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लांजिया साओरा जनजाति

(प्रारंभिक परीक्षा : भारत का भूगोल)

संदर्भ 

  • लांजिया साओरा जनजाति (LanjiaSaora Tribal Group) भारत की एक संवेदनशील जनजातीय है जिसे विशेष रूप से संरक्षण की आवश्यकता है। 
  • इसे भारत सरकार द्वारा विशेष रूप से संवेदनशील जनजातीय समूह (Particularly Vulnerable Tribal Group : PVTG) के रूप में मान्यता प्राप्त है।

लांजिया साओरा जनजाति के बारे में 

  • भौगोलिक वितरण : ये जनजातियाँ प्राय: ओडिशा के गजपति, कालाहांडी, रायगढ़ एवं कोरापुट जिले के दुर्गम पहाड़ी इलाकों में निवास करती हैं।
    • इसके अलावा आंध्र प्रदेश की सीमावर्ती पहाड़ियों में भी इनकी बस्तियाँ पाई जाती हैं।
  • जनजातीय पहचान और नाम की उत्पत्ति:
    • ‘लांजिया’ शब्द उनके पुरुषों द्वारा पहने जाने वाले लांगा (कमर से नीचे का वस्त्र) से लिया गया है, जो पीछे की ओर लटकता है।
  • भाषा : ये लोग सौरा सेन भाषा बोलते हैं, जो ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार से संबंधित है।
  • आजीविका : 
    • झूम खेती (Shifting cultivation)
  • वनोपज संग्रह
  • पशुपालन
    • खाद्य पदार्थ: मुख्य रूप से मक्का, कोदो, बाजरा, जंगली कंद और फल आदि।
  • धार्मिक पक्ष:
    • प्राकृति पूजा : पेड़, पहाड़, नदी आदि की पूजा।
    • पूर्वज पूजा (Ancestor worship) का गहरा प्रभाव।
  • शामानिक परंपराएँ: इनके समाज में पुजारी और तांत्रिक का विशेष स्थान होता है।
  • वेशभूषा और भौतिक विशेषताएं: पुरुष कमर के चारों ओर एक विशेष प्रकार की लंगोटी पहनते हैं जो पीछे की ओर लटकती है जिसे लांजिया कहा जाता है। 
    • शरीर पर गहनों की बजाय शरीर पर गुदना (tattoo) और पारंपरिक चित्रांकन किया जाता है।
    • पुरुष अपने बालों को विशेष प्रकार से बाँधते हैं और कानों में लकड़ी या धातु की छड़ियाँ पहनते हैं।
  • नृत्य और संगीत : पर्व-त्योहारों पर सामूहिक नृत्य और पारंपरिक वाद्य यंत्रों का प्रयोग।
  • सामाजिक व्यवस्था : इनमे कबीलाई पंचायत व्यवस्था होती है जिसमें बुज़ुर्गों और पुजारियों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है।
    • विवाह, मृत्यु और सामाजिक विवाद इन्हीं के माध्यम से हल किए जाते हैं।
  • अन्य प्रमुख बिंदु  : ये लोग अपने मृतकों की याद में दीवारों पर चित्र बनाते हैं, जिसमें पशु, पक्षी, मानव आकृति आदि होते हैं। इसे ‘इटल’ कहा जाता है जोकि इनकी सांस्कृतिक पहचान का प्रमुख पक्ष है।

विकास की चुनौतियाँ:

  • अत्यधिक पिछड़ापन: शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण में गंभीर कमी।
  • संवादहीनता: बाहरी दुनिया से सीमित संपर्क।
  • भाषायी और सांस्कृतिक विलुप्ति का खतरा।
  • अप्राकृतिक विकास और विस्थापन से खतरा।

इसे भी जानिए

विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTGs) के बारे में 

  • परिचय : PVTGs भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त आदिवासी समुदायों का एक विशेष वर्ग है, जिन्हें उनकी अत्यधिक सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन, असुरक्षित जीवनशैली, और जनसंख्या में गिरावट के कारण अलग से चिन्हित किया गया है।
    • यह अवधारणा पहली बार वर्ष1973 में ढेबर आयोग (Dhebar Commission) द्वारा दी गई थी।
    • यह सामान्य अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes) में से ही कुछ समुदायों को विशेष रूप से कमजोर मानकर वर्गीकृत किया गया है ताकि इन्हें अतिरिक्त केंद्रित सहायता मिल सके।
  • PVTG को चिन्हित करने के मानदंड (Criteria): भारत सरकार द्वारा  चार मानदंडों के आधार पर किसी जनजाति को PVTG घोषित किया जाता है- 
    • जनसंख्या की बेहद कम दर या घटती जनसंख्या
    • परंपरागत, आदिम जीवनशैली
    • खेती के आदिम तरीके (shifting cultivation या जंगल पर निर्भरता)
    • शैक्षणिक और तकनीकी पिछड़ापन
  • कुल PVTG समूह : 75 जनजातियाँ
  • सबसे अधिक PVTG वाले राज्य :ओडिशा (13 समूह), झारखंड (9 समूह)

PVTGs के लिए प्रमुख सरकारी योजनाएं और कार्यक्रम:

  • PVTG के लिए विशेष केंद्रीय सहायता योजना
  • वनेच्छु कल्याण योजना (VKY)
  • राष्ट्रीय जनजातीय स्वास्थ्य मिशन
  • वन धन योजना
  • एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS)
  • राष्ट्रीय पोषण मिशन 
  • PVTG Mission

यूपीएससी 2013 GS1

प्रश्न - विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTGs) क्या हैं? इनके समक्ष आने वाली महत्वपूर्ण समस्याओं की चर्चा कीजिए तथा उनके कल्याण के लिए सरकार द्वारा किए गए उपायों का उल्लेख कीजिए।

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