(प्रारम्भिक परीक्षा: भारतीय राज्य तंत्र और शासन- संविधान)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने तेलंगाना और आंध्र प्रदेश द्वारा कृष्णा और गोदावरी नदियों के जल के उपयोग को लेकर एक-दूसरे के विरूद्ध शिकायत सम्बंधी मामले का जायज़ा लेने का निर्णय लिया है।
क्या है मुद्दा?
- आंध्र प्रदेश व तेलंगाना दोनों राज्य कृष्णा और गोदावरी नदी तथा इनकी सहायक नदियों के क्षेत्र को साझा करते हैं।
- दोनों राज्यों द्वारा सम्बंधित नदी जल बोर्डों, केंद्रीय जल आयोग और शीर्ष परिषद् की अनुमति लिये बिना ही कई परियोजनाएँ शुरू कर दी गईं हैं।
- आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम,2014 के तहत गोदावरी और कृष्णा नदी प्रबंधन बोर्डों की कार्यप्रणाली की निगरानी हेतु एक शीर्ष परिषद् के गठन का प्रावधान किया गया था। शीर्ष परिषद् में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री और तेलंगाना व आंध्र प्रदेश राज्य के मुख्यमंत्री शामिल होते हैं।
- किंतु विगत वर्ष तेलंगाना सरकार द्वारा आंध्र प्रदेश सरकार के विरूद्ध कृष्णा नदी पर परियोजनाएँ शुरू करने के सम्बंध में शिकायत दर्ज कराई गई थी।
- आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा कृष्णा नदी पर श्रीशैलम जलाशय के एक हिस्से से जल के उपयोग में वृद्धि से सम्बंधित प्रस्ताव के कारण तेलंगाना द्वारा आंध्र प्रदेश के विरूद्ध शिकायत की गई है।
- आंध्र प्रदेश राज्य में कृष्णा नदी पर श्रीशैलम जलाशय का निर्माण किया गया है। यह जलाशय नल्लामल्ली पहाड़ियों में स्थित है।
- तेलंगाना की शिकायत के प्रत्युतर में आंध्र प्रदेश ने भी तेलंगाना में कृष्णा नदी पर पलामुरु-रंगारेड्डी व डिंडी लिफ्ट सिंचाई परियोजनाएँ और गोदावरी नदी पर प्रस्तावित कालेश्वरम व तुपकुलगुडेम बैराज के सम्बंध में शिकायत में कहा है कि ये सभी नई परियोजनाएँ हैं।
सरकार द्वारा की गई पहल
- इस सम्बंध में केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा कृष्णा और गोदावरी नदी प्रबंधन बोर्डों के अध्यक्षों को महाराष्ट्र व कर्नाटक में सिंचाई परियोजनाओं के सम्बंध में जानकारी जुटाने तथा इस जानकारी को एक माह के अंदर केंद्र के समक्ष प्रस्तुत करने के लिये कहा गया है।
- सरकार द्वारा इस विवाद में हस्तक्षेप का मुख्य उद्देश्य विवादों के आलोक में नई परियोजनाओं के लिये अधिशेष जल की उपलब्धता का आकलन करना है।
कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण
- कृष्णा नदी जल विवाद के समाधान हेतु दो अधिकरणों का गठन किया गया है।
- जस्टिस बृजेश कुमार की अध्यक्षता वाले अधिकरण ने अपने निर्णय में अधिशेष जल का महाराष्ट्र को 81 हज़ार मिलियन क्यूबिक फीट (tmcft), कर्नाटक को 177 tmcft और आंध्रप्रदेश को 196 tmcft जल आवंटित किया है।
- आंध्र प्रदेश द्वारा सर्वोच्च न्यायलय में जस्टिस बृजेश कुमार द्वारा दिये गए निर्णय को सर्वोच्च न्यायलय में चुनौती दी गई।
- आंध्र प्रदेश का पक्ष है कि वर्ष 2014 में तेलंगाना को अलग राज्य का दर्जा दिये जाने के बाद इसे कृष्णा जल विवाद अधिकरण (KWDT) में अलग पार्टी के रूप में शामिल किया जाना चाहिये ताकि जल का आवंटन तीन राज्यों की बज़ाय चार राज्यों (महारष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश) में किया जा सके।
गोदावरी जल विवाद न्यायाधिकरण
- वर्ष 1969 में गोदावरी जल विवाद अधिकरण का गठन आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और कर्नाटक के मध्य गोदावरी नदी के जल बटवारे को लेकर किया गया था।
- अधिकरण द्वारा वर्ष 1980 के निर्णय के तहत प्रत्येक राज्य गोदावरी तथा इसकी सहायक नदियों के जल का उपयोग एक निर्धारित स्तर तक करने के लिये स्वतंत्र था।
- किंतु वर्ष 2014 में तेलंगाना राज्य के अस्तित्व में आने के उपरांत गोदावरी नदी के जल को लेकर, विशेषकर पोलावरम परियोजना, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के मध्य विवाद का मुख्य कारण बन गई।
- हालाँकि पोलावरम परियोजना आंध्र प्रदेश के गोदावरी जिले की सिंचाई आवश्यकताओं की पूर्ति करेगी परंतु तेलंगाना का तर्क है कि इससे तेलंगाना के खम्मम जिले में स्थित कई गाँवों पर डूबने का खतरा बना हुआ है।
अंतर्राज्यीय जल विवाद
- संविधान के अनुच्छेद-262 के तहत अंतर्राज्यीय जल विवाद के न्याय निर्णयन (Adjudication) का प्रावधान किया गया है। इस अनुच्छेद के अंतर्गत संसद किसी अंतर्राज्यीय नदी व नदी घाटी जल के उपयोग, वितरण तथा नियंत्रण के सम्बंध में विवाद या शिकायत के समाधान हेतु कानून का निर्माण कर सकती है।
- साथ ही, संसद यह भी सुनिश्चित कर सकती है कि इस प्रकार के विवाद या शिकायत के सम्बंध में सर्वोच्च न्यायलय तथा अन्य न्यायलय अपने क्षेत्राधिकार का प्रयोग ना करें।
- संसद द्वारा अनुच्छेद-262 के तहत दो कानून, यथा- नदी बोर्ड अधिनियम,1956 और अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम,1956 पारित किये गए हैं।
- नदी बोर्ड अधिनियम के अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा अंतर्राज्यीय नदी और नदी घाटियों के विनियमन और विकास हेतु नदी बोर्ड के गठन का प्रावधान किया गया है। नदी बोर्ड का गठन राज्य सरकारों के आग्रह पर उन्हें सलाह देने के लिये किया जाता है।
- अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम केंद्र सरकार को अंतर्राज्यीय नदी या नदी घाटी के जल को लेकर दो या दो से अधिक राज्यों के मध्य विवाद के समाधान हेतु एक तदर्थ न्यायाधिकरण (Ad-hoc Tribunal) की स्थापना का अधिकार प्रदान करता है। हालाँकि इस अधिनियम में निर्णय देने की अधिकतम समय सीमा निर्धारित नहीं है।
- अधिकरण का निर्णय विवाद से सम्बंधित पक्षकारों के लिये अंतिम एवं बाध्यकारी होता है। इस अधिनियम के तहत स्थापित अधिकरण के समक्ष प्रस्तुत किये गए जल विवाद न तो सर्वोच्च न्यायलय और न ही किसी अन्य न्यायालय के क्षेत्राधिकार में आते हैं।
कृष्णा नदी
- यह पूर्व की ओर बहने वाली नदी है। जिसकी उत्पत्ति महाराष्ट्र के महाबलेश्वर से होती है। यह नदी चार राज्यों (महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्रप्रदेश) से होकर बहती हुई बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।
- कृष्णा की सहायक नदियाँ तुंगभद्रा, मालप्रभा, कोयना, भीमा, घाटप्रभा, यरला, वरुणा, दिंडी, मूसी और दूधगंगा हैं।
गोदावरी नदी
- गोदावरी नदी का उद्गम महाराष्ट्र राज्य में नासिक के समीप त्रयम्बकेश्वर से होता है तथा यह बंगाल की खाड़ी में मिलती है।
- गोदावरी बेसिन महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्यों के आलावा मध्य प्रदेश, कर्नाटक और केंद्र शासित प्रदेश पुड्डुचेरी के छोटे से भाग में फ़ैला हुआ है।
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आगे की राह
- जल एक राष्ट्रीय सम्पत्ति है। नदी जल पर प्रादेशिक सम्प्रभुता की बात अतार्किक है। कोई भी राज्य नदी के स्वामित्व को लेकर दावा नहीं कर सकता है। नदी जल विवाद के समाधान हेतु जल के ‘न्यायसंगत वितरण या उपयोग’ के सिद्धांत पर बल दिया जाना चाहिये।
- अंतर्राज्यीय नदी जल विवादों के जल्द समाधान हेतु राज्यों के मध्य अलग-अलग अधिकरणों के स्थान पर एक स्थाई अधिकरण की स्थापना किये जाने के साथ ही अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम की कमियों को दूर किया जाना चाहिये।