केरल में ‘लेप्टोस्पायरोसिस’ (Leptospirosis) के लगातार बढ़ते मामले एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता के रूप में उभरा है। इससे कई लोगों की मौत भी हो चुकी है।
लेप्टोस्पायरोसिस के बारे में
- क्या है : बैक्टीरिया (जीवाणु) जनित एक जूनोटिक बीमारी
- जूनोटिक से तात्पर्य है कि यह जानवरों के माध्यम से व्यक्तियों में प्रसारित होता है।
- अन्य नाम : रैट फीवर
- बैक्टीरिया : जानवरों में, विशेषकर चूहों के मूत्र में पाए जाने वाले लेप्टोस्पाइरा (Leptospira) बैक्टीरिया के कारण
- यह बैक्टीरिया घाव एवं श्लेष्मा झिल्ली के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है।
- चूहों के अलावा खेत के पशु एवं कुत्ते भी इस बीमारी को फैला सकते हैं।
- सामान्य लक्षण : बुखार, मांसपेशियों में दर्द (Myalgia) एवं सिरदर्द
- हालाँकि, तीव्र श्वसन (Tachypnea), निम्न रक्तचाप (हाइपोटेंशन) व पीलिया जैसे अधिक गंभीर लक्षणों पर नज़र रखी जानी चाहिए।
- जोखिम : कुछ लोगों में कोई लक्षण न दिखाई देने के बाद भी इससे गुर्दे की दुर्बलता, मेनिन्जाइटिस, यकृत की समस्या व श्वसन की समस्या जैसी गंभीर जटिलताएँ संभव
- लेप्टोस्पायरोसिस का उपचार न होने की स्थिति में यह आंतरिक अंगों को तेज़ी से नुकसान पहुंचा सकता है, जिसके कारण इसे साइलेंट किलर कहा जाता है। इस बीमारी में मृत्यु दर उच्च होती है।
- प्रभावित आबादी : बाहर या जानवरों के साथ काम करने वाले लोगों को अधिक खतरा
- चावल व गन्ना की खेती में लगे लोग, किसान, सीवर के कर्मचारी, पशु चिकित्सक, डेयरी कर्मचारी एवं सैन्य कर्मचारी आदि इससे प्रभावित हो सकते हैं।
इसे भी जानिए!
- चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार अत्यधिक बारिश एवं जलभराव से मानसून के मौसम में लेप्टोस्पायरोसिस के प्रसार की संभावना बढ़ जाती है।
- खराब अपशिष्ट प्रबंधन के कारण भी इसके मामलों में वृद्धि होती है क्योंकि इससे चूहों की आबादी में वृद्धि हुई है।
- यह मुख्यत: आर्द्र उपोष्णकटिबंधीय एवं उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले देशों में स्थानिक है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया भर में प्रत्येक वर्ष लेप्टोस्पायरोसिस के 500,000 से ज़्यादा मामले सामने आते हैं। यह एक संभावित महामारी भी हो सकती है।
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