(सामान्य अध्ययन , प्रश्न पत्र-2 : भारतीय संविधान-महत्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।)
संदर्भ
कोरोना वायरस की महामारी को फैलने से रोकने के लिए 25 मार्च को पूरे देश में 21 दिनों का लॉकडाउन घोषित किया था। अतः सर्वोच्च न्यायालय ने कोरोना वायरस महामारी का संज्ञान लेते हुए अनुच्छेद 142 के अंतर्गत न्यायिक कार्यवाहियों तथा लोगों को अदालत की सुनवाई में भाग लेने पर लगाए गए प्रतिबंध के सन्दर्भ में कुछ तर्क एवं दिशा-निर्देश दिए हैं।
ध्यातव्य है कि सीनियर एडवोकेट व सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विकास सिंह द्वारा लिखे गए पत्र पर सर्वोच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लिया। पत्र में सुनवाई के लिए तकनीक के प्रयोग का सुझाव दिया गया था।
सर्वोच्च न्यायलय के तर्क
- कोराना वायरस महामारी को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने सोशल डिस्टेंसिंग को आवश्यक बताया।
- न्यायालय द्वारा प्रत्यारोपित प्रतिबंध सोशल डिस्टेंसिंग के मानदंडों के अनुरूप थे और फ़िलहाल संक्रमण को रोकने का इससे उपयुक्त कोई और उपाय नहीं है।
- अतः यह आवश्यक है कि न्यायालय इस महामारी को फैलने में सहायक न बने और महामारी को अपने स्तर पर भी रोकने का भी प्रयास करे।
सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश
- सर्वोच्च न्यायालय ने सभी उच्च न्यायालयों को वीडियो कॉनफ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई करने और सुनवाई के नियम तय करने का अधिकार दिया है।
- इसके अलावा निचली अदालतों को भी वीडियो कॉनफ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई करने का अधिकार दिया है। प्रत्येक राज्य की जिला अदालतों को उच्च न्यायालय द्वारा बताये गये वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के तरीके अपनाने होंगे।
- न्यायालयों को ऐसे वादियों के लिए वीडियो कॉनफ्रेंसिंग की सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए जिनके पास यह नहीं है।
- किसी भी स्थिति में वीडियो कॉनफ्रेंसिंग द्वारा दोनों पक्षों की आपसी सहमति के बिना साक्ष्य दर्ज नहीं किया जाएगा। यदि अदालत में साक्ष्य दर्ज करना आवश्यक है, तो पीठासीन अधिकारी यह सुनिश्चित करेगा कि अदालत में किन्ही दो व्यक्तियों के बीच उचित दूरी बनी रहे जिससे ये सोशल डिस्टेंसिंग के मानदंडों के अनुरूप रहें।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि काम की प्रक्रिया में बदलाव की जरूरत है। ये विवेक नहीं बल्कि कर्तव्य की बात है। यह प्रक्रिया भविष्य में भी लागू हो सकती है।
- नेशनल इन्फॉर्मेटिक्स सेंटर (एन.आई.सी.) अब न्यायालय के आदेश पर सभी वकील, जजों और न्यायालय स्टाफ के लिए दिशानिर्देश तैयार करेगा।
- तकनीकी शिकायतों और उन्हें सुधारने के लिए हेल्पलाइन की स्थापना की जाएगी।
क्या है अनुच्छेद 142
- भारतीय संविधान का यह अनुच्छेद सर्वोच्च न्यायालय के संवैधानिक शक्तियों के प्रतिबंध और सीमाओं के रूप में कार्य करता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यह अनुच्छेद सर्वोच्च न्यायालय के वे विशेषाधिकार हैं जहाँ सार्वजनिक हितों की रक्षा के लिये न्यायपालिका अपनी सीमाओं से आगे बढ़कर निर्णय देती है।
- यह अपने समक्ष लंबित मामलों में पूर्ण न्याय प्रदान करने हेतु आवश्यकता होने पर तदर्थ डिक्री (राजाज्ञा) पारित कर सकती है।
- संविधान में शामिल करते समय अनुच्छेद 142 को इसलिए वरीयता दी गई थी क्योंकि सभी का यह मानना था कि इससे देश के वंचित वर्गों और पर्यावरण का संरक्षण करने में सहायता मिलेगी। अतः जब तक किसी अन्य कानून को लागू नहीं किया जाता तब तक सुप्रीम कोर्ट का आदेश ही सर्वोपरि होगा।
व्यवहारिक रूप में देखा जाए तो कभी-कभी अनुच्छेद 142 के तहत न्यायालय को प्राप्त शक्तियाँ इसे कार्यपालिका एवं विधायिका से सर्वोच्चता प्रदान करती हैं। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने इसका स्पष्टीकरण दिया कि इस अनुच्छेद का उपयोग मौजूदा कानून को प्रतिस्थापित करने के लिये नहीं, बल्कि एक विकल्प के तौर पर किया जा सकता है।
सर्वोच्च न्यायलय द्वारा अनुच्छेद 142 के कुछ उपयोग
- यूनियन कार्बाइड मामला (भोपाल गैस त्रासदी)।
- बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ मामला।
- बाबरी मस्जिद मामला।
- राष्ट्रीय राजमार्गों से लगे हुए शराब के ठेकों को प्रतिबंधित करने का मामला।