संदर्भ
हाल ही में, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपने सबसे भारी मिशन को प्रक्षेपण यान मार्क-3 (Launch Vehicle Mark-3 : LVM3) की सहायता से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया।
एल.वी.एम.3-एम2/वनवेब इंडिया-1 अभियान
- एल.वी.एम.3-एम2/वनवेब इंडिया-1 अभियान न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) के माध्यम से एक विदेशी ग्राहक वनवेब के लिये समर्पित एक वाणिज्यिक मिशन है।
- विदित है कि वनवेब लंदन स्थित एक निजी सैटेलाइट संचार कंपनी है, जिसमें भारत की भारती एंटरप्राइजेज एक प्रमुख निवेशक और शेयरधारक है।
मिशन की विशेषताएँ
- यह एल.वी.एम.3 का पहला वाणिज्यिक मिशन है। गौरतलब है कि एल.वी.एम.3 रॉकेट को पहले जी.एस.एल.वी. मार्क-III नाम से जाना जाता था।
- इस मिशन के तहत पृथ्वी की निचली कक्षा (Lower Earth Orbit : LEO) में वनवेब कंपनी के 36 ब्रॉडबैंड संचार उपग्रहों को स्थापित किया गया है।
- इस मिशन में भेजे गए पेलोड का वजन लगभग 6 टन (5,796 किलोग्राम) है, जो इसरो के अब तक के अभियानों में सर्वाधिक है।
एल.वी.एम.3 रॉकेट
- यह तीन चरणों वाला एक प्रक्षेपण यान है, जिसमें दो ठोस स्ट्रैप-ऑन मोटर्स (S200), एक लिक्विड कोर स्टेज (L110) और एक उच्च थ्रस्ट क्रायोजेनिक अपर स्टेज (C25) होता है।
- यह पृथ्वी की निचली कक्षा में 8 टन जबकि भू- तुल्यकालिक स्थानांतरण कक्षा (Geostationary Transfer Orbits : GTO) में 4 टन तक के पेलोड को ले जाने में सक्षम है।
- विदित है कि एल.ई.ओ. के अंतर्गत पृथ्वी की सतह से लगभग 600 किमी. ऊँचाई जबकि जी.टी.ओ. के अंतर्गत पृथ्वी की सतह से लगभग 36,000 किमी. की ऊँचाई को शामिल किया जाता है।
- इसका उपयोग अब तक चंद्रयान-2 मिशन सहित पाँच प्रक्षेपणों के लिये किया जा चुका है।
भारत की रॉकेट क्षमता
वर्तमान में भारत के पास एल.वी.एम.3 के अतिरिक्त दो अन्य प्रक्षेपण यान भी हैं-
ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV)
- भारत में पी.एस.एल.वी. सर्वाधिक उपयोग किया जाने वाला रॉकेट है जिसके माध्यम से वर्ष 1993 से अब तक 53 सफल अभियान प्रक्षेपित किये जा चुके हैं जबकि इसके केवल दो प्रक्षेपण विफल हुए।
- यह चार चरणों वाला प्रक्षेपण यान है, जिसकी सहायता से वर्ष 2008 में चंद्रयान -1 और वर्ष 2013 में मार्स ऑर्बिटर मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया।
भू-तुल्यकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (GSLV MK-II)
- जी.एस.एल.वी. एम.के.-II रॉकेट का प्रयोग अब तक 14 अभियानों में किया जा चुका है, जिसमें से 4 अभियान असफल हुए।
- यह तीन चरणों वाला प्रक्षेपण यान है, जिसमें तीसरा चरण क्रायोजेनिक इंजन होता है।
- जनवरी 2014 में प्रक्षेपित जी.एस.एल.वी. डी 5 में पहली बार स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का प्रयोग किया गया। विदित है कि इससे पूर्व यह रूस द्वारा निर्मित होता था।
- उल्लेखनीय है कि वर्तमान में इसरो द्वारा एक पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान (Reusable Launch Vehicle : RLV) पर भी कार्य किया जा रहा है जिसका उद्देश्य अंतरिक्ष अपशिष्ट को कम करना तथा विभिन्न अभियानों में रॉकेट का पुनः उपयोग करना है।
विश्व के अन्य भारी प्रक्षेपण यान
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- यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) द्वारा विकसित ऐरियन-5 रॉकेट एल.ई.ओ. में 20 टन पेलोड और जी.टी.ओ. में 10 टन पेलोड को ले जाने में सक्षम है। सामान्यत: इसरो द्वारा भारी उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिये इस यान का प्रयोग किया जाता था।
- चीन का लॉन्ग मार्च प्रक्षेपण यान जी.टी.ओ. में लगभग 14 टन पेलोड को ले जाने में सक्षम है।
- वर्तमान में स्पेस-एक्स (SpaceX) के ‘फाल्कन हेवी रॉकेट’ को विश्व का सबसे शक्तिशाली आधुनिक प्रक्षेपण यान माना जाता है जो एल.ई.ओ. में लगभग 60 टन पेलोड के परिवहन में सक्षम है।
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