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हथकड़ी लगाने से संबंधी विधिक प्रावधान

(प्रारंभिक परीक्षा-  भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान, लोकनीति, अधिकारों संबंधी मुद्दे इत्यादि)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान, शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष)

संदर्भ

हाल ही में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने ‘सुप्रित ईश्वर डिवेट बनाम कर्नाटक राज्य वाद’ में पुलिस केस डायरी में कारण दर्ज किये बिना एक आरोपी को हथकड़ी लगाने की क्षतिपूर्ति के रूप में दोषी पुलिस अधिकारी से दो लाख रुपये की राशि वसूलने की स्वतंत्रता राज्य सरकार को दी है।

हथकड़ी लगाने के सिद्धांत

  • कर्नाटक उच्च न्यायालय के अनुसार केवल ‘चरम परिस्थितियों’ में ही हथकड़ी लगाई जा सकती है, उदाहरणस्वरुप जहां अभियुक्त/विचाराधीन कैदी के हिरासत से भागने या स्वयं को नुकसान पहुँचाने या दूसरों को नुकसान पहुँचाने की आशंका हो।
  • साथ ही, गिरफ्तार करने वाले अधिकारी को हथकड़ी लगाने के कारणों को दर्ज करना आवश्यक है, जिन्हें न्यायिक जाँच के दौरान न्यायालय में प्रस्तुत करना होता है। 
  • तीन परिस्थितियों में किसी व्यक्ति को कानूनी रूप से हथकड़ी लगाई जा सकती है। 
  • अभियुक्त की गिरफ्तारी पर और उसे मजिस्ट्रेट के सामने पेश किये जाने से पूर्व
  • किसी विचाराधीन कैदी (Undertrail Prisoner) को जेल से न्यायालय और वापस ले जाने के दौरान 
  • किसी दोषी (Accused) को जेल से न्यायालय और वापस ले जाने के दौरान। 
  • हथकड़ी के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रेम शंकर शुक्ला बनाम दिल्ली प्रशासन वाद (1980) में निर्णय दिया कि एकमात्र परिस्थिति में हथकड़ी लगाई जा सकती है जब अभियुक्त को भागने से रोकने के लिये कोई अन्य उचित विकल्प उपलब्ध न हो। 
  • साथ ही, यदि किसी गिरफ्तार या दोषी की सुरक्षा बढ़ाकर भागने से रोका जा सकता है, तो ऐसी परिस्थिति में हथकड़ी लगाने के बजाय उसकी सुरक्षा में बढ़ोतरी एक आदर्श विकल्प है।

क्षतिपूर्ति पर न्यायालय का विचार 

  • न्यायालय गिरफ्तार व्यक्ति से पूछताछ के बाद हथकड़ी लगाने के कारणों को स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है।
  • आरोपी या विचाराधीन कैदी या अपराधी सभी मामलों में हथकड़ी लगाने के सिद्धांत समान रहते हैं। हालांकि, यदि कोई व्यक्ति न्यायिक हिरासत में है, तो आकस्मिक परिस्थितियों को छोड़कर हथकड़ी लगाने के लिये न्यायालय की अनुमति आवश्यक है।
  • महाराष्ट्र राज्य बनाम रविकांत एस पाटिल वाद (1991) में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने पुलिस निरीक्षक को अनुच्छेद 21 के उल्लंघन के लिये जिम्मेदार ठहराया और मुआवजे के भुगतान का आदेश दिया।
  • हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिस अधिकारी को व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं माना, क्योंकि उसने अपनी आधिकारिक क्षमता के अनुरूप कार्य किया था।
  • साथ ही, सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश में संशोधन करते हुए राज्य (पुलिस निरीक्षक को नहीं) को मुआवजे का भुगतान करने का निर्देश दिया। 
  • इस प्रकार, कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुरूप प्रतीत नहीं होता है।

 समाधान

  • हथकड़ी लगाने के संबंध में किसी विद्वेष के मामलें में अधिकारी के विरुद्ध सख्त विभागीय कार्रवाई आवश्यक। 
  • केस डायरी में हथकड़ी लगाने के कारणों का उल्लेख करना आवश्यक हो।
  • मुआवजे के भुगतान का आदेश देने के बजाय सेवा आचरण नियमों के तहत दोषी अधिकारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करना अधिक उचित।
  • राज्य सरकारों द्वारा समय-समय पर पुलिस की गतिविधियों, अतिरिक्त जनशक्ति और तकनीकी उपकरणों की आवश्यकता की समीक्षा। 
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