(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि) |
संदर्भ
25 दिसंबर, 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश के खजुराहो में केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना (KBLP) की आधारशिला रखी। यह भारत की राष्ट्रीय नदी जोड़ो नीति के तहत पहली नदी जोड़ो परियोजना की शुरुआत है।
के.बी.एल.पी. के बारे में
- के.बी.एल.पी. केंद्र सरकार, मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश सरकारों के बीच एक त्रिपक्षीय पहल है, जिसके अंतर्गत केन नदी से पानी को बेतवा नदी में स्थानांतरित किया जाना है।
- केन एवं बेतवा यमुना की सहायक नदियाँ हैं।
- कुल लागत : अनुमानित लागत 44,605 करोड़ रुपए
- समय सीमा : लगभग 8 वर्ष
- पृष्ठभूमि : 22 मार्च, 2021 को प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों और केंद्रीय जल शक्ति मंत्री द्वारा एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किया गया तथा कार्यान्वयन के लिए सहयोग को औपचारिक रूप दिया गया।
- यह परियोजना दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के दृष्टिकोण के अनुरूप है जिन्होंने भारत की जल कमी की समस्या के समाधान के रूप में नदी-जोड़ने की वकालत की थी।
परियोजना के अंतर्गत बुनियादी ढांचे का विकास
- दौधन बांध : दौधन बांध का निर्माण पन्ना टाइगर रिजर्व में केन नदी पर किया जाएगा, जो 77 मीटर ऊंचा और 2.13 किलोमीटर लंबा होगा।
- जल संग्रहण : बांध की क्षमता 2,853 मिलियन घन मीटर जल संग्रहण की होगी।
- लिंक नहर : 221 किलोमीटर लंबी नहर दौधन बांध को बेतवा नदी से जोड़ेगी, जिससे सिंचाई और पेयजल प्रयोजनों के लिए अधिशेष जल का स्थानांतरण सुगम हो जाएगा।
- सुरंग : इस परियोजना में दो नदियों के बीच जल स्थानांतरण को सहायता प्रदान करने के लिए दो सुरंगों (ऊपरी स्तर पर 1.9 किमी. और निचले स्तर पर 1.1 किमी.) का निर्माण भी शामिल है।
लाभार्थी
- मध्य प्रदेश : इस परियोजना से 10 जिलों के लगभग 44 लाख लोगों को पीने का पानी मिलेगा।
- उत्तर प्रदेश : राज्य में करीब 21 लाख लोग लाभान्वित होंगे।
कृषि एवं किसानों पर प्रभाव
- इस परियोजना से दोनों राज्यों के 2,000 गांवों के 7.18 लाख किसान परिवारों को लाभ मिलने की उम्मीद है।
- मध्य प्रदेश : इस परियोजना से पन्ना, दमोह, छतरपुर, टीकमगढ़, निवाड़ी, सागर, रायसेन, विदिशा, शिवपुरी एवं दतिया सहित 10 जिलों में 8.11 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होगी।
- उत्तर प्रदेश : इस परियोजना से 2.51 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई भी होगी, जिससे महोबा, झांसी, ललितपुर एवं बांदा जिलों में पानी की उपलब्धता में सुधार होगा।
पेयजल एवं औद्योगिक आपूर्ति
- यह परियोजना प्रभावित क्षेत्रों के समुदायों को विश्वसनीय पेयजल उपलब्ध कराएगी, जिससे बुंदेलखंड क्षेत्र में पानी की कमी की पुरानी समस्या दूर होगी।
- औद्योगिक उपयोग के लिए भी पर्याप्त जल उपलब्ध होगा, जो क्षेत्र में आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
पर्यावरणीय एवं सामाजिक चिंताएँ
- पन्ना टाइगर रिजर्व पर प्रभाव : दौधन बांध पन्ना टाइगर रिजर्व के मुख्य भाग में स्थित है और इसके निर्माण से रिजर्व का लगभग 98 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र जलमग्न हो जाएगा, जो वन्यजीव संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है।
- विशेषज्ञों ने बाघों की आबादी के लिए संभावित खतरों के बारे में चिंता जताई है, जिन्हें पूर्व में वर्ष 2009 में स्थानीय रूप से विलुप्ति का सामना करना पड़ा था।
- वन्यजीव चिंताएं : दौधन बांध के निर्माण से केन घड़ियाल अभयारण्य में घड़ियाल जैसी प्रजातियों और नीचे की ओर गिद्धों के घोंसले के स्थलों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- वनों की कटाई : इस परियोजना में लगभग 2-3 मिलियन वृक्षों की कटाई भी की गई है, जो सबसे विवादास्पद पहलुओं में से एक है क्योंकि इससे क्षेत्र की जैव विविधता प्रभावित हो सकती है।
- विस्थापन : भूमि के जलमग्न होने और परियोजना से संबंधित भूमि अधिग्रहण के कारण छतरपुर जिले में 5,228 परिवार और पन्ना जिले में 1,400 परिवार प्रभावित होंगे।
- हाइड्रोलॉजिकल डाटा और व्यवहार्यता अध्ययन : केन नदी से अधिशेष जल के लिए हाइड्रोलॉजिकल डाटा के बारे में चिंताएँ व्यक्त की गई हैं। आई.आई.टी.-बॉम्बे के वैज्ञानिकों सहित विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि बड़ी मात्रा में पानी स्थानांतरित करने से क्षेत्र की स्थलीय-वायुमंडलीय अंतःक्रिया प्रभावित हो सकती है, जिससे सितंबर माह के दौरान संभावित रूप से 12% तक वर्षा कम हो सकती है।
पर्यावरणीय लाभ
- पन्ना टाइगर रिजर्व : दौधन जलाशय पन्ना टाइगर रिजर्व के लिए जल संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि क्षेत्र में वन्यजीवों को वर्ष भर पीने का पानी मिलता रहे।
- इससे वन पारिस्थितिकी तंत्र में काफी सुधार होने की संभावना है।
- चंदेलकालीन विरासत तालाब : इस परियोजना में छतरपुर, टीकमगढ़ एवं निवाड़ी जैसे जिलों में चंदेलकालीन विरासत तालाबों के संरक्षण के प्रयास शामिल हैं।
- मध्ययुगीन काल के इन तालाबों को वर्षा के मौसम में पानी के भंडारण में मदद करने के लिए पुन: बहाल किया जाएगा, जिससे स्थानीय कृषि एवं पानी की उपलब्धता में लाभ होगा।
- विद्युत उत्पादन : इस परियोजना में 103 मेगावाट जल विद्युत एवं 27 मेगावाट सौर ऊर्जा का उत्पादन भी शामिल है, जिससे नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में योगदान मिलेगा और क्षेत्र की ऊर्जा मांगों को पूरा करने में मदद मिलेगी।
सामाजिक एवं आर्थिक प्रभाव
- जल संकट का समाधान : केन-बेतवा परियोजना का उद्देश्य जल संकट को कम करना है, जिससे क्षेत्र में दीर्घकालिक जल सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
- पलायन : बेहतर जल उपलब्धता के साथ-साथ इस परियोजना का उद्देश्य रोजगार के लिए पलायन को कम करना, स्थानीय आजीविका एवं संधारणीयता को बढ़ावा देना है।
- बांदा में बाढ़ नियंत्रण : उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में यह परियोजना बाढ़ की समस्या को दूर करने में मदद करेगी।
आर्थिक विकास
- औद्योगिक विकास को बढ़ावा : इस परियोजना से कृषि एवं औद्योगिक विकास को समर्थन देकर स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
- पर्यटन को बढ़ावा : यह परियोजना, विशेष रूप से बुंदेलखंड क्षेत्र में, पर्यटन के विकास का समर्थन करती है जहां कई सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक स्थल हैं। इनमें यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल खजुराहो भी शामिल है।
- रोजगार के अवसर : परियोजना के निर्माण एवं चालू परिचालन से स्थानीय लोगों, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, के लिए रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे।
निष्कर्ष
केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना से बुंदेलखंड क्षेत्र में सिंचाई, पेयजल एवं ऊर्जा उपलब्ध कराकर जल संकट को दूर करने की अपार संभावनाएँ हैं। हालाँकि, इसे महत्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, विशेषकर पन्ना टाइगर रिजर्व और स्थानीय वन्यजीवों के साथ-साथ समुदायों के विस्थापन के संबंध में। इन चिंताओं को परियोजना के लाभों के साथ संतुलित करना इसके सफल कार्यान्वयन के लिए महत्वपूर्ण होगा।
राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना के बारे में
- जल संसाधन विकास के लिए राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (NPP) को भारत सरकार द्वारा वर्ष 1980 में तैयार किया गया था।
- एन.पी.पी. में दो घटक शामिल हैं, जिसके अंतर्गत कुल 30 लिंक परियोजनाओं की पहचान की गई है।
- वस्तुतः हिमालयी नदी विकास घटक के अंतर्गत 14 एवं प्रायद्वीपीय नदी विकास घटक के अंतर्गत 16 लिंक परियोजनाएँ शामिल हैं।
- राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA) को एन.पी.पी. के तहत नदियों को जोड़ने का कार्य सौंपा गया है।
|
नदी जोड़ो के अंतर्गत प्रस्तावित परियोजनाएं
|
प्रायद्वीपीय घटक के अंतर्गत के.बी.एल.पी. सहित 16 परियोजनाएं
|
हिमालयी घटक के अंतर्गत 14 परियोजनाएं
|
-
(a) महानदी (मणिभद्रा)- गोदावरी (दौलीस्वरम) लिंक
(b) महानदी (बरमुल)- गोदावरी (दौलीस्वरम) लिंक
-
गोदावरी (इंचमपाल)-कृष्णा (पुलीचिंतला) लिंक
-
गोदावरी (इंचमपल्ली)-कृष्णा (नागार्जुनसागर) लिंक
-
गोदावरी (पोलावरम)-कृष्णा (विजयवाड़ा) लिंक
-
कृष्णा (अलमाटी)-पेन लिंक
-
कृष्णा (श्रीशैलम)-पेन्नार लिंक
-
कृष्णा (नागार्जुनसागर)-पेन्नार (सोमासिला) लिंक
-
पेन्नार (सोमासिला)-कावेरी (ग्रैंड एनीकट) लिंक
-
कावेरी (कट्टलाई)-वैगई-गुंडर लिंक
-
(a) पार्बती-कालीसिंध-चंबल लिंक
(b) संशोधित पार्बती-कालीसिंध-चंबल लिंक (ERCP के साथ विधिवत एकीकृत)
-
पार-बट-नर्मदा लिंक
-
दमनगंगा-पिंजल लिंक
-
बेड़ती-वरदा लिंक
-
नेत्रवती-हेमवती लिंक
-
पम्बा-अचानकोविल-वैप्पर लिंक
|
-
मानस-संकोश-तिस्ता-गंगा (एम-एस-टी-जी) लिंक
-
कोसी-घाघरा लिंक
-
गंडक-गंगा लिंक
-
घाघरा-यमुना लिंक
-
सारदा-यमुना लिंक
-
यमुना-राजस्थान (सूकरी नदी) लिंक
-
राजस्थान-साबरमती लिंक
-
चुनार (गंगा)-सोन बैराज लिंक
-
सोन बांध-गंगा की दक्षिणी सहायक नदियाँ
-
गंगा (फरक्का)-दामोदर-स्वर्णरेखा लिंक
-
सुवर्णरेखा-महानदी लिंक
-
कोसी-मेची लिंक
-
गंगा (फरक्का)-सुंदरबन लिंक
-
जोगीघोपा-तिस्ता-फरक्का लिंक (एम-एस-टी-जी का विकल्प)
|