(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान) |
संदर्भ
हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने लोकपाल के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें लोकपाल को उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ शिकायतों की जाँच करने की शक्ति प्रदान की गई थी।
हालिया वाद
- शिकायतकर्ता के अनुसार संबंधित न्यायाधीश ने एक निजी कंपनी के पक्ष में फैसला देने के लिए उच्च न्यायालय के एक अन्य न्यायाधीश और एक अतिरिक्त जिला न्यायाधीश से सिफारिश की थी। जिस न्यायाधीश के खिलाफ फैसले को प्रभावित करने का आरोप है, वे पूर्व में संबंधित निजी कंपनी के लिए वकालत कर चुके हैं।
- जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस सूर्यकांत एवं जस्टिस अभय एस ओका की पीठ ने इस संदर्भ में केंद्र सरकार, लोकपाल रजिस्ट्रार तथा शिकायतकर्ता को नोटिस जारी किया है।
- अपने आदेश में उच्चतम न्यायालय के विचारों को संक्षेप में प्रस्तुत करते हुए न्यायालय ने टिप्पणी की कि सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति संविधान के तहत की गई है।
लोकपाल का पक्ष
उच्च न्यायालय के संदर्भ में
- लोकपाल ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के बारे में शिकायतों की जाँच करने या पूछताछ करने के अधिकार के लिए यह तर्क दिया कि भारत में उच्च न्यायालय का गठन ब्रिटिश संसदीय अधिनियमों (भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम, 1861 तथा भारत सरकार अधिनियम, 1935) और ब्रिटिश सम्राट के अधिकार पत्रों द्वारा किया गया था।
- इस आधार पर लोकपाल ने तर्क दिया कि यद्यपि संविधान के अनुच्छेद 214 के अनुसार प्रत्येक राज्य के लिए एक उच्च न्यायालय होगा किंतु संविधान ने उच्च न्यायालयों की स्थापना नहीं की है बल्कि केवल इसके अस्तित्व को ‘आंतरिक रूप से मान्यता दी’ थी।
- लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013 में प्रयुक्त ‘कोई भी व्यक्ति’ शब्द में संसद के अधिनियम द्वारा स्थापित उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी शामिल होंगे, जिनकी जाँच की जा सकती है।
- इस आधार पर लोकपाल ने निष्कर्ष निकाला कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ‘लोक सेवक’ हैं और वे लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के दायरे में आते हैं।
- लोकपाल के अनुसार उच्च न्यायालय के न्यायाधीश लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 की धारा 14 (1) (f) के दायरे में एक व्यक्ति के रूप में जाँच के अंतर्गत आएंगे।
- धारा 14 (1) (f) के अनुसार लोकपाल का अधिकार क्षेत्र किसी भी ऐसे व्यक्ति पर है :
- जो संसद के अधिनियम द्वारा स्थापित या केंद्र सरकार द्वारा पूर्ण या आंशिक रूप से वित्तपोषित या उसके द्वारा नियंत्रित किसी निकाय या बोर्ड या निगम या प्राधिकरण या कंपनी या समाज या ट्रस्ट या स्वायत्त निकाय (चाहे कोई भी नाम हो) का अध्यक्ष या सदस्य या अधिकारी या कर्मचारी है या रहा है।
- लोकपाल ने अपने आदेश में उल्लेख किया है कि लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013 संसद के अधिनियम द्वारा स्थापित न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए स्पष्ट अपवाद प्रदान नहीं करता है।
- इस मामले में विचाराधीन न्यायाधीश संसद के अधिनियम द्वारा पुनर्गठित राज्य के उच्च न्यायालय में कार्यरत थे।
- के. वीरास्वामी बनाम भारत संघ वाद, 1991: लोकपाल ने के. वीरास्वामी बनाम भारत संघ के फैसले में बहुमत के दृष्टिकोण का हवाला दिया। इसके अनुसार, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को लोक सेवक की परिभाषा से बाहर नहीं रखा जा सकता है और वह भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1947 के दायरे में शामिल है।
- हालाँकि, लोकपाल ने यह भी कहा कि वीरस्वामी निर्णय के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श किए बिना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के विरुद्ध कोई आपराधिक मामला ‘पंजीकृत’ नहीं किया जाएगा।
उच्चतम न्यायालय के संदर्भ में
- लोकपाल के अनुसार उच्च न्यायालय के विपरीत उच्चतम न्यायालय की स्थापना संविधान के अनुच्छेद 124 के अनुसार की गई थी।
- इससे पूर्व उच्चतम न्यायालय अस्तित्व में नहीं था।
- इससे पूर्व लोकपाल ने अपने एक निर्णय में घोषणा की थी कि भारत के मुख्य न्यायाधीश सहित उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीश उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
- लोकपाल ने स्पष्ट किया था कि उच्चतम न्यायालय संसद के अधिनियम द्वारा स्थापित या केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित या नियंत्रित कोई ‘संस्था’ नहीं है।
- इसने टिप्पणी की थी कि भारत के मुख्य न्यायाधीश सहित उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के संदर्भ में ‘लोक सेवक’ हो सकते हैं किंतु वे लोकपाल के अधिकार क्षेत्र के प्रति उत्तरदायी नहीं हैं।
केंद्र सरकार का पक्ष
केंद्र का तर्क है कि लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के प्रासंगिक प्रावधानों के अनुसार उच्च न्यायालय के न्यायाधीश कभी भी लोकपाल अधिनियम के दायरे में नहीं आएंगे।