(प्रारंभिक परीक्षा, विषय:भारतीय राजतंत्र और शासन, संविधान से संबंधित विषय)
(मुख्य परीक्षा, प्रश्नपत्र 2,विषय: भारतीय संविधान में संशोधन,महत्वपूर्ण प्रावधान)
संदर्भ
- बच्चों (18 वर्ष से कम) को यौन शोषण से बचाने हेतु वर्ष 2012 में भारत सरकार द्वारा बाल यौन शोषण अपराध अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences- POCSO Act) अधिनियमित किया गया था।
- इस अधिनियम में उल्लिखित उद्देश्य तथा कारणों में स्वीकार किया गया कि बच्चों के विरुद्ध हो रहे कई यौन शोषण अपराध के लिये वर्तमान कानून में न तो विशेष प्रावधान है, न ही पर्याप्त दंड हैं। अतः इसे मज़बूत बनाने हेतु अभी और प्रयास करने होंगे।
पॉक्सो अधिनियम की ज़रुरत क्यों पड़ी?
- भारत अपनी संस्कृति के लिये पूरे विश्व में जाना जाता है और इस संस्कृति में बच्चों को ईश्वर का रूप माना जाता है, किंतु समय-समय पर विदेशी आक्रान्ताओं के भारत में प्रवेश करने के कारण प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक भारतीय समाज में कई बदलाव आए।
- हर बार अलग-अलग जगह से आये आक्रान्ताओं के आचरण से समाज परिचित होता था,उनकी अच्छाइयों के साथ –साथ बुराइयाँ भी समाज में व्याप्त हो रही थीं; जैसे ,मुग़ल काल में बच्चों को खरीदा जाता था,आधुनिक युग में उनसे बंधुआ मज़दूरी कराई जाती थी,अंग्रेजों के समय कम उम्र के बच्चों को कारखानों में कामगार के रूप में लगाया जाता था।
- उस दौरान बच्चों के साथ यौन शोषण भीकिया जाता होगा,किंतु उस समय की व्यवस्था के हमारे पास कोई पुख्ता प्रमाण नहीं हैं। अतः वर्तमान में इस अधिनियम को बनाना आवश्यक समझा गया।
- भारत में बच्चों को पूर्णतः विकसित नागरिक नहीं माना जाता अतः कई मामलों में उनके जीवन मूल्य तथा उनसे जुड़ी अभिवृत्तियों को सार्वजनिक जीवन में प्रमुखता नहीं दी जाती।
- बच्चों को सिखाया जाता है कि उन्हें अपने से बड़ों का सम्मान बिना किसी तर्क के करना चाहिये तथा बच्चों के विचारों को तरजीह नहीं दी जाती।
- अगर किसी बच्चे का यौन शोषण किसी वयस्क महिला/पुरुष द्वारा किया गया है तो उसके अभिभावक या समाज द्वारा बच्चे को ही दोषी माना जाता है या इन बातों को छिपा दिया जाता है।
- पहली बार1998 में एक एन.जी.ओ. द्वारा यौन शोषण और इससे जुड़े अपराधों की गंभीरता पर अध्ययन किया गया, जिसमें 76% बच्चे इनके शिकार पाए गए।
- वर्ष 2007 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 13 राज्यों के 12,500 बच्चों को शामिल कर एक रिपोर्ट तैयार की थी,जिसमें से प्रत्येक दूसरा बच्चा यौन शोषण का शिकार पाया गया था।
पॉक्सोअधिनियम2012 के प्रमुख बिंदु
- इस अधिनियम में 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को यौन शोषण से सुरक्षा देने का प्रावधान है।
- इसमें पहली बार स्पर्श द्वारा या बिना स्पर्श के यौन शोषण के आयामों को सूचीबद्ध किया गया है।
- इस अधिनियम में यह प्रावधान भी किया गया कि बच्चों के यौन शोषण से सम्बंधित सभी साक्ष्यों को उनके अनुकूल माहौल बनाकर प्रस्तुत किया जाय, ताकि उनकी मानसिक अवस्था को स्वस्थ रखा जा सके।
- इस अधिनियम में अपराध के लिये उत्तरदाई कारकों को भी नज़रंदाज नहीं किया गया है।
- इसके अलावा यौन शोषण के उद्देश्य से की गई बाल तस्करी तथा आंगनवाड़ी केंद्रों में बच्चों के यौन शोषण से जुड़े अपराधों के लिये भी दंडात्मक प्रावधान किये गये हैं।
पॉक्सो(संशोधन) अधिनियम 2019 के प्रमुख बिंदु
- इस अधिनियम में कुछ महत्त्वपूर्ण संशोधन किये गए हैं जैसे,चाइल्ड पोर्नोग्राफी के लिये न्यूनतम 5 वर्ष की सज़ा का प्रावधान किया गयाहै।
- गंभीर यौन अपराधको बढ़ावा देने के लिये की गई चाइल्ड पोर्नोग्राफी के लिये न्यूनतम दंड सीमा 10 वर्ष तथा अधिकतम सज़ा के रूप में आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया है।
- चाइल्ड पोर्नोग्राफिक वस्तुओं को भंडारित करने के लिये न्यूनतम 5 वर्ष के दंड का प्रावधान किया गया है।
भारतीय दंड संहिता औरपॉक्सो अधिनियम में अंतर
- भारतीय दंड संहिता में महिला के साथ ‘इरादतन बल का प्रयोग करना या उसका शील हरण करने’ से जुड़े अपराधों के प्रावधान हैं जबकि पॉक्सो अधिनियम में किसी बच्ची को भिन्न-भिन्न तरीके से छूने तथा गलत तरीके से स्पर्श किये जाने से जुड़े प्रावधान हैं।
- दूसरा महत्त्वपूर्ण अंतर यह है कि भारतीय दंड सहितामें किसी भी आयु वर्ग के व्यक्ति के अपमान पर सज़ा निर्धारित है, किंतु पॉक्सो में केवल बच्चों से जुड़े प्रावधान ही शामिल हैं।
पॉक्सो अधिनियम में कमी
- यदि शारीरिक संबंध18 वर्ष से कम आयु के बच्चे की सहमती से बनाया गया हो तो किसे दोषी माना जायेगा, इस पर अधिनियम में विचार नहीं किया गया है।
- इस अधिनियम में यह स्पष्ट नहीं है कि यदि दो नाबालिक बच्चों के बीच शारीरिक संबंध बनता है तो उनकी देखभाल या सुरक्षा से जुड़े क्या प्रावधान हैं।
- बच्चे की आयु का निर्धारण करने के लिये किस तरह के दस्तावेज़ों की ज़रुरत होगी, अधिनियम में इससे जुड़ा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है।
न्यायिक तथा प्रशासनिक तथा व्यवहारिक समस्याएँ
- पॉक्सो अधिनियम की धारा 35 के तहतबच्चे की गवाही,अपराध की जाँच एक महीने में हो जानी चाहिये तथा न्यायिक प्रक्रिया एक साल के भीतर पूरी होनी चाहिये,पर वास्तव में ऐसा नहीं हो पाता है।
- न्यायलयों में हड़ताल या पीड़ित पक्ष के वकील की अनावश्यक लापरवाही के कारण न्याय प्राप्त करने में भी विलंब होता है।
- एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा, अंतरिम मुआवज़े का भी है, पीड़ित बच्चे को कम से कम समय में मुआवज़ा मिलने में अक्सर कागज़ी अड़चनें सामने आती हैं।
- एफ.आई.आर. दर्ज होने के बाद चिकित्सकीय जाँच प्रक्रिया में देरी की वजह से भी अक्सर पीड़ित को न्याय मिलने में देरी होती है।
निष्कर्ष
बाल यौन अपराध के विषय पर समाज का जागरूक होना अत्यंत आवश्यक है,साथ ही पुलिस और न्यायिक कार्यवाही में आने वाली व्यावहारिक या प्रशासनिक समस्याओं को भी दूर किया जाना चाहिये ताकि पीड़ित को न्याय मिलने में विलंब न हो।