(प्रारंभिक परीक्षा : भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान, राजनीतिक प्रणाली, पंचायती राज, लोकनीति, अधिकारों संबंधी मुद्दे इत्यादि)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 : भारतीय राजव्यवस्था, संवैधानिक ढाँचा एवं संविधान की मुख्य विशेषताएँ)
संदर्भ
- कोविड-19 प्रबंधन से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण मुद्दों, जैसे– ऑक्सीजन, आवश्यक औषधियों की आपूर्ति, लॉकडाउन की घोषणा आदि के संबंध में उच्चतम न्यायालय ने ‘स्वतः संज्ञान’ लिया। विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा इन मामलों की सुनवाई किये जाने को ‘भ्रम की स्थिति उत्पन्न करने’ की भी संज्ञा दी गई थी। भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए विद्यमान स्थिति को लगभग ‘राष्ट्रीय आपातकाल’ के समतुल्य माना तथा इस स्थिति से निपटने के लिये भारत सरकार को एक ‘राष्ट्रीय योजना’ प्रस्तुत करने का आदेश दिया।
न्यायालयों का सीमित दायरा
- सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र में विधायिका व कार्यपालिका की तुलना में न्यायपालिका का दायरा सीमित है। न्यायालय न तो बेहतर स्वास्थ्य ढाँचे का निर्माण कर सकता है, न वह सीधे ऑक्सीजन की आपूर्ति कर सकता है और ना ही वह इसके लिये औपचारिक रूप से बाध्य है।
- सामाजिक अधिकारों से संबंधित मुद्दों को तय करने में न्यायालयों के पास विशेषज्ञता और संसाधनों का भी अभाव है। लेकिन इस संबंध में न्यायालय विद्यमान कानूनों व विनियमों का क्रियान्वयन तथा स्वास्थ्य सेवाओं के आवंटन के संबंध में कार्यपालिका की जवाबदेहिता सुनिश्चित कर सकता है।
न्यायिक सक्रियतावाद की झलक
- उच्चतम न्यायालय ने ‘आवश्यक सेवाओं की आपूर्ति एवं वितरण’ के मामले में स्वतः संज्ञान लिया और कहा कि वह प्रथम दृष्टया, स्वास्थ्य प्राधिकरण को आवश्यक सेवाओं की आपूर्ति एवं वितरण समानतापूर्वक करना चाहिये।
- कोविड-19 काल में दिल्ली, गुजरात, मद्रास तथा बंबई के उच्च न्यायालयों ने सक्रियता दिखाई और ऑक्सीजन आपूर्ति से संबंधित विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई की, जैसे गुजरात उच्च न्यायालय ने रोगियों की जाँच बढ़ाने तथा ऑक्सीजन क्रय करने का आदेश जारी किया। इसके अतिरिक्त, दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी केंद्र सरकार को पर्याप्त ऑक्सीजन आपूर्ति सुनिश्चित करने का आदेश दिया।
- न्यायालय ने राज्यों तथा संघ राज्यक्षेत्रों से पूछा कि ‘वह एकसमान आदेश क्यों न जारी करे?’ साथ ही, न्यायालय ने विभिन्न न्यायालयों में लंबित मामलों को उच्चतम न्यायालय में स्थानांतरित करने के भी संकेत दिये।
- ‘परमानंद कटारा बनाम भारत संघ वाद, 1989’ में मानव जीवन के मूल्य को रेखांकित करते हुए उच्चतम न्यायालय ने निर्धारित किया था कि ‘आपातकालीन चिकित्सा उपचार का अधिकार’ नागरिकों का मूल अधिकार है।
न्यायिक संघवाद
- अनुच्छेद 139क के अनुसार, यदि ऐसे मामले, जिनमें विधि के व्यापक महत्त्व का प्रश्न हो तो उच्चतम न्यायालय स्वप्रेरणा या भारत के महान्यायवादी के आवेदन के आधार पर उच्च न्यायालय या उच्च न्यायालयों में लंबित मामले या मामलों को अपने पास मँगवा सकेगा।
- हालाँकि कुछ वकीलों का दावा है कि हाल के दिनों में कार्यपालिका द्वारा नागरिक स्वतंत्रता पर अंकुश लगाए जाने के परिप्रेक्ष्य में उच्चतम न्यायालय ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है तथा अधिकतर निर्णय ‘आलंकारिक’ हैं।
- विभिन्न उच्च न्यायालयों के बार संगठनों ने उच्च न्यायालय से उच्चतम न्यायालय में मुकदमों के स्थानांतरण का विरोध किया है। उच्चतम न्यायालय के इस कदम को कुछ विधि विशेषज्ञ ‘शक्ति के अहंकार’ तथा ‘उच्च न्यायालयों की अवमानना’ की संज्ञा दे रहे हैं।
उच्च न्यायालयों का महत्त्व
- विशेषज्ञों के अनुसार, उच्च न्यायालयों की संवैधानिक योजना को लागू करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। संविधान की सातवीं अनुसूची में ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा चिकित्सालय’ राज्य सूची का विषय है। इन मामलों का समाधान संबंधित उच्च न्यायालय करता है।
- ‘एल. चंद्रकुमार बनाम भारत संघ वाद, 1997’ में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि “उच्च न्यायालय श्रेष्ठ न्यायिक परंपराओं से संपन्न संस्थान हैं और उन्होंने 19वीं सदी से लेकर अब तक लोगों का विश्वास बढ़ाया है।”
- कुछ मामलों में उच्च न्यायालयों की शक्तियाँ उच्चतम न्यायालय से भी व्यापक है, जैसे– अनुच्छेद 226 के अंतर्गत, उच्च न्यायालय मूल अधिकारों के उल्लंघन के अतिरिक्त अन्य किसी मामलों में भी ‘रिट’ जारी कर सकता है, जबकि उच्चतम न्यायालय ऐसा केवल मूल अधिकारों के मामले में ही ऐसा कर सकता है। ‘उड़ीसा राज्य बनाम मदन गोपाल रूंगटा वाद, 1951’ में न्यायालय ने अपने इस निर्णय को पुनः दोहराया था।
निष्कर्ष
न्यायिक लोकतंत्र के सिद्धांत को आधुनिक संघीय प्रणाली के सभी न्यायालयों ने स्वीकार किया है। अतः कहा जा सकता है कि समान न्यायिक आदेश तभी जारी किये जाने चाहियें, जब ऐसा करना अपरिहार्य हो। कोविड-19 से संबंधित मामलों में, देश के उच्च न्यायालयों ने व्यापक न्यायिक ज़िम्मेदारी की भावना से कार्य किया है तथा इसे और भी प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।