प्रमुख बिंदु
- हाल ही में, केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा उत्तर-पूर्व क्षेत्र के लिये मिशन ‘ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट’ (MOVCD-NER) योजना के तहत कीवी को जैविक प्रमाणीकरण (ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन) प्रदान किया गया है।
- जब खेती की प्रक्रिया में कोई रासायनिक उर्वरक या कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया जाता है तो ऐसे कृषि अभ्यास या उत्पाद को जैविक माना जाता है। भारत में इस तरह के प्रमाणपत्र कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) नियामक निकाय द्वारा किये गए सख्त वैज्ञानिक मूल्यांकन के बाद प्राप्त किये जा सकते हैं। यह प्रमाणन उत्पादकों और प्रबंधकों को उपज का प्रीमियम मूल्य प्राप्त करने के साथ स्थानीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक पहुँच को बढ़ावा देता है।
- विदित है कि अरुणाचल प्रदेश की ज़ीरो घाटी के जंगलों में उगने वाला कीवी देश में अपनी तरह का एकमात्र प्रमाणित जैविक फल है। इस प्रमाणपत्र को प्राप्त करने वाला अरुणाचल प्रदेश देश का पहला राज्य बन गया है। स्थानीय रूप से इसे एंटेरि (Anteri) के नाम से जाना जाता है। राज्य में कीवी की एक घरेलू किस्म को वर्ष 2000 में वाणिज्यिक फल के रूप में मान्यता दी गई थी।
ज़ीरो घाटी
- निचले सुबनसिरी ज़िले में स्थित ज़ीरो घाटी प्राकृतिक कृषि-जलवायु परिस्थितियों के कारण खेती के लिये अनुकूल है। देश के कीवी उत्पादन में इस राज्य का हिस्सा 50% है, जिसके लिये अब तक केवल 4% खेती योग्य भूमि का उपयोग किया गया है। यह घाटी अरुणाचल प्रदेश के लिये एक वरदान है।
- भारत में प्रतिवर्ष लगभग 8,000 मीट्रिक टन कीवी का उत्पादन होता है जबकि लगभग 90% कीवी का आयात किया जाता है। गौरतलब है कि जिस प्रकार मेघालय लाकदोंग हल्दी (Lakadong Turmeric) तथा मणिपुर काले चावल के लिये जाना जाता है, उसी प्रकार अरुणाचल प्रदेश कीवी के लिये जाना जाएगा।
- हाल ही में, फल पर शोध को बढ़ावा देने के लिये निचले सुबनसिरी ज़िले में एक कीवी अनुसंधान संस्थान की स्थापना की गई। कीवी बेलों के रूप में विकसित होते हैं, जिसके लिये कई सहायक उपकरणों की आवश्यकता होती है, जैसे बाड़, लोहे के पद आदि। पहाड़ी स्थलाकृति के कारण इसे विकसित मुश्किल का सामना करना पड़ता है।
कीवी
यह मूल रूप से दक्षिण व मध्य चीन के यांग्त्ज़ी नदी घाटी में एक पर्णपाती फलदार बेल के रूप में पाया जाता है। इसकी उत्पत्ति चीन में हुई थी, लेकिन न्यूज़ीलैंड के लोगों के लिये यह आर्थिक रूप से सर्वाधिक लाभकारी रहा है। विश्व व्यापार में इसका 70% से अधिक हिस्सा है। इसे ‘चीन का चमत्कारी फल’ और ‘न्यूज़ीलैंड का बागवानी आश्चर्य’ भी कहा जाता है।