हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाकुंभ 2025 के लिए AI चैटबॉट “कुम्भ सहायक” का शुभारंभ किया।
चैटबॉट कुम्भ सहायक
यह श्रद्धालुओं को नेविगेशन, पार्किंग, रुकने के स्थान और अन्य आवश्यक जानकारी सेकंडों में प्रदान करेगा।
इसमें उपयोगकर्ता बोलकर या लिखकर अपने सवाल पूछ सकते हैं। यह सुविधा इसे उपयोगकर्ता-अनुकूल बनाती है।
यह 11 भाषाओं (हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, गुजराती, मराठी, पंजाबी, बंगाली और उर्दू) में काम करेगा
इसके माध्यम से श्रद्धालु कुंभ मेले के दौरान पार्किंग स्थान, नेविगेशन और भीड़ नियंत्रण जैसी जानकारी आसानी से प्राप्त कर सकेंगे।
इस चैटबॉट के माध्यम से श्रद्धालु महाकुम्भ का ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व जान सकेंगे।
इससे उन्हें प्रमुख तिथियों और आध्यात्मिक गुरुओं की विस्तृत जानकारी भी प्राप्त होगी।
महाकुंभ मेला 2025
13 जनवरी से 26 फरवरी तक प्रयाग में महाकुंभ का आयोजन
कुम्भ क्या
कुम्भ मेला हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है
यह पवित्र आयोजन भारत में चार स्थानों - हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज में होता है और इनमें से प्रत्येक नगर पवित्र नदी के किनारे स्थित है।
इनमें गंगा से लेकर क्षिप्रा, गोदावरी और प्रयागराज में गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती का संगम है।
जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुम्भ पर्व में एकत्र होते हैं और नदी में स्नान करते हैं।
खगोल गणनाओं के अनुसार यह मेला मकर संक्रान्ति के दिन प्रारम्भ होता है, जब सूर्य और चन्द्रमा, वृश्चिक राशि में और वृहस्पति, मेष राशि में प्रवेश करते हैं।
यह समय आध्यात्मिक स्वच्छता और आत्म-ज्ञान के लिए शुभ अवधि का संकेत माना जाता है।
इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति 12 वें वर्ष तथा प्रयाग में दो कुम्भ पर्वों के बीच छह वर्ष के अन्तराल में अर्धकुम्भ भी होता है।
वर्ष 2013 का कुम्भ प्रयाग में हुआ था।
कुंभ मेल का इतिहास
कुंभ मेले की जड़ें हजारों साल पुरानी हैं, जिसका प्रारंभिक उल्लेख वेदों तथा मौर्य और गुप्त काल (चौथी शताब्दी ईसा पूर्व से छठी शताब्दी ईस्वी) के दौरान मिलता है।
इसमें पूरे भारतीय उपमहाद्वीप से तीर्थयात्री आते थे।
गुप्तकाल के शासकों ने प्रतिष्ठित धार्मिक मंडली के रूप में इसकी स्थिति को और ऊंचा कर दिया।
मध्य काल के दौरान, कुंभ मेले को विभिन्न शाही राजवंशों से संरक्षण प्राप्त हुआ, जिनमें दक्षिण में चोल और विजयनगर साम्राज्य , उत्तर में दिल्ली सल्तनत,मुगल और अन्य राजपूत शासकों का संरक्षण मिला
यहां तक कि अकबर जैसे मुगल सम्राटों ने भी धार्मिक सहिष्णुता की भावना को दर्शाते हुए समारोहों में भाग लिया था।
औपनिवेशिक काल में, ब्रिटिश प्रशासकों ने इस उत्सव को देखा और इसके विशाल पैमाने और इसमें आने वाली विविध सभाओं से आश्चर्यचकित होकर इसका दस्तावेजीकरण किया
स्वतंत्रता के बाद, महाकुंभ मेले को और भी अधिक महत्व प्राप्त हुआ, जो राष्ट्रीय एकता और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है
प्रश्न – निम्नलिखित में से किस स्थान पर कुम्भ मेला का आयोजन नहीं होता है ?