केरल के जनजातीय हस्तशिल्प ‘कन्नडिप्पया’ को भौगोलिक संकेतक (GI Tag) प्रदान किया गया।

कन्नडिप्पया हस्तशिल्प के बारे में
- क्या है : यह केरल के आदिवासी समुदायों द्वारा निर्मित एक पारंपरिक बाँस की चटाई है।
- नामकरण : कन्नडिप्पया का शब्दिक अर्थ ‘दर्पण चटाई’ (Mirror Mat) है। इसे यह नाम इसके अद्वितीय परावर्तक पैटर्न के कारण दिया गया है।
- उत्पत्ति : इडुकी (केरल)
- निर्माण सामग्री : अच्छी गुणवत्ता वाला कन्नडिप्पया ईख बाँस मुलायम आंतरिक परतों से बुना जाता है जिसे स्थानीय रूप से नजूनजिलीट्टा, नजूजूरा, पोन्नीटा, मीइता एवं नेथीटा के नाम से जाना जाता है।
- इसके अलावा इसे बाँस की प्रजातियों का उपयोग करके भी बुन जाता है।
- संबंधित जनजातीय समुदाय : यह चटाई मुख्यत: पाँच जातीय समूहों- ओराली, मन्नान, मुथुवा, मलायन एवं कादर जनजातियों द्वारा बुनी जाती है जो मुख्यत: इडुक्की, त्रिशूर, एर्नाकुलम व पलक्कड़ जिलों में निवास करते हैं।
- हालाँकि, कुछ अन्य स्वदेशी समुदाय, जैसे- उल्लादान, मलयारायन एवं हिल पुलाया आदि भी कुछ सीमा तक इस कार्य में संलग्न हैं।
- विशिष्ट गुण : यह चटाई शीतकाल के दौरान गर्मी तथा ग्रीष्मकाल के दौरान शीतलता प्रदान करने जैसे अपने विशिष्ट गुणों के लिए जानी जाती है।
- सांस्कृतिक महत्व : आदिवासी समुदाय पारंपरिक रूप से अपने सांस्कृतिक उत्सवों एवं धार्मिक अनुष्ठानों में कन्नडिप्पया का उपयोग करते हैं।
- ऐतिहासिक अभिलेखों से पता चलता है कि कन्नडिप्पया को कभी जनजातीय समुदायों द्वारा राजाओं को सम्मान के प्रतीक के रूप में भेंट किया जाता था।