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IAS Foundation New Batch, Starting from 27th Aug 2024, 06:30 PM | Optional Subject History / Geography | Call: 9555124124

गंभीर आपदा के रूप में भूस्खलन

संदर्भ 

देश के विभिन्न हिस्सों में भूस्खलन की घटना देखी जा रही है। हाल ही में, केरल के वायनाड में भूस्खलन के कारण व्यापक जन-धन की हानि हुई है। 

क्या है भूस्खलन 

  • भूस्खलन (Landslide) को चट्टान, मलबा या मृदा पिंड का ढलान से नीचे की ओर खिसकने के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह एक भूवैज्ञानिक घटना है। 
  • अन्य आपदाओं के विपरीत भूस्खलन मुख्यत: स्थानीय कारणों से उत्पन्न होते हैं। इसलिए भूस्खलन के बारे में आँकड़े एकत्र करना और इसकी संभावना का अनुमान लगाना न सिर्फ मुश्किल होता है अपितु काफी महँगा भी होता है।
  • यह एक प्रकार का ‘मास वेस्टिंग’ है, जो गुरुत्वाकर्षण के प्रत्यक्ष प्रभाव में मृदा एवं चट्टान के किसी भी ढलान से नीचे की ओर खिसकने को दर्शाता है।
  • मलबे का अधोगामी प्रवाह (मडफ़्लो या मडस्लाइड) और चट्टान का गिरना सामान्य भूस्खलन प्रकारों के उदाहरण हैं।
  • भूस्खलन तब होता है जब ढलान के भीतर गुरुत्वाकर्षण और अन्य प्रकार के कतरनी दबाव (Shear Stress), ढलान बनाने वाली सामग्रियों की कतरनी शक्ति (कतरनी प्रतिरोध) से अधिक हो जाते हैं।

भूस्खलन को प्रभावित करने वाले कारक 

ढलान के भीतर कतरनी दबाव 

  • ढलान के भीतर कतरनी दबाव कई प्रक्रियाओं से निर्मित हो सकते हैं। इनमें शामिल हैं : 
    • प्राकृतिक कटाव या उत्खनन द्वारा ढलान के आधार का अत्यधिक तीव्र होना 
    • ढलान पर भार, जैसे कि जल प्रवाह, भूजल तालिका में वृद्धि या ढलान की सतह पर मलबे का जमा होना 
    • भूस्खलन उन प्रक्रियाओं द्वारा भी सक्रिय हो सकते हैं जो ढलान की सामग्री की कतरनी शक्ति को कमजोर करती हैं।
  • कतरनी शक्ति मुख्य रूप से दो कारकों पर निर्भर करती है : 
    • घर्षण शक्ति : यह ढलान सामग्री के परस्पर क्रिया करने वाले घटक कणों के बीच गति का प्रतिरोध है।
    • संसंजक शक्ति : यह कणों के बीच बंधन है। रेत जैसे मोटे कणों में उच्च घर्षण शक्ति किंतु निम्न संसंजक शक्ति होती है, जबकि महीन कणों से निर्मित मृदा में इसके विपरीत गुण पाए जाते हैं। 

घटक कणों की प्रकृति 

  • ढलान बनाने वाली सामग्री की कतरनी शक्ति को प्रभावित करने वाला एक अन्य कारक इसके घटक कणों का स्थानिक स्वभाव है, जिसे निक्षेप के रूप में संदर्भित किया जाता है।
  • ढीले, खुले तलछट वाली कुछ सामग्री कमजोर हो जाती है यदि उनमें कोई यांत्रिक परिवर्तन किया जाता है या पानी से भर दिया जाता है। 

मानवीय गतिविधियाँ 

  • मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप जल की मात्रा में वृद्धि आमतौर पर अंतर-कण घर्षण की कमी के माध्यम से रेतीली सामग्री को कमजोर करती है। 
  • यह मृदा में उपस्थित खनिजों के जलयोजन एवं अंतर-कण (केशिका) तनाव को समाप्त कर मृदा को कमजोर करती है।

भूकंप एवं तूफ़ान जनित तनाव 

  • भूकंप और आंधी-तूफान से उत्पन्न अल्पकालिक तनाव भी भूस्खलन को सक्रिय करने में योगदान दे सकते हैं। 
  • भूकंप के झटके या तीव्र ढलान वाले पर्वतीय क्षेत्रों में मूसलाधार बारिश के कारण चट्टानों या मलबे की एक बड़ी मात्रा का तीव्र गति से संचलन व्यापक विनाश का कारण बन सकता है।
  • भूकंप के झटके और अन्य कारक जल के नीचे भूस्खलन को प्रेरित कर सकते हैं। इन भूस्खलनों को पनडुब्बी भूस्खलन कहा जाता है। 
    • पनडुब्बी भूस्खलन कभी-कभी सुनामी का कारण बनते हैं जो तटीय क्षेत्रों को नुकसान पहुँचाते हैं।

टॉपलिंग

खड़ी ढलान से बाहर की ओर चट्टान, मलबे या मृदा द्रव्यमान का घूमना टॉपलिंग कहलाता है। इस प्रकार की हलचल के कारण द्रव्यमान में फिसलन उत्पन्न होती है जो भूस्खलन का कारण बनता है। 

राष्ट्रीय भूस्खलन पूर्वानुमान केंद्र

  • केंद्रीय कोयला एवं खान मंत्री जी. किशन रेड्डी ने कोलकाता के साल्ट लेक सिटी स्थित भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India : GSI) धारित्री परिसर में राष्ट्रीय भूस्खलन पूर्वानुमान केंद्र (National Landslide Forecasting Centre : NLFC) का उद्घाटन किया।
  • इस दौरान भूसंकेत वेब पोर्टल और भूस्खलन मोबाइल ऐप का भी शुभारंभ किया गया। 
  • भारत में भूस्खलन के खतरे को कम करने के उद्देश्य के तहत एन.एल.एफ.सी. एक अग्रणी पहल है। 
  • यह केंद्र भूस्खलन के खतरे वाले सभी राज्यों के लिए प्रारंभिक चेतावनी बुलेटिन जारी करेगा तथा वर्ष 2030 तक देश भर में क्षेत्रीय भूस्खलन प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली का परिचालन करेगा।
  • एन.एल.एफ.सी. भूस्खलन सूची को अद्यतन करेगा और पूर्वानुमान की सटीकता बढ़ाने के लिए वास्तविक समय पर वर्षा एवं ढलान अस्थिरता डाटा को एकीकृत करेगा।

भूस्खलन शमन एवं रोकथाम

  • भूस्खलन दुनिया के अधिकांश हिस्सों में मानव जीवन व आजीविका के लिए एक आवर्ती खतरा है। यह विशेषकर उन क्षेत्रों को अधिल प्रभावित करता है जहाँ तेजी से जनसंख्या वृद्धि एवं आर्थिक विकास हुआ है। 
  • आबादी के निवास पर रोक 
  • भूस्खलन के इतिहास वाले क्षेत्रों में आबादी के बसावट को प्रतिबंधित करना या उन्हें वहाँ से हटाकर उनका पुनर्वास सुनिश्चित करना। 

ढलान की स्थिरता सुनिश्चित करना 

  • ढलान की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए कुछ प्रकार के भूमि उपयोग को प्रतिबंधित करना।
  • चट्टानों एवं मृदा में तनाव, ढलान विस्थापन व भूजल स्तर जैसी स्थितियों की निगरानी के आधार पर प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली की स्थापना।

अन्य उपाय 

    • ढलान की ज्यामिति को संशोधित करना
    • ढलान की सामग्री को मजबूत करने के लिए रासायनिक एजेंटों का उपयोग करना  
    • रिटेनिंग दीवारों जैसी संरचनाएं स्थापित करना
    • चट्टान के जोड़ों व दरारों में मसाला भरना 
    • मलबे के रास्तों को मोड़ना 
    • भू-स्खलन प्रभावित क्षेत्रों में उचित जल निकासी की व्यवस्था सुनिश्चित करना 
    • भूस्खलन सलाह, भूस्खलन निगरानी और भूस्खलन चेतावनी के मध्य अंतर

भूस्खलन सलाह

भूस्खलन निगरानी

भूस्खलन चेतावनी

  • सलाह, किसी दिए गए क्षेत्र में भूस्खलन गतिविधि की संभावना के बारे में एक सामान्य कथन है, जो वर्षा के पूर्वानुमानों के सापेक्ष है। 
  • इसमें वर्षा की स्थितियों के बारे में सामान्य कथन शामिल हो सकते हैं जो मलबे के प्रवाह की गतिविधि को उत्पन्न कर सकते हैं। 
  • इसमें भारी वर्षा की स्थिति में बरती जाने वाली सावधानियों की सूची भी शामिल हो सकती है।
  • निगरानी का अर्थ है कि भूस्खलन-गतिविधि की संभावना है लेकिन आसन्न नहीं है। 
  • निगरानी वाले क्षेत्र में रहने वाले या वहाँ से यात्रा करने की योजना बनाने वाले लोगों को भूस्खलन की तैयारियों के बारे में पता होना चाहिए और मौसम पैटर्न के बारे में जानकारी रखनी चाहिए।
  • चेतावनियाँ यह संकेत देती हैं कि भूस्खलन गतिविधि वर्तमान में हो रही है और अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए।
  • निगरानी एवं चेतावनियाँ अलग-अलग क्षेत्रों के लिए जारी की जा सकती हैं, और इसमें किसी क्षेत्र के स्थानीय आपातकालीन केंद्रों से संपर्क करने के बारे में सलाह शामिल है। 
  • वर्षा से प्रेरित मलबे के प्रवाह के लिए निगरानी एवं चेतावनियाँ मौसम पर निर्भर होती हैं। 
  • भारत में भू-स्खलन प्रभावित क्षेत्र 
  • भूस्खलन के सर्वाधिक जोखिम वाले शीर्ष चार देशों में भारत भी शामिल है, जहां प्रति वर्ष प्रति 100 वर्ग किमी. में अनुमानित जीवन हानि एक से अधिक है।

केरल में भू-स्खलन : केस अध्ययन

भूस्खलन संवेदनशील क्षेत्र 

  • केरल के वायनाड जिले में मूसलाधार बारिश के कारण मेप्पाडी के पास पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन की घटना हुई।
  • आपदा जोखिम सलाहकार डॉ. एस श्रीकुमार के अनुसार, वर्ष 2018 के बाद से इस क्षेत्र में भूस्खलन की घटनाओं के साथ-साथ मृत्यु एवं क्षति दर में भारी वृद्धि हुई है।
  • जुलाई 2022 में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने लोकसभा को सूचित किया कि पिछले सात वर्षों में देश में सबसे ज़्यादा भूस्खलन की घटनाएँ केरल में हुई हैं।
  • विशेषज्ञों के अनुसार तटीय जिले अलप्पुझा को छोड़कर केरल के 13 जिले भूस्खलन के लिए अतिसंवेदनशील हैं।
  • केरल राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने 1,848 वर्ग किमी. (राज्य के कुल क्षेत्रफल का 4.75%) को उच्च भूस्खलन जोखिम वाले क्षेत्र के रूप में पहचाना है।
  • हाल ही में, AI द्वारा सहायता प्राप्त एक अध्ययन के अनुसार केरल का लगभग 13% हिस्सा भूस्खलन के लिए अत्यधिक संवेदनशील है। 
    • इसमें इडुक्की, पलक्कड़, मलप्पुरम, पठानमथिट्टा एवं वायनाड को अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्रों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

विभिन्न समितियों की रिपोर्ट 

  • वर्ष 2011 में पारिस्थितिकीविद् माधव गाडगिल की अध्यक्षता में पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल (WGEEP) ने इडुक्की एवं वायनाड के अधिकांश जिलों को पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्रों के तहत श्रेणी 1 के रूप में वर्गीकृत किया था। 
    • इसका अर्थ है कि वे अत्यधिक संवेदनशील थे और इन क्षेत्रों में वन भूमि का उपयोग कृषि या गैर-वन गतिविधियों के लिए नहीं किया जाना चाहिए। 
    • हालांकि, दो साल बाद कस्तूरीरंगन रिपोर्ट ने सिफारिशों को कम कर दिया था। 
    • पश्चिमी घाट का विस्तार गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु एवं केरल में है। केरल में इसका सर्वाधिक विस्तार है।  

केरल में भू-स्खलन के लिए उत्तरदायी कारक  

  • जलवायु परिवर्तन
  • वनों की अत्यधिक कटाई 
  • अत्यधिक खनन
  • वर्षा प्रतिरूप में बदलाव 
  • संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण गतिविधियाँ
  • समुचित जल निकास प्रणाली का अभाव 
  • बढ़ता जनसंख्या दबाव
  • तीव्र ढलानों वाला पहाड़ी क्षेत्र 
  • केरल का अधिकांश हिस्सा पश्चिमी घाट के भूस्खलन प्रवण क्षेत्र के रूप में चिह्नित 
  • दक्षिण-पूर्व अरब सागर के तापमान में निरंतर वृद्धि से केरल सहित इस क्षेत्र के ऊपरी वायुमंडल का ऊष्मागतिकीय रूप से अस्थिर होना
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