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विवाह की कानूनी आयु और स्वास्थ्य पर प्रभाव

 (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 व 2 : सामाजिक मुद्दे, स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय)

संदर्भ 

  • भारत में महिलाओं के लिए विवाह की विधिक आयु 18 वर्ष और पुरुषों के लिए 21 वर्ष है। हालाँकि, महिलाओं के विवाह की आयु 18 से 21 वर्ष करने और लैंगिक कानूनों में एकरूपता लाने के लिए प्रस्तावित विधेयक संसद में लाया गया था जो पारित नहीं हो सका है।  
  • हिमाचल प्रदेश ने हाल ही में महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 18 से 21 वर्ष करने संबंधी विधेयक ‘बाल विवाह निषेध (हिमाचल प्रदेश संशोधन) विधेयक, 2024’ पारित किया है।
  • इसके समर्थकों का तर्क है कि इससे स्वास्थ्य परिणामों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है, जो महिलाओं के आरोग्य, मातृ स्वास्थ्य एवं समग्र सामाजिक कल्याण के विभिन्न आयामों को संबोधित करता है।

भारत में बाल विवाह की वर्तमान स्थिति

  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण : 2019-21 (NFHS-5) के अनुसार, 20 से 24 वर्ष की आयु की 23% महिलाओं का विवाह 18 वर्ष की आयु से पहले हो गया था। 
  • ग्रामीण क्षेत्रों में यह आंकड़ा 27% था, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 14.7% था।
  • यह आंकड़ा पिछले कुछ वर्षों में काफी कम हुआ है जो एन.एफ.एच.एस.-3 (2005-06) में 47% से एन.एफ.एच.एस.-4 (2015-16) में 27% और नवीनतम सर्वेक्षण में 23% हो गया है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 15-19 वर्ष की आयु की किशोर बालिकाओं को गर्भावस्था एवं प्रसव के दौरान जटिलताओं का जोखिम अधिक होता है।

कम आयु में विवाह से स्वास्थ्य संबंधी निहितार्थ

मातृ स्वास्थ्य जोखिम 

  • बाल विवाह कई स्वास्थ्य जोखिमों का कारण बनता है, जिसमें समय पूर्व गर्भधारण, मातृ मृत्यु दर में वृद्धि और स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुँच शामिल है। 
  • WHO के अनुसार, 15-19 वर्ष की महिलाओं की मौत का एक प्रमुख कारण गर्भावस्था एवं प्रसव के दौरान की जटिलताएँ हैं।
  • आंकड़ों से पता चलता है कि 15-19 वर्ष के आयु वर्ग की महिलाओं में से 3.8% शहरी महिलाएं और 7.9% ग्रामीण महिलाएं या तो मां बन गई थीं या गर्भवती थीं।
  • राष्ट्रीय नमूना पंजीकरण प्रणाली (SRS) के अनुसार, भारत में मातृ मृत्यु दर प्रति 100,000 जीवित जन्मों पर 97 है, जिसका प्रमुख कारण कम आयु में विवाह है। 
  • वर्ष 2019 में लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, 18 वर्ष की आयु से पहले विवाह करने वाली महिलाओं में प्रसूति संबंधी जटिलताओं की संभावना अधिक होती है।

शिशु स्वास्थ्य परिणाम 

  • कम आयु की माताओं से जन्म लेने वाले शिशुओं में वजन में कमी, समय पूर्व जन्म एवं नवजात जटिलताओं का जोखिम अधिक होता है।
  • NFHS-5 की रिपोर्ट है कि भारत का राष्ट्रीय एम.एम.आर. वर्ष 1990 में 556 से घटकर वर्ष 2016-18 के दौरान प्रति 100,000 जीवित जन्मों पर 113 हो गया है। यह भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी अधिक है जहाँ स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच बहुत निम्न है।
  • एक शोध के अनुसार, 18 वर्ष से कम आयु की माताओं से जन्म लेने वाले शिशुओं में अधिक आयु की माताओं से जन्म लेने वाले शिशुओं की तुलना में अपने पहले जन्मदिन (एक वर्ष की अवधि)  से पहले मृत्यु की आशंका 50% अधिक होती है।

मानसिक स्वास्थ्य  

  • नववधू (युवा दुल्हनों) को प्राय: कम आयु में ज़िम्मेदारियों, सामाजिक अलगाव एवं घरेलू हिंसा के कारण मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है।
  • भारत में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, कम आयु में विवाह करने वाली महिलाओं में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ होने की संभावना अधिक होती है, जिसमें अवसाद एवं चिंता शामिल है। 

विवाह की कानूनी आयु में वृद्धि के लाभ

शिक्षा एवं आर्थिक विकास के अधिक अवसर 

  • देर से विवाह होने से महिलाएँ उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकती हैं और रोज़गार संभावनाओं को बेहतर बना सकती हैं।
  • भारत में 15 से 59 वर्ष की आयु की महिलाओं के लिए श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) 2019-20 के दौरान 32.3% थी। यह पुरुषों के मुकाबले (81.2% से) बहुत कम थी।
  • संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की एक रिपोर्ट के अनुसार, शिक्षा के प्रत्येक अतिरिक्त वर्ष से महिला की संभावित आय में 10% की वृद्धि हो सकती है। 

बेहतर स्वास्थ्य साक्षरता

  • शिक्षा का संबंध बेहतर स्वास्थ्य साक्षरता से है। शिक्षित महिलाएँ स्वास्थ्य संबंधी जानकारी को समझने, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँचने और प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में सूचित विकल्प बनाने की संभावना अधिक रखती हैं। 
  • उदाहरण के लिए, जर्नल ऑफ एडोलसेंट हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, शिक्षित महिलाओं में मातृ स्वास्थ्य सेवाओं का उपयोग करने और प्रसवपूर्व देखभाल के प्रयास की संभावना अधिक होती है।

सशक्तिकरण एवं स्वायत्तता

  • विवाह की कानूनी आयु में वृद्धि से महिलाओं को उनके जीवन एवं निर्णयों पर अधिक नियंत्रण देकर सशक्त बनाया जा सकता है।
  • सशक्त महिलाओं में सुरक्षित यौन व्यवहारों पर संवाद करने, गर्भनिरोधक का उपयोग करने और स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में जागरूक होने की संभावना अधिक होती है।
  • विश्व आर्थिक मंच द्वारा लैंगिक समानता सूचकांक इस बात पर प्रकाश डालता है कि उच्च लैंगिक समानता वाले देश महिलाओं एवं बच्चों के लिए बेहतर स्वास्थ्य परिणाम प्रदर्शित करते हैं।

बाल विवाह के संबंध में सरकारी पहल 

बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006

  • यह अधिनियम 21 वर्ष से कम आयु के पुरुष और 18 वर्ष से कम आयु की महिला को नाबालिक के रूप में परिभाषित करता है।
  • यह बाल विवाह करने वाले या कराने वाले या उसे बढ़ावा देने वाले लोगों के लिए दंड निर्धारित करता है, जिसमें कारावास और जुर्माना शामिल है।

किशोर न्याय (बाल देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 

  • यह अधिनियम कानून मुद्दों में वांछित या कानूनी मामलों में फंसे बच्चों और संरक्षण की ज़रूरत वाले बच्चों की देखभाल व सुरक्षा प्रदान करता है।
  • यह बच्चों को बाल विवाह एवं संबंधित मुद्दों से संरक्षण की आवश्यकता पर भी जोर देता है।

निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009

  • यह कानून 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित करता है। 
  • यह अप्रत्यक्ष रूप से परिवारों को बालिकाओं की शिक्षा को प्राथमिकता देने के लिए प्रोत्साहित करके बाल विवाह का मुकाबला करता है।

यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012

यह अधिनियम बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए कठोर उपाय करता है, जिसमें नाबालिगों के साथ यौन गतिविधियों के खिलाफ प्रावधान शामिल हैं। बाल विवाह के परिणामस्वरूप भी ऐसी स्थिति हो सकती है।

राष्ट्रीय महिला सशक्तिकरण नीति, 2001

यह नीति बाल विवाह को समाप्त करने की आवश्यकता पर जोर देती है और इस प्रथा से निपटने के उद्देश्य से महिलाओं के लिए शिक्षा एवं आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देती है।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ पहल (2015) 

इस पहल का उद्देश्य बालिकाओं की शिक्षा को बढ़ावा देना और लैंगिक भेदभाव को समाप्त करना है। इसमें बाल विवाह की रोकथाम और बालिका शिक्षा का समर्थन करने के उद्देश्य से परिवारों को प्रोत्साहित करने के लिए जागरूकता अभियान शामिल हैं।

एकीकृत बाल संरक्षण योजना (ICPS) 

  • यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसे केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा 2009-10 में क्रियान्वित किया गया था।
  • इसका उद्देश्य कानूनी मुद्दों में संघर्षरत बच्चों के साथ-साथ देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों के लिए सुरक्षित वातावरण बनाना है।
  • इसमें कानूनी सहायता एवं शैक्षिक अवसरों के माध्यम से बाल विवाह को रोकने के उपाय शामिल हैं।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM)

इस पहल का उद्देश्य सुलभ स्वास्थ्य सेवाएँ, विशेष रूप से मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना है। यह महिलाओं के लिए प्रसवपूर्व एवं प्रसवोत्तर पर्याप्त देखभाल सुनिश्चित करने के लिए कार्य करता है।

बाल विवाह रोकथाम के लिए सुझाव

कानूनी प्रवर्तन को मजबूत करना 

  • यद्यपि बाल विवाह की रोकथम के लिए कानून मौजूद हैं किंतु उनका प्रवर्तन प्राय: कमज़ोर होता है। कानूनी ढाँचे को मजबूत करना और बाल विवाह में मदद करने वालों के लिए सख्त दंड सुनिश्चित करना इस प्रथा को रोक सकता है।
    • उदाहरण के लिए, बाल विवाह की उच्च दर वाले समुदायों में नियमित निरीक्षण करना मददगार हो सकता है।

सामुदायिक जागरूकता कार्यक्रम

  • देरी से विवाह के लाभों के बारे में समुदायों को शिक्षित करने के लिए जमीनी स्तर पर अभियान चलाना सांस्कृतिक मानदंडों में परिवर्तन कर सकता है।
  • इसके सफल उदाहरणों में महाराष्ट्र में ‘कौशल सखी’ (2016 में शुभारंभ) पहल है। यह महिलाओं की गुणवत्तापूर्ण गतिशीलता की समस्या से निपटने के लिए यू.एन.डी.पी. और महाराष्ट्र सरकार की एक पहल है। 

शिक्षा के लिए प्रोत्साहन 

  • परिवारों को अपनी बेटियों को स्कूल भेजने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना विवाह दर को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है। 
  • उदाहरण के लिए, बिहार में सशर्त नकद हस्तांतरण जैसे कार्यक्रम उन परिवारों को वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं जो अपनी बेटियों के लिए माध्यमिक शिक्षा पूरी करना सुनिश्चित करते हैं।

स्वास्थ्य सेवा पहुँच और शिक्षा 

  • युवा महिलाओं के लिए प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा तक पहुँच को बढ़ाना उन्हें सूचित विकल्प बनाने के लिए सशक्त बना सकता है। 
  • स्कूली बालिकाओं को उनके अधिकारों एवं स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देने के लिए व्यापक यौन शिक्षा कार्यक्रम को शामिल किया जा सकता है।

कानूनी सुरक्षा उपाय 

  • 18-21 वर्ष की आयु के वयस्कों के बीच सहमति से बनाए गए संबंधों को अपराध मानने से बचने के लिए सावधानीपूर्वक कानून बनाया जाना चाहिए। 
  • कानूनी ढाँचे में युवा महिलाओं की सुरक्षा और उनके अपने जीवन के निर्णय लेने के अधिकार के बीच संतुलन होना चाहिए।

गैर सरकारी संगठनों के साथ सहयोग

  • महिलाओं के अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करने वाले गैर-सरकारी संगठनों के साथ साझेदारी करके बाल विवाह से निपटने के प्रयासों को बढ़ाया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए, प्लान इंडिया और सेव द चिल्ड्रन जैसे संगठन बाल विवाह को रोकने एवं शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए समुदाय-आधारित परियोजनाओं पर सक्रिय रूप से काम करते हैं।

प्रौद्योगिकी का उपयोग  

  • बाल विवाह के परिणामों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना प्रभावी हो सकता है।
  • मोबाइल ऐप एवं सोशल मीडिया अभियान ग्रामीण समुदायों तक जानकारी का प्रसार कर सकते हैं, जिससे संसाधन सुलभ एवं आकर्षक बन सकते हैं।

निगरानी एवं मूल्यांकन 

बाल विवाह में कमी लाने के उद्देश्य से कार्यक्रमों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने के लिए मजबूत निगरानी प्रणाली स्थापित करना महत्वपूर्ण है। नियमित मूल्यांकन सफल रणनीतियों और सुधार की आवश्यकता वाले क्षेत्रों में अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं।

निष्कर्ष

  • भारत में महिलाओं के लिए विवाह की कानूनी आयु में वृद्धि करना स्वास्थ्य परिणामों में सुधार और महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। 
  • सरकारी पहल एक मजबूत आधार प्रदान करती है किंतु सार्थक बदलाव के लिए कानूनी प्रवर्तन, सामुदायिक शिक्षा एवं विभिन्न हितधारकों के साथ सहयोग में निरंतर प्रयास आवश्यक हैं। 
  • सांस्कृतिक मानदंडों को संबोधित करके और शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवा तक लड़कियों की पहुँच सुनिश्चित करके भारत एक ऐसे भविष्य की ओर बढ़ सकता है जहाँ कम आयु में विवाह महिलाओं के स्वास्थ्य तथा कल्याण के लिए बाधा नहीं रह जाएगी।
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