(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 संघीय ढाँचे से संबंधित विषय एवं चुनौतियाँ) |
संदर्भ
हाल ही में मणिपुर में पुन: भड़की हिंसा की घटना ने केंद्र-राज्य संबंधों और केंद्र द्वारा आपातकालीन प्रावधानों के उपयोग पर चर्चा को रेखांकित किया है।
भारत की संघीय व्यवस्था
- भारत राज्यों का एक संघ है जिसमें केंद्र और राज्य स्तर पर सरकार के गठन का प्रावधान है।
- भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट बंटवारा करती है।
- इस योजना के तहत, राज्यों में कानून और व्यवस्था बनाए रखना राज्य सरकारों का अधिकार क्षेत्र है।
क्या है आपातकालीन प्रावधान
- भारतीय संविधान में आपातकालीन प्रावधानों का उल्लेख भाग XVIII में किया गया है। इस भाग के अंतर्गत अनुच्छेद 355 और 356 मुख्य रूप से किसी राज्य में सरकार के मामलों से संबंधित हैं।
- अनुच्छेद 355 के अनुसार प्रत्येक राज्य को बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से रक्षा प्रदान करना केंद्र सरकार का दायित्व है।
- यह निर्दिष्ट करता है कि केंद्र को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक राज्य सरकार संविधान के अनुसार काम करे।
- अनुच्छेद 356 केंद्र सरकार को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की अनुमति देता है, यदि राज्य सरकार संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार काम करने में अक्षम है।
- उल्लेखनीय है कि अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में संघीय सरकार के कार्यों में राज्यों की सुरक्षा भी शामिल है, जबकि वहां के संविधानों में राज्य सरकारों को हटाने के प्रावधान नहीं हैं।
आपातकालीन प्रावधानों पर आंबेडकर के विचार
- आंबेडकर ने भारतीय राजनीति के संघीय चरित्र को ध्यान में रखते हुए अनुच्छेद 355 के उद्देश्य को स्पष्ट किया कि यदि केंद्र अनुच्छेद 356 के तहत राज्य के प्रशासन में हस्तक्षेप करना चाहता है, तो यह संविधान द्वारा केंद्र पर लगाए गए किसी दायित्व के तहत होना चाहिए।
- इसलिए अनुच्छेद 356 के किसी भी मनमाने या अनधिकृत उपयोग को रोकने के लिए अनुच्छेद 355 को संविधान में शामिल किया गया था।
- आंबेडकर ने संविधान सभा में अनुच्छेद 355 और 356 को ‘एक मृत पत्र’ कहा था, उनका मानना था कि इन प्रावधानों के उपयोग के आवश्यकता नहीं होगी।
- हालाँकि, कई अवसरों पर केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 356 का प्रयोग किया गया है और राज्यों में बहुमत प्राप्त निर्वाचित सरकारों को अपदस्थ किया है।
- इसके लिए लोकसभा चुनावों में हार से लेकर राज्यों में अपर्याप्त कानून-व्यवस्था तक कई कारणों को आधार बनाया गया
आपातकालीन प्रावधानों पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
- सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णयों द्वारा अनुच्छेद 355 के दायरे में वृद्धि की गई है।
- राजस्थान राज्य बनाम भारत संघ, 1977 : इस वाद में न्यायालय ने अनुच्छेद 355 की संकीर्ण व्याख्या की, जो अनुच्छेद 356 के उपयोग को उचित ठहराती है।
- एस.आर. बोम्मई वाद ,1994: न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 356 को कानून और व्यवस्था के सामान्य विफलता के बजाय केवल संवैधानिक तंत्र के विफल होने की स्थिति में ही लगाया जाना चाहिए।
- न्यायालय ने यह भी माना कि राष्ट्रपति शासन लगाना न्यायिक समीक्षा के अधीन है और इसका राजनीतिक कारणों से दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
आगे की राह
- केंद्र-राज्य संबंधों पर सरकारिया आयोग (1987), संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग (2002), और केंद्र-राज्य संबंधों पर पुंछी आयोग (2010) सभी ने उल्लेख किया है कि अनुच्छेद 355 संघ पर एक कर्तव्य लागू करने के साथ ही उस कर्तव्य के प्रभावी प्रदर्शन के लिए आवश्यक कार्रवाई करने की शक्ति भी प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू करना अत्यंत गंभीर और तात्कालिक परिस्थितियों में अंतिम उपाय के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए।
- मणिपुर में स्थिति गंभीर है। निर्दोष नागरिकों, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा; पुलिस शस्त्रागार से गोला-बारूद की लूट; नागरिकों को निशाना बनाकर ड्रोन एवं मिसाइल हमलों को कानून-व्यवस्था के सामान्य उल्लंघन के रूप में नहीं देखा जा सकता है।
- ऐसे में जल्द से जल्द सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए अनुच्छेद 355 के तहत सभी संभव निर्देशों एवं कार्रवाइयों का पालन किया जाना चाहिए।