(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय घटनाक्रम, लोकनीति, अधिकारों संबंधी मुद्दे) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप, जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।) |
संदर्भ
सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिक विवाह को क़ानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली पुनर्विचार याचिका को खारिज़ कर दिया है। न्यायालय का तर्क है कि विधि निर्माण संसद का अधिकार क्षेत्र है।
भारत में समलैंगिक विवाह की विधिक स्थिति
- वर्ष 2023 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने ‘संस्थागत सीमाओं’ का हवाला देते हुए विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के प्रावधानों को रद्द करने या उसमें परिवर्तन करने से इनकार कर दिया था।
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार समलैंगिक युगल संविधान के तहत मौलिक अधिकार के रूप में अपने विवाह का दावा नहीं कर सकते हैं।
न्यायपालिका का पक्ष
- विवाह का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिक विवाह पर विचार की दृष्टि से विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के प्रावधानों को रद्द करने या उसकी नई व्याख्या करने से भी इनकार कर दिया।
- हालाँकि, न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह समलैंगिक समुदाय के साथ वस्तु एवं सेवाओं तक पहुँच में भेदभावरहित व्यवहार को सुनिश्चित करे।
- सर्वोच्च न्यायालय ने विवाह एवं धर्म की जटिल व परस्पर संबद्ध प्रकृति पर विचार करते हुए तर्क दिया कि न्यायालय विवाह को नियंत्रित करने वाले पर्सनल लॉ (Personal Laws) की नई व्याख्या नहीं करेगा।
- इससे पूर्व ‘नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ’ (2018) वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था।
केंद्र सरकार का पक्ष
विशेष विवाह अधिनियम के संबंध में
- समलैंगिक विवाह तथा भारत में प्रचलित एवं मान्य विवाह में समानता लाने की प्रक्रिया में 160 कानून प्रभावित होंगे।
- विशेष विवाह अधिनियम के तहत कानून निर्माताओं का इरादा केवल विषमलैंगिक विवाहों को शामिल करने का था।
- विशेष विवाह अधिनियम के तहत पत्नी विवाह के बाद बलात्कार, गुदामैथुन या पाश्विक आचरण के आधार पर तलाक की मांग कर सकती है।
- यह अधिकार विशेष रूप से पत्नी को प्रदान किया गया है किंतु समलैंगिक विवाह के मामले में इस अधिकार को लेकर भ्रम है।
विवाह के विनियमन में चुनौती के संबंध में
- समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने से भविष्य में यौन अभिविन्यास की स्वतंत्रता एवं स्वायत्तता पर तर्क देते हुए विवाह की निषिद्ध डिग्री को भी चुनौती दी जा सकती है।
- विवाह की निषिद्ध डिग्री का अर्थ है कि कोई व्यक्ति अपने वंशजों, जैसे- माता-पिता, दादा-दादी से विवाह नहीं कर सकता है।
- केंद्र सरकार ने समलैंगिक युगलों के विवाह को विधिक मान्यता दिए बिना उनकी ‘मानवीय चिंताओं’ को संबोधित करने के लिए कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समिति बनाने का प्रस्ताव दिया है।