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भारत में न्यायसंगत ऊर्जा परिवर्तन

प्रारंभिक परीक्षा

(समसामयिक घटनाक्रम, ऊर्जा सुरक्षा)

मुख्य परीक्षा

(सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3; समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय; बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि।)

संदर्भ 

हाल ही में, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन अनुसंधान थिंक टैंक आईफॉरेस्ट द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, सतत ऊर्जा सुरक्षा लक्ष्यों की प्राप्ति में कोयले पर निर्भरता कम करने के लिए भारत को अगले 30 वर्षों में 1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक वित्त की आवश्यकता होगी।

हालिया जारी रिपोर्ट के बारे में 

  • रिपोर्ट का शीर्षक : न्यायसंगत परिवर्तन, न्यायसंगत वित्त (Just Transition, Just Finance)
  • जारीकर्ता : iForest (अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण, स्थिरता एवं प्रौद्योगिकी मंच)
  • शोध उद्देश्य : कोयला खदानों और कोयला संयंत्रों को चरणबद्ध तरीके से बंद करने की लागत के साथ-साथ कोयला-निर्भर क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने की लागत का अनुमान लगाने का प्रयास
  • शोध क्षेत्र : शोध क्षेत्र में 4 जिले ‘छत्तीसगढ़ का कोरबा’, ‘झारखंड के बोकारो एवं रामगढ़’ तथा ‘ओडिशा का अंगुल या अनुगुल जिला’ शामिल 

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष 

  • कोयले से दूर जाने के लिए भारत को अगले 30 वर्षों में 1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक की आवश्यकता होगी
  • कोयला कम-से-कम अगले एक दशक तक भारत के ऊर्जा मिश्रण का केंद्रीय हिस्सा बना रहेगा तथा इससे दूर जाना एक बड़ी चुनौती होगी।

‘न्यायसंगत’ ऊर्जा परिवर्तन (संक्रमण)

  • यहां ‘न्यायसंगत’ शब्द से तात्पर्य निम्न-कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर एक न्यायसंगत एवं समावेशी बदलाव से है जो जीवाश्म ईंधन पर निर्भर श्रमिकों एवं समाजों के हितों को ध्यान में रखेगा।
  • भारत वर्तमान में वैश्विक स्तर पर कोयले का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है जिसमें बड़ी संख्या में लोग इस उद्योग में कार्यरत हैं। 
  • जैसे-जैसे भारत वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन ग्रीनहाउस गैस की स्थिति को प्राप्त करने के लिए अपनी अक्षय ऊर्जा क्षमता बढ़ाता है, वैसे-वैसे यह महत्वपूर्ण होगा कि ऐसे लोग पीछे न छूट जाएँ जो अपनी आजीविका के लिए कोयले पर निर्भर हैं। 

न्यायसंगत परिवर्तन से जुड़ी लागत

  • भारत में कोयले पर अत्यधिक निर्भर चार जिलों के आकलन तथा दक्षिण अफ्रीका, जर्मनी एवं पोलैंड में न्यायोचित संक्रमण आर्थिक योजनाओं की समीक्षा के आधार पर इस अध्ययन में 8 व्यापक लागत घटकों का पता लगाया गया है :
    1. खदानों को बंद करने और उन्हें पुनः उपयोग में लाने की लागत
    2. कोयला संयंत्रों को बंद करना
    3. स्वच्छ ऊर्जा के लिए स्थलों को पुनः उपयोग में लाना 
    4. हरित नौकरियों के लिए श्रमिकों को कुशल बनाना
    5. नए व्यवसायों के रूप में आर्थिक विविधीकरण
    6. सामुदायिक समर्थन
    7. हरित ऊर्जा के लिए निवेश 
    8. राज्यों को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए राजस्व प्रतिस्थापन एवं योजना लागत
  • अध्ययन के अनुसार, अगले 30 वर्षों में इन लागतों को पूरा करने के लिए आवश्यक 1 ट्रिलियन डॉलर का लगभग 48% हिस्सा ऊर्जा अवसंरचना के निर्माण के लिए हरित निवेश पर खर्च किया जाएगा, जो कोयला खदानों एवं कोयला आधारित संयंत्रों का स्थान लेगा।

न्यायोचित परिवर्तन के लिए वित्त

  • लागतों को पूरा करने के लिए अनुदान एवं सब्सिडी के माध्यम से सार्वजनिक वित्तपोषण व हरित ऊर्जा संयंत्रों और बुनियादी ढांचे में निजी निवेश के संयोजन की आवश्यकता होगी। 
  • अध्ययन में अनुमान है कि अधिकांश सार्वजनिक वित्तपोषण ‘गैर-ऊर्जा’ लागतों के लिए होगा, जैसे- संक्रमण के दौरान सामुदायिक लचीलेपन का समर्थन करना, नए हरित रोजगार के लिए कोयला श्रमिकों को कुशल बनाना और पुराने कोयला-आधारित उद्योगों की जगह लेने वाले नए व्यवसायों के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करना।
  • भारत में जिला खनिज फाउंडेशन फंड में लगभग 4 बिलियन डॉलर हैं, जो खनिकों से एकत्रित धन से निर्मित है। इस फंड का उपयोग कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) फंड के साथ-साथ कोयला वाले जिलों में नए व्यवसायों का समर्थन करने और समुदायों का समर्थन करने के लिए संसाधन के रूप में किया जा सकता है। 
  • निजी निवेश इस संक्रमण की ‘ऊर्जा लागत’ का अधिकांश हिस्सा कवर करेगा और अधिकांश नई स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं को वित्तपोषित करेगा।

अन्य देशों द्वारा न्यायोचित परिवर्तन (संक्रमण) के लिए उठाए गए कदम

  • विकसित एवं विकासशील दोनों देशों ने कोयले के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से कम करने के लिए कानून अपनाए हैं या अंतर्राष्ट्रीय वित्त पोषण के साथ निवेश योजनाओं का विकल्प चुना है।
    • उदाहरण के लिए, दक्षिण अफ्रीका की जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन इन्वेस्टमेंट प्लान्स के तहत उसे कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से कम करने के लिए यूके, फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका, यूरोपीय संघ, नीदरलैंड एवं डेनमार्क से वित्तीय सहायता मिलेगी। 
  • जर्मनी ने वर्ष 2038 तक कोयला आधारित बिजली को समाप्त करने के लिए कानून बनाया तथा कोयला खदानों और कोयला-चालित संयंत्रों को बंद करने के लिए 55 बिलियन डॉलर से अधिक के परिव्यय को मंजूरी दीसाथ ही, कोयले पर निर्भर क्षेत्रों के विकास का समर्थन किया।
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