(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र -3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियां; प्रौद्योगिकी का स्वदेशीकरण और नई प्रौद्योगिकी का विकास, आईटी, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जागरूकता) |
संदर्भ
भारत ने अगले दो दशकों में अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए हैं। ये लक्ष्य भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के आगामी नेक्स्ट जेनरेशन लॉन्च व्हीकल (NGLV) जैसे शक्तिशाली एवं पुन: प्रयोज्य रॉकेट पर भी निर्भर हैं। एन.जी.एल.वी. के अलावा भारत को बाह्य अंतरिक्ष तक अपनी पहुँच में रणनीतिक स्वायत्तता प्राप्त करने के लिए ऐसे अन्य रॉकेट विकसित करने में निजी क्षेत्र का उपयोग करना चाहिए।
अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की स्थिति
- 1960 के दशक में एक लघु अंतरिक्ष कार्यक्रम से भारत एक शक्तिशाली अंतरिक्ष-यात्रा करने वाला राष्ट्र बन गया है। गगनयान मिशन की तैयारियाँ जारी हैं। गगनयान पहली बार भारतीय चालक दल को अंतरिक्ष में ले जाएगा, जो भारतीय मानव-अंतरिक्ष उड़ान क्षमता का प्रदर्शन करेगा।
- अंतरिक्ष में भारत अपनी पहुंच बढाने के लिए चंद्रमा पर कई मानवरहित मिशन, अंतरिक्ष यात्रा के लिए मानव-केंद्रित तकनीकों में विशिष्टता प्राप्त करने एवं शक्तिशाली नए रॉकेट विकसित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
- इसरो अपने आगामी एन.जी.एल.वी. के साथ इन आवश्यकताओं को पूरा कर रहा है, जिसके विकास के लिए हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी है।
- अगले दशक के अंत तक भारत का लक्ष्य पृथ्वी की कक्षा में अपना स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करके अंतरिक्ष में अधिक स्थायी उपस्थिति दर्ज कराना है। इसका लक्ष्य चंद्रमा तक अपनी मानव-अंतरिक्ष उड़ान क्षमताओं का विस्तार करना भी है।
नेक्स्ट जेनरेशन लॉन्च व्हीकल (NGLV) के बारे में
- नेक्स्ट-जेन लॉन्च व्हीकल तीन चरणों वाला एक यान है जो लागत-कुशल एवं पुन: प्रयोज्य भारी-लिफ्ट व्हीकल होगा। यह जियोस्टेशनरी ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में 10 टन की पेलोड क्षमता के साथ स्थापित किया जाएगा।
- इसमें बूस्टर चरण के लिए सेमी-क्रायोजेनिक प्रणोदन का प्रयोग होगा जो सस्ता एवं कुशल है।
- इस यान का संभावित उपयोग संचार उपग्रहों, डीप अंतरिक्ष मिशन, भविष्य के मानव अंतरिक्षयानों एवं कार्गो मिशनों को लॉन्च करने में होगा।
एन.जी.एल.वी. (NGLV) का महत्व
- एन.जी.एल.वी. का महत्व इसकी भारी लिफ्ट क्षमता और पुन: प्रयोज्यता में निहित है। यह एल.वी.एम. 3 (जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल Mk III) की पेलोड क्षमता को तीन गुना कर देगा, जो भारत का सबसे शक्तिशाली रॉकेट है।
- GSLV Mk III को लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (LVM3) भी कहते हैं।
- इसके कई लाभ हैं। हैवी लिफ्ट रॉकेट वजन एवं आयतन से संबंधित सीमाओं को कम करते हैं। यह इंजीनियरों व वैज्ञानिकों को यानों के लघुकरण या वजन घटाने की समस्या का समाधान करता है। यह अंतरिक्ष से संबंधित मिशनों की क्षमता को बहुत बढ़ाता है।
- भारत के सभी मौजूदा रॉकेटों के विपरीत NGLV का एक बड़ा हिस्सा पुनः उपयोग योग्य होगा। अन्य रॉकेट एक बार के उपयोग के लिए बनाए गए हैं।
- पुनः उपयोग के लिए आवश्यक है कि रॉकेट अपने ईंधन का कुछ हिस्सा नियंत्रित तरीके से वापस पृथ्वी पर उतरने के लिए बचाकर रखे।
- इससे रॉकेट की अत्यधिक भार उठाने की क्षमता प्रभावित होती है किंतु लागत में भारी बचत होती है। रॉकेटों के लिए प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए पुनः उपयोग आवश्यक हो गया है।
निजी क्षेत्र का महत्व
- भारत एनजीएलवी (NGLV) विकसित करने के समानांतर, अंतरिक्ष विभाग भारत में निजी उद्योग को अपने स्वयं के पुन: प्रयोज्य, भारी लिफ्ट रॉकेट डिजाइन और विकसित करने के लिए अनुबंध दे सकता है। अंतरिक्ष एक उभरता हुआ क्षेत्र है जिसमें व्यावसायीकरण की अपार संभावनाएँ हैं।
- भारत में निजी क्षेत्र की ओर से इन अनुबंधों को उचित प्रोत्साहन प्राप्त होने की संभावना है। भारतीय निगमों में रॉकेट प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में मौजूदा फैकल्टी की कमी के बावजूद वे विदेशी सहयोग की संभावना तलाश सकते हैं।
- उदाहरण के लिए, विभिन्न रॉकेट इंजन पहले से ही व्यावसायिक रूप से बेचे जा रहे हैं।
- अनुबंधो के तहत अंतरिक्ष विभाग निजी क्षेत्र को प्रत्येक चरण में कुछ निश्चित उद्देश्यों को पूरा करने के बाद भुगतान करता है। जवाबदेही सुनिश्चित करने और लागत में वृद्धि को कम करने का यह एक बेहतरीन तरीका है।
- अंतरिक्ष गतिविधियों का पूरा दायरा अंतरिक्ष परिवहन सेवाओं की लचीली आपूर्ति पर निर्भर करता है जिसमें विकास के लिए उपग्रह डाटा का उपयोग करने से लेकर चंद्रमा व मंगल तक भारतीय उपस्थिति का विस्तार करना शामिल है।
आगे की राह
- इन रॉकेटों को अंतरिक्ष में मनुष्यों का समर्थन करने के लिए भारी पेलोड ले जाना पड़ता है। उन्हें आर्थिक रूप से भी व्यवहार्य होना चाहिए क्योंकि चंद्रमा पर मानव-अंतरिक्ष उड़ान के लिए सुरक्षा व विश्वसनीयता मानकों तक पहुँचने के लिए कई परीक्षण उड़ानें होंगी।
- भारत को एक विशेष औद्योगिक आधार के विकास के लिए एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना चाहिए जो बाह्य अंतरिक्ष में भारत की आवश्यकतों व महत्वाकांक्षाओं को पूरा कर सके।
- इसरो के व्यापक दायरे व क्षमता को देखते हुए भारत को कई पुन: प्रयोज्य एवं हैवी लिफ्ट रॉकेट बनाने के लिए अधिक प्रयास की आवश्यकता है।