(प्रारंभिक परीक्षा के प्रश्नपत्र-1 : भारत का इतिहास)
चर्चा में क्यों
16 नवंबर से वाराणसी में एक माह तक चलने वाले ‘काशी तमिल संगमम्’ की शुरुआत हो रही है, जो उत्तर व दक्षिण भारत के मध्य ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों के विभिन्न पहलुओं को समझने का एक मंच है।
काशी तमिल संगमम् के बारे में
- ‘काशी तमिल संगमम्’ का व्यापक उद्देश्य दो ज्ञान परंपराओं एवं सांस्कृतिक परंपराओं को निकट लाना, साझी विरासत की समझ पैदा करना और इन क्षेत्रों के लोगों के बीच आपसी संपर्क को मज़बूत करना है।
- यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के अनुरूप है, जो ‘भारतीय संस्कृति और लोकाचार के साथ आधुनिक एवं 21वीं सदी की मानसिकता के मध्य सामंजस्य पर ज़ोर देती है’।
- बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) और आई.आई.टी. मद्रास (IIT Madras) इस आयोजन के ज्ञान भागीदार हैं।
- उत्तर प्रदेश सरकार और वाराणसी प्रशासन के अतिरिक्त संस्कृति, पर्यटन, रेलवे, कपड़ा और खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालयों को हितधारकों के रूप में शामिल किया गया है।
प्राचीन संबंध
- प्राचीन काल से दक्षिण भारत में विद्वानों द्वारा काशी की यात्रा के बिना उच्च शिक्षा अधूरी मानी जाती थी।
- ज्ञान के दो केंद्रों (काशी और कांची) के बीच संबंध साहित्य में समान विषयों के रूप में दिखाई देते हैं। तमिलनाडु के प्रत्येक गाँव में काशी नाम की उपस्थिति देखी जा सकती है तथा काशीनाथ तमिलनाडु के लोगों में एक लोकप्रिय नाम है।
काशी और कांची के मध्य संबंध
- एक किंवदंती के अनुसार, राजा पराक्रम पांड्य ने अपनी काशी यात्रा से लौटते समय भगवान की इच्छानुसार एक ‘लिंगम’ स्थापित किया। इस स्थान को शिवकाशी के नाम से जाना जाता है।
- पराक्रम पांड्य 15वीं शताब्दी में मदुरै के आसपास शासन करते थे।
- पांड्य राजाओं ने ‘काशी विश्वनाथर’ मंदिर का निर्माण करवाया जो दक्षिण-पश्चिमी तमिलनाडु में तमिलनाडु-केरल की सीमा के निकट तेनकासी में स्थित है।
- काशी विश्वनाथर मंदिर के अलावा तमिलनाडु में काशी के नाम से सैकड़ों शिव मंदिर हैं। एक अन्य राजा अधिवीर राम पांडियन ने 19वीं शताब्दी में तेनकासी में एक अन्य शिव मंदिर का निर्माण कराया।
- तमिल संत कुमारा गुरुपारा ने काशी पर व्याकरण की कविताओं का संग्रह ‘काशी कलमबागम’ की रचना की है।