(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 2: भारतीय संविधान, महत्त्वपूर्ण प्रावधान; सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 3: आपदा और आपदा प्रबंधन)
पृष्ठभूमि
- केंद्र सरकार ने देश के सभी ज़िलों को रेड, ऑरेंज तथा ग्रीन ज़ोन के रूप में वर्गीकृत किया है। क्षेत्रों का यह वर्गीकरण लॉकडाउन प्रतिबंधों को योजनाबद्ध तरीके से हटाने के लिये किया गया था। परंतु कुछ राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने अपने कुछ क्षेत्रों/ज़िलों के रेड ज़ोन के रूप में वर्गीकृत किये जाने पर यह कहते हुए आपत्ति जताई है कि ये क्षेत्र बहुत बड़े हैं।
- इस संदर्भ में उपर्युक्त राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों का यह पक्ष है कि यदि किसी ज़िले के एक निश्चित हिस्से से ही कोरोना संक्रमण के मामले सामने आए तो पूरे ज़िले में आर्थिक गतिविधियों को रोकने की आवश्यकता नहीं थी।
- इसके अलावा, केरल (जो सम्भवतः COVID-19 के खिलाफ सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला राज्य है) को केंद्र सरकार द्वारा एक आदेश के माध्यम से राज्य को प्रतिबंधों में छूट देने के मामले में सावधान रहने को कहा गया था। केंद्र के इस निर्देश से यह भी स्पष्ट होता है कि उसे इस मामले में राज्य सरकार की बुद्धिमत्ता और निर्णय पर भरोसा नहीं था।
संघीय योजना और अवशिष्ट शक्तियाँ (Federal Scheme and Residual Powers)
- संघीय योजना के तहत, संसद संघ सूची के विषयों पर कानून बना सकती है, जबकि राज्य विधायिका राज्य सूची के विषयों पर कानून बना सकती है। अगर समवर्ती सूची की बात करें तो इन विषयों पर संसद तथा राज्य विधानमंडल दोनों समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बना सकते हैं।
- संविधान के अनुच्छेद 248 के तहत ‘अवशिष्ट शक्तियों’ पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है।
- सामंजस्यपूर्ण निर्माण (harmonious construction) के नियम के मुताबिक, विधायी सूचियों के सभी विषयों या प्रविष्टियों की सामंजस्यपूर्ण तरीके से व्याख्या की जानी चाहिये।
- दो या दो से अधिक प्रविष्टियों के बीच किसी भी अधिव्यापन (overlap) की स्थिति में, केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कानून को प्राथमिकता मिलेगी।
- अंत में, अनुच्छेद 73 और 162 के अनुसार, केंद्र और राज्यों की कार्यकारी शक्ति उनकी सम्बंधित विधायी शक्तियों के साथ समव्यापी है, अर्थात् उन्हें ये विधायी शक्तियाँ अपने-अपने विधायी क्षेत्र में विशेष और समानरूप से प्रदत्त हैं।
- समव्यापी एवं सुसंगत विधायी और कार्यकारी शक्ति का मतलब है, केंद्र और राज्य सरकारें केवल उन मामलों में कार्यकारी कार्रवाई कर सकती हैं, जहाँ उनके पास क्रमशः कानून बनाने की शक्तियाँ हैं।
- उल्लेखनीय है कि आपदा प्रबंधन का उल्लेख न तो राज्य सूची में है, और न समवर्ती सूची में। अतः अनुच्छेद 248 के तहत, संघ सूची की प्रविष्टि संख्या 97 के समानांतर आपदा प्रबंधन अधिनियम को केंद्र द्वारा लागू किया जा सकता है।
आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के उपयोग से जुड़ी कानूनी चुनौतियाँ
- आपदा प्रबंधन अधिनियम आपदा के किसी भी प्रभाव को कम करने के लिये केंद्र को राज्यों को दिशा-निर्देश, निर्देश या आदेश जारी करने की अनुमति देता है।
- अधिनियम के तहत 'आपदा' की परिभाषा काफी व्यापक है और शाब्दिक रूप से कहा जाए तो इसमें महामारी भी शामिल होगी।
- इस अधिनियम के अनुसार, केंद्र सरकार के पास महामारी से निपटने के लिये राज्य सरकारों को दिशा-निर्देश जारी करने की शक्तियाँ हैं।
- हालाँकि, राज्य सूची की की प्रविष्टि संख्या 6 के तहत 'सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता' राज्य सूची का एक विषय है। इसका अर्थ यह है कि राज्यों को सार्वजनिक स्वास्थ्य से सम्बंधित विषयों पर कानून बनाने और कार्य करने का विशेष अधिकार है।
- उच्चतम न्यायलय ने भी अनेक अवसरों पर यह स्वीकार किया है कि संघवाद संविधान की एक मूल विशेषता है और राज्य सम्प्रभु हैं। अतः आपदा प्रबंधन अधिनियम को महामारी से जुड़े विषयों पर लागू नहीं किया जा सकता है, क्योंकि सार्वजनिक स्वास्थ्य पर कानून बनाने की शक्ति विशेष रूप से राज्यों के पास है।
- इसके अलावा, राज्य सूची की प्रविष्टि संख्या 29 के तहत, संसद और राज्य विधानमंडल दोनों ही संक्रामक रोगों के अंतर-राज्यीय प्रसार से जुड़े मामलों पर कानून बनाने के लिये सक्षम हैं।
- इसलिये, सैद्धांतिक रूप से, संसद मात्र वह कानून ही पारित करने के लिये सक्षम होगी जो केंद्र सरकार को COVID-19 जैसी बीमारी के अंतर-राज्यीय प्रसार को रोकने के लिये राज्यों को निर्देश जारी करने की अनुमति देता है।
- राज्यों का मानना है कि ''संक्रामक रोगों के अंतर-राज्यीय प्रसार की रोकथाम'' राज्य सूची में अंतर्निहित एक विशिष्ट विधायी विषय है, जिसे संसद की अवशिष्ट विधायी शक्तियों से बाहर रखा जाना चाहिये।
आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005
- 23 दिसंबर, 2005 को आपदा प्रबंधन अधिनियम को अधिनियमित किया।
- इस अधिनियम में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के गरहन की परिकल्पना की गई थी। साथ ही, सम्बंधित सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की अध्यक्षता वाले राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) के गठन की भी बात की गई।
- आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत 27 सितंबर, 2006 को औपचारिक रूप से एन.डी.एम.ए. का गठन किया गया था। इसके अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री और नौ अन्य को सदस्यों के रूप में नामित किया जाता है।
- आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अनुसार, आपदा के रूप में निम्न घटनाओं को परिभाषित किया गया है- प्राकृतिक या मानव निर्मित कारणों से उत्पन्न किसी भी क्षेत्र में कोई तबाही, दुर्घटना, आपदा अथवा गम्भीर घटना या लापरवाही, जिसके परिणामस्वरूप जन-धन तथा पर्यावरण की काफी क्षति हुई हो।
- गृह मंत्रालय ने आपदा को "एक ऐसी सामाजिक विपत्ति के रूप में परिभाषित किया है जो व्यापक मानवीय, वस्तुओं सम्बंधी या पर्यावरणीय क्षति का कारण बनती है।
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महामारी रोग अधिनियम, 1897 के तहत केंद्र की भूमिका
- महामारी रोग अधिनियम, 1897 का उद्देश्य "खतरनाक महामारियों के प्रसार" को रोकना है।
- इस अधिनियम के तहत, राज्य सरकारों के पास संक्रामक बीमारी के प्रकोप या प्रसार को रोकने का विशेषाधिकार है।
- इस अधिनियम के तहत केंद्र सरकार की शक्तियाँ सीमित हैं, केंद्र सरकार इस दौरान विदेश से आने या जाने वाले व्यक्तियों के निरीक्षण से सम्बंधित उपाय ही कर सकती है।
- यदि अधिनियम में संशोधन किया भी जाए, तो यह केंद्र सरकार को राज्य के भीतर महामारी को रोकने के सम्बंध में राज्यों को निर्देश जारी करने का अधिकार नहीं देगा।
महामारी रोग अधिनियम, 1897
- महामारी रोग अधिनियम, स्वाइन फ्लू, डेंगू और हैजा जैसी बीमारियों के प्रकोप से निपटने के लिये देश भर में लागू किया जाता है।
- आज़ादी से पूर्व तत्कालीन औपनिवेशिक सरकार ने 1890 के दशक में बॉम्बे प्रेसीडेंसी में फैले बुबोनिक प्लेग महामारी से निपटने के लिये इस अधिनियम को पेश किया था।
- वर्ष 1897 में, जब यह लागू हुआ था तब लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने अपने समाचार पत्रों (केसरी व मराठा) के माध्यम से औपनिवेशिक सरकार द्वारा प्लेग के इलाज और उपचार में विफल रहने की आलोचना की थी और इस वजह से उन्हें सश्रम करावास का दंड भी मिला था।
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निष्कर्ष
राज्यों को विशिष्ट अधिकार देने वाले महामारी रोग अधिनियम का सहारा लेने की बजाय, केंद्र ने आपदा प्रबंधन अधिनियम लागू किया है। केंद्र सरकार द्वारा जारी किये गए दिशानिर्देशों का पालन करने के लिये राज्य कानूनी रूप से बाध्य नहीं हैं, साथ ही, वे शीर्ष अदालत के समक्ष इन दिशानिर्देशों को चुनौती दे सकते हैं।