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श्रम आपूर्ति तथा बढ़ती मानव तस्करी

(प्रारम्भिक परीक्षा: गरीबी, समावेशन तथा अधिकार सम्बंधी मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्पत्र-3: संगठित अपराध, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियाँ)

चर्चा में क्यों

हाल ही में कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन फाउंडेशन (ग़ैर-सरकारी संगठन ) द्वारा किये एक अध्ययन में लॉकडाउन के पश्चात श्रम उद्देश्य हेतु मानव तस्करी में वृद्धि की उच्च सम्भावना पर चिंता व्यक्त की गई है।

अध्ययन के मुख्य बिंदु

  • अध्ययन में कहा गया कि लॉकडाउन के पश्चात श्रम आवश्यकताओं के चलते बच्चों एवं वयस्कों की तस्करी सबसे बड़े खतरों में एक होगी तथ इसका मुख्य कारण लॉकडाउन अवधि में लोगों की आय में कमी तथा रोज़गार का ख़त्म होना है।
  • अध्ययन कहता है किलॉकडाउन अवधि के पश्चात श्रम आवश्यकताओं तथायौन शोषण के उद्देश्य से मानव तस्करी में वृद्धि की आशंका है।
  • अध्ययन में बताया है कि लोगों द्वारा लॉकडाउन अवधि में कम आय के चलते या रोज़गार ख़त्म होने की दशा में स्थानीय साहूकारों से उच्च ब्याज दर पर ऋण लेने के परिणामस्वरुप वे बड़ी संख्या में ऋण जाल (Debt Trap) में फंस सकते हैं।
  • अध्ययन में कहा गया है कि लॉकडाउन अवधि के बाद बाल विवाह की घटनाओं में भी वृद्धि होगी।
  • अध्ययन के मुताबिक लॉकडाउन अवधि के पश्चात बच्चों के स्कूल छोड़ने की दर में वृद्धि होगी,जिसका इसका मुख्य कारण आर्थिक संकट होगा है तथा ग़रीबी के चलते वे एक दिन में भरपेट भोजन भी नहीं कर सकते।
  • घरेलू सर्वेक्षण के दौरान यह पाया गया है कि 21 % परिवार अपनी बढ़ती आर्थिक समस्याओं के कारण अपने बच्चों को बाल श्रम में भेजने के लिये तैयार हैं।

मानव तस्करी के कारण

  • गरीबी के चलते तथा आर्थिक तंगी के कारण लोग अपने बच्चों को बाल श्रम के लिये भेजने को तैयार हो जाते हैं, जहाँ से इनकी तस्करी आसानी से की जा सकती है।
  • तस्करी का एक मुख्य कारण देह व्यापर है। देह व्यापार के मज़बूत स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क के चलते आज इसने एक उद्योग का रूप ले लिया है।
  • अन्य कारणों में घरेलू दास, जबरन विवाह,आपराधिक गतिविधियों हेतु, भीख मंगवाना, बच्चों की पोर्नोग्राफी, ड्रग पेडलिंग और मानव अंग निकालना शामिल हैं।
  • संगठित सूक्ष्म ऋण प्रणाली के अभाव के चलते लोग उच्च दरों पर ऋण प्राप्त कर लेते हैं और गरीबी, बेरोज़गारी या कम आय के चलते अपने बच्चों को बाल श्रम या देह व्यापार में भेजने के लिये मजबूर हो जाते हैं।
  • मानव तस्करी में संलिप्त अपराधियों की राजनैतिक और प्रशासनिक पहुँच के चलते उनपर कानूनी कार्यवाही नहीं होने से इस प्रकार की गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है।
  • अगर कुछ मामलों में अपराधियों के विरूद्ध केस दर्ज हो भी जाते हैं तो देश की लचर न्यायिक व्यवस्था के चलते निर्णय आने में कई वर्ष लग जाते हैं, जिससे पीड़ित को समय पर न्याय नहीं मिल पाता है और उनका शोषण होता रहता है।

मानव तस्करी की रोकथाम हेतु किये गए प्रयास

  • वर्ष 2011 में भारतने यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन अगेंस्ट ट्रांसनेशनल आर्गनाइज्ड क्राइम्स, 2000 और मानव तस्करी के निवारण, उसके शमन और दंड से सम्बंधित प्रोटोकॉल को मंज़ूरी दी थी।
  • संविधान के अनुच्छेद 23 (1)के अंतर्गत मानव या व्यक्तियों का अवैध व्यापार प्रतिबंधित है।
  • अनैतिक तस्करी (रोकथाम) अधिनियम, 1956,वाणिज्यिक यौन शोषण की रोकथाम हेतु प्रमुख विधान है।
  • बाल संरक्षण अधिनियम, 2012, बच्चों को यौन अपराधों और यौन शोषण से बचाने के लिये विशेष एक कानून है।
  • भारत में मानव तस्करी मुख्यतया भारतीय दंड सहिंता , 1860 के अंतर्गत एक अपराध है इसमें तस्करी का अर्थ है बलपूर्वक तरीके से, शोषण के लिये किसी व्यक्ति की भर्ती, उसका परिवहन, उसे रखना, उसे ट्रान्सफर करना या उसकी प्राप्ति करना।
  • इसके अतिरिक्त ऐसे कानून भी हैं,जो विशिष्ट कारणों से की गई तस्करी को विनियमित करते हैं जैसे, यौन उत्पीड़न के लिये मानव तस्करी के सम्बंध में अनैतिक तस्करी (निवारण) अधिनियम, 1986 है। इसी प्रकार बंधुआ मज़दूरी के शोषण से सम्बंधित, बंधुआ मज़दूरी विनियमन अधिनियम, 1986 और बाल श्रम विनियमन अधिनियम, 1986 है। इनमें से प्रत्येक अधिनियम की स्वतंत्र कानूनी प्रवर्तन प्रणाली है।
  • मानवतस्करी (निवारण, संरक्षण और पुनर्वास)विधेयक, 2018 तस्करी के शिकार लोगों के बचाव, उन्हें छुड़ाने और उनके पुनर्वास का प्रावधान करता है।

मानव तस्करी रोकथाम के लिये सुझाव

  • इस दिशा में पहला कदम बच्चों और महिलाओं सहित सभी सम्वेदनशील वर्गों में जागरूकता का प्रसार किया जाना चाहिये।
  • ग्रामीण स्तर पर अधिक निगरानी और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को और अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है।
  • बच्चों को तस्करी से बचाने के लिये तस्करी के स्त्रोत क्षेत्रों में एक व्यापक सुरक्षा जाल फैलाया जाना चाहिये।
  • प्रशासनिक तंत्र द्वारा रेड लाइट एरिया में कड़ी निगरानी रखनी चाहिये तथा पीड़ित बच्चों और महिलाओं के लिये उचित संरक्षण एवं पुनर्वास की व्यवस्था की जानी चाहिये।
  • मानव तस्करी की रोकथाम हेतु विभिन्न संस्थाओं परिवार, ग़ैर-सरकारी संगठन, पुलिस और जाँच एजेंसियोंके द्वारा आपसी समन्वय से कार्य किये जाने की आवश्यकता है।
  • सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर एक रिपोज़िटरी का निर्माण किया जाना चाहिये, जिसमें अपराधियों तथा इस प्रकार के मामलों की जानकारी को एकीकृत रूप से रखा जा सके तथा वास्तविक समय में सूचना उपलब्ध करवाई जा सके।
  • बाल श्रम तथा देह व्यापार को अपनाने का मुख्य कारण ग़रीबी या आर्थिक असमानता है इसलिये सरकार को सम्वेदनशील परिवारों को रोज़गार मुहैया कराने के साथ ही उनके आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में भी आवश्यक कदम उठाने होंगे।

निष्कर्ष

लॉकडाउन अवधि में,जो परिवार अपनी आजीविका के साधन खो चुके हैं वे आर्थिक संकट यहाँ तक कि भुखमरी का सामना कर रहे हैं| यह स्थिति तस्करी सहित शोषण के अन्य तरीकों के लिये उत्प्रेरक का कार्य करती है। इनके समाधान हेतु समस्या की मूल जड़ गरीबी, अशिक्षा तथा बेरोज़गारी को समाप्त करने की दिशा में ठोस और व्यावहारिक प्रयास किये जाने चाहिये।

स्रोत: इंडिया टुडे, PRS और RSTV

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