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श्रम कानूनों में बदलाव

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ) (मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 2: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।)

पृष्ठभूमि

  • हाल ही में, कोरोना वायरस की वजह से देशव्यापी लॉकडाउन के बीच उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात सहित कुछ अन्य राज्यों ने अध्यादेशों तथा कार्यकारी आदेशों द्वारा अपने श्रम कानूनों में कुछ बदलाव प्रस्तावित किये हैं।
  • चूँकि श्रम (Labour) संविधान के अंतर्गत समवर्ती सूची का एक विषय है, अतः इस विषय के संदर्भ में राज्य सरकारें अपने स्वयं के कानूनों को भी लागू कर सकती हैं, लेकिन इसके लिये केंद्र सरकार की मंज़ूरी आवश्यक है।

प्रमुख बिंदु

  • उत्तर प्रदेश सरकार ने अगले तीन वर्षों के लिये कुछ को छोड़कर सभी श्रम कानूनों से व्यवसायों को छूट देने वाले अध्यादेश को मंज़ूरी दे दी है।

i. अध्यादेश के पारित होने के बाद औद्योगिक विवादों, व्यावसायिक सुरक्षा, श्रमिकों के स्वास्थ्य और कार्य की दशाएँ, व्यापार/मज़दूर संगठनों, अनुबंध श्रमिकों और प्रवासी मज़दूरों से सम्बंधित सभी श्रम कानून निष्क्रिय हो जाएंगे।

ii. यद्यपि बंधुआ मज़दूरी, महिलाओं एवं बच्चों के रोज़गार और वेतन के समय पर भुगतान से सम्बंधित कानूनों में ढील नहीं दी जाएगी।

श्रम कानूनों में सम्भाव्य परिवर्तन मौजूदा उद्योगों और राज्य में भविष्य में स्थापित होने वाली नई कम्पनियों/कारखानों दोनों पर लागू होंगे।

इसी तरह, मध्य प्रदेश सरकार ने भी अगले 1000 दिनों के लिये कई श्रम कानूनों को निलम्बित कर दिया है। कुछ महत्त्वपूर्ण संशोधन निम्नलिखित हैं:

i. कारखानों के मालिक काम के समय को 8 से 12 घंटे तक बढ़ा सकते हैं और कर्मचारियों की इच्छा के अनुसार उन्हें सप्ताह में 72 घंटे तक अतिरिक्त काम (Overtime) करने की अनुमति दी जा सकती है।

ii. कारखाना पंजीकरण अब 30 दिनों की जगह एक दिन में किया जा सकेगा और लाइसेंस को एक साल की बजाय 10 साल बाद नवीनीकृत किया जाएगा। समय-सीमा का अनुपालन नहीं करने वाले अधिकारियों पर ज़ुर्माने का भी प्रावधान है।

iii. औद्योगिक इकाइयों को औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (Industrial Disputes Act, 1947) के अधिकतर प्रावधानों में छूट प्राप्त होगी।

iv. संगठन अपनी सुविधानुसार श्रमिकों को सेवा में रखने के लिये स्वतंत्र होंगे, अर्थात् काम ना होने पर उन्हें नौकरी से निकाला जा सकता है।

v. श्रम विभाग या श्रम न्यायालय उद्योगों द्वारा की गई कार्रवाई में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।

vi. 50 से कम श्रमिकों को नियुक्त करने वाले ठेकेदार अनुबंध श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम [Contract Labour (Regulation and Abolition) Act], 1970 के तहत पंजीकरण के बिना काम करने में सक्षम होंगे।

नई औद्योगिक इकाइयों के लिये प्रमुख छूटें निम्नलिखित हैं:

i. श्रमिकों के अधिकार सम्बंधी कुछ प्रावधानों में छूट दी गई है, जिसमें काम पर उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा का विवरण रखना, बेहतर कार्य वातावरण प्रदान करना, पीने के पानी, वेंटिलेशन, क्रेच, साप्ताहिक अवकाश आदि से जुड़े प्रावधान शामिल हैं।

ii. रजिस्टर रखने और निरीक्षण करने की आवश्यकता से छूट दी गई है और औद्योगिक इकाइयाँ इसमें अपनी सुविधानुसार बदलाव कर सकती हैं।

iii. श्रम कानूनों के उल्लंघन के मामले में नियोक्ता/कम्पनी मालिकों को दंड से छूट दी गई है।

श्रम कानूनों में बदलाव के पीछे तर्क :

  • राज्यों ने निवेश को आकर्षित करने और औद्योगिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिये श्रम कानूनों में छूट दी गई है।
  • उन श्रमिकों को रोज़गार प्रदान करने के लिये जो अपने राज्यों में वापस चले आए हैं।
  • प्रशासनिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता लाने और संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था की चुनौतियों को नए अवसरों में बदलने के लिये।
  • कोविड-19 के चलते लागू लॉकडाउन के दौरान औद्योगिक इकाइयों के बंद रहने के कारण राज्यों के गिरते राजस्व को बढ़ाने के लिये।
  • उद्योगों में लम्बे समय से श्रम सुधारों की मांग की जा रही थी और ये परिवर्तन आवश्यक हो गए थे, क्योंकि निवेशक कानूनों और लाल-फीताशाही के जाल में फंसते जा रहे थे।

श्रम कानूनों में संशोधन से जुड़ी समस्याएँ

  • ऐसी सम्भावना है कि श्रम कानूनों में बदलावों की वजह से अधिकतर कारखाने सुरक्षा और स्वास्थ्य मानदंडों का पालन किये बिना संचालित होंगे और नई कम्पनियाँ "अपनी सुविधा के अनुसार, मनमाने तरीके से मज़दूरों को सेवा में रखने" की कोशिश करेंगी।
  • श्रमिकों को उनके अधिकारों से वंचित रखना मानवाधिकारों और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
  • इनके चलते श्रमिकों में असुरक्षा की भावना पैदा हो सकती है।
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