(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, सामान्य विज्ञान)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास)
पृष्ठभूमि
हाल ही में, गुजरात के तापी जिले में स्थित काकरापार परमाणु ऊर्जा परियोजना (Kakrapar Atomic Power Project: KAPP-3) की तीसरी इकाई क्रिटिकली (सामान्य परिचालन स्थिति में आना) अवस्था में आ गई है। सामान्य परिचालन स्थिति में आने वाली यह इकाई भारत की स्वदेशी डिज़ाइन पर आधारित सबसे बड़ी इकाई है। यह एक प्रकार की प्रेशराइज़्ड हैवी वॉटर रिएक्टर (दाबित भारी जल संयंत्र: PHWR- पी.एच.डब्ल्यू.आर.) इकाई है।
इस उपलब्धि का महत्त्व
- यह भारत के घरेलू असैन्य परमाणु कार्यक्रम में एक ऐतिहासिक क्षण है। ज्ञातव्य है कि KAPP-3 देश की पहली 700MWe इकाई है और दाबित भारी जल रिएक्टर (PHWR) का स्वदेशी रूप से विकसित सबसे बड़ा संस्करण है।
- दाबित भारी जल संयंत्र ईंधन के रूप में प्राकृतिक यूरेनियम और मंदक के रूप में भारी जल का उपयोग करते हैं, जो भारत के परमाणु संयंत्रों का मुख्य आधार है।
- अभी तक, स्वदेशी डिज़ाइन द्वारा विकसित सबसे बड़ा संयंत्र 540MWe (मेगावाट विद्युत) इकाई का दाबित भारी जल संयंत्र था। जिनमें से दो महाराष्ट्र के तारापुर में स्थापित किये गए हैं।
- भारत के पहले 700MWe संयंत्र का परिचालन प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उपलब्धि को इंगित करता है। यह उपलब्धि दाबित भारी जल संयंत्र की डिज़ाइन के अनुकूलन और 540MWe संयंत्र की डिज़ाइन में बिना कोई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किये उत्पादन क्षमता में सुधार से सम्बंधित है।
- दाबित भारी जल संयंत्र की इस नई इकाई के डिज़ाइन का अनुकूलन अतिरिक्त ‘थर्मल मार्जिन’ की समस्या को हल करती है। थर्मल मार्जिन से तात्पर्य है कि रिएक्टर का ऑपरेटिंग तापमान उसके अधिकतम ऑपरेटिंग तापमान से कितना कम है।
- यह संयंत्र 12 रिएक्टरों के एक नए समूह के लिये रीढ़ साबित होगा। इन 12 रिएक्टरों को सरकार ने वर्ष 2017 में प्रशासनिक स्वीकृति व वित्तीय मंज़ूरी दी थी, जिन्हें एक श्रृंखला के तहत स्थापित किया जाना है।
- भारत 6,780MWe की अपनी मौजूदा परमाणु ऊर्जा क्षमता को वर्ष 2031 तक बढ़ाकर 22,480MWe करने पर तेज़ी से कार्य कर रहा है, अतः इस संयंत्र की क्षमता इस योजना का एक बड़ा घटक होगी।
- वर्तमान में, जनवरी 2020 तक परमाणु ऊर्जा क्षमता 3,68,690 मेगावाट की कुल स्थापित क्षमता के 2% से भी कम है।
- भारत असैन्य क्षेत्र में परमाणु ऊर्जा के अगले व उच्च स्तर पर जाने के लिये तैयार है, जिसमें स्वदेशी डिज़ाइन द्वारा 900MWe के दाबित जल संयंत्र (पी.डब्ल्यू.आर.) का निर्माण किया जाना है। इसमें बड़े स्तर के 700MWe रिएक्टर के डिज़ाइन को क्रियान्वित करने का अनुभव काम आएगा। यह अनुभव विशेष रूप से उच्च दबाव वाहिकाओं (Llarge Pressure Vessels) को बनाने की बेहतर क्षमता से सम्बंधित है।
- साथ-साथ अगले दशक में नई पीढ़ी के इन रिएक्टरों को शक्ति (विद्युत) प्रदान करने के लिये आवश्यक समृद्ध यूरेनियम ईंधन के आपूर्ति हिस्से के रूप में आइसोटोप सम्वर्धन संयंत्र विकसित किये जा रहे हैं।
700 मेगावाट की इस परियोजना पर कार्य की शुरुआत
- इस परियोजना पर कार्य वर्ष 2010-11 में शुरू हुआ था और इस इकाई को मूलत: वर्ष 2015 तक कमीशन प्राप्त होने की उम्मीद थी।
- इन परियोजनाओं के लिये पूँजी निवेश 70:30 के ऋण-इक्विटी अनुपात में किया जा रहा है, जिसमें इक्विटी का हिस्सा आंतरिक संसाधनों और बजटीय समर्थन के माध्यम से वित्त पोषित किया जा रहा है।
सामान्य परिचालन स्थिति में आने (क्रिटिकल) का तात्पर्य
- रिएक्टर, परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का सबसे प्रमुख भाग होता है, जहाँ एक नियंत्रित नाभिकीय विखण्डन अभिक्रिया सम्पन्न होती है, जिससे ऊष्मा उत्पन्न होती है। इस ऊष्मा का उपयोग वाष्प उत्पन्न करने के लिये किया जाता है जो विद्युत उत्पादन के लिये टरबाइन को घुमाता है।
- विखण्डन की प्रक्रिया में किसी परमाणु का नाभिक दो या अधिक छोटे नाभिकों में विभाजित हो जाता है।
- जब नाभिक का विभाजन होता है, तो विखण्डित अंशों की गतिज ऊर्जा ईंधन के अन्य परमाणुओं में ऊष्मा ऊर्जा के रूप में स्थानांतरित हो जाती है।
- कोई परमाणु रिएक्टर सामान्य परिचालन की स्थिति (क्रिटिकली) में तब आता है जब विखण्डन की प्रत्येक अभिक्रिया एक सतत श्रृंखला अभिक्रिया को बनाए रखने के लिये पर्याप्त संख्या में न्यूट्रॉन मुक्त करता है।
भारत में दाबित भारी जल रिएक्टर (PHWR) तकनीक का विकास
- भारत में दाबित भारी जल रिएक्टर तकनीक की शुरुआत 1960 के दशक के उत्तरार्ध में हुई, जब 220MWe के पहले रिएक्टर का निर्माण राजस्थान परमाणु ऊर्जा स्टेशन (RAPS-1) के रूप में हुआ। इस रिएक्टर को कनाडा के डगलस प्वाइंट रिएक्टर की तरह डिज़ाइन किया गया था। इसको संयुक्त भारत-कनाडा परमाणु सहयोग के तहत निर्मित किया गया था।
- कनाडा ने इसकी पहली इकाई के लिये सभी मुख्य उपकरणों की आपूर्ति की, जबकि निर्माण, स्थापना और कमीशन की ज़िम्मेदारी भारत की थी।
- भारत द्वारा दूसरी इकाई (RAPS-2) के विकास के लिये काफ़ी हद तक सामग्रियों के आयात पर निर्भरता कम की गई और प्रमुख उपकरणों का स्वदेशीकरण किया गया था।
- पोखरण में प्रथम परमाणु परीक्षण के बाद वर्ष 1974 में कनाडा द्वारा समर्थन को रोके जाने के बाद, भारतीय परमाणु इंजीनियरों ने निर्माण कार्य को पूरा किया। इस प्रकार, इस संयंत्र का परिचालन भारत में बनाए जाने वाले अधिकांश घटकों के साथ शुरू किया गया।
- आवश्यकताओं के अनुरूप, 540MWe की पी.एच.डब्ल्यू.आर. की डिज़ाइन का विकास किया गया और तारापुर में ऐसी दो इकाइयाँ बनाई गई। 700MWe क्षमता में अपग्रेड करने हेतु अतिरिक्त अनुकूलन किया गया तथा के.ए.पी.पी.-3 इस प्रकार की पहली इकाई है।
700MWe की इकाई और उन्नत सुरक्षा सुविधाएँ
- पी.एच.डब्ल्यू.आर. तकनीक में कई अंतर्निहित सुरक्षा विशेषताएँ होती हैं। पी.एच.डब्ल्यू.आर. डिज़ाइन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें उच्च दबाव वाहिकाओं के स्थान पर पतली दीवार वाले दबाव ट्यूबों का उपयोग किया जाता है।
- इसके अतिरिक्त, 700MWe पी.एच.डब्ल्यू.आर. की डिज़ाइन में एक समर्पित ‘निष्क्रिय क्षय ताप निष्कासन प्रणाली’ (Passive Decay Heat Removal System) के कारण अतिरिक्त सुरक्षा होती है, जो किसी अन्य प्रचालक क्रिया के बिना रिएक्टर कोर से क्षय ताप को निष्कासित कर सकती है। क्षय ऊर्जा रेडियोधर्मी क्षय के परिणामस्वरूप मुक्त होती है।
- यह वर्ष 2011 में जापान में हुई फुकुशिमा जैसी दुर्घटना की सम्भावना को निष्फल करने के लिये ‘III +’ पीढ़ी के संयंत्रों हेतु अपनाई गई तकनीक पर आधारित है।
- KAPP की तरह 700MWe पी.एच.डब्ल्यू.आर. इकाई किसी भी रिसाव को कम करने के लिये स्टील-लाइन पर आधारित रोकथाम प्रणाली से सुसज्जित होती है।
निष्कर्ष
इस प्रकार, स्वदेश में ही डिज़ाइन किया गया 700 मेगावाट विद्युत (Megawatt Electric- MWe) इकाई का के.ए.पी.पी. -3 संयंत्र ‘मेक इन इंडिया’ का एक गौरवपूर्ण उदाहरण है। साथ ही, यह इस तरह की अनगिनत भावी उपलब्धियों में निश्चित तौर पर अग्रणी और अनुगामी कदम है।