प्रतिबंधों की सूची में शामिल है।
अंतरिक्ष सैन्याभ्यास के महत्व
- यह दोनों राष्ट्रों के मध्य अन्य अंतरिक्ष सहयोग, जैसे- निर्देशित ऊर्जा हथियार, समागम स्थल एवं सामीप्य संचालन (RPOs), सह-कक्षीय उपग्रह रोधी प्रक्षेपण आदि की एकीकृत शुरुआत के लिये मील का पत्थर सिद्ध होगा।
- अंतरिक्ष संपतियां, यथा- जी.पी.एस. (GPS) प्रणाली, दूरसंचार नेटवर्क, मिसाइल पूर्व चेतावनी प्रणाली, मौसम पूर्वानुमान प्रणाली आदि आधुनिक अर्थव्यवस्था के आधार हैं।
अंतरिक्ष सैन्याभ्यास संबंधी दिशा-निर्देश
- वर्तमान में इस संबंध में कोई सर्वमान्य नियमावली एवं मानदंड स्थापित नहीं हैं अत: भारत और अमेरिका अंतरिक्ष सैन्य सहयोग के विस्तार की बेहतर संभावनाएँ हैं।
- अंतरिक्ष संबंधी सिद्धात अभी विकासशील अवस्था में हैं। हाल ही में अमेरिका ने भागीदार देशों से इस संबंध में नियमों और मानकों को निर्धारित करने का अनुरोध किया है।
- चीन और रूस ने अपनी एक संयुक्त बाध्यकारी संधि का प्रारूप प्रस्तुत किया है।
वैश्विक अंतरिक्ष सैन्य कार्यक्रम
- वर्तमान में विश्व के सभी राष्ट्र अंतरिक्ष से संबंधित सैन्य पक्षों पर कार्यरत है।
- फ्रांस ने अपने पहले अंतरिक्ष सैन्य अभ्यास एस्टरएक्स (ASTERX) का अयोजन वर्ष 2021 में किया।
- चीन वर्ष 2024 तक चन्द्रमा पर स्थायी उपस्थिति के साथ में सिस-लूनर स्पेस (Cis-Lunar space) की दिशा में अग्रसर है। यह भू-तुल्यकालिक कक्षा से परे का क्षेत्र है।
निष्कर्ष
बदलते परिवेश में सिद्धांतों, तकनीकों और निवारण पर नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता है। चीन वर्ष 2049 तक विश्व स्तरीय सेना बनाने की राह पर हैं। भारत को अंतरिक्ष शक्ति बनाने के लिये तार्किक और कल्पनाशील क़दमों की आवश्यकता है।