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भारत की खाद्य सुरक्षा प्रणाली से सबक

(प्रारंभिक परीक्षा : आर्थिक और सामाजिक विकास- गरीबी, समावेशन, जनसांख्यिकी, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल आदि )
(मुख्य परीक्षा, प्रश्नपत्र 3 : जन वितरण प्रणाली- उद्देश्य, कार्य, सीमाएँ, सुधार; बफर स्टॉक तथा खाद्य सुरक्षा संबंधी विषय)

संदर्भ

भारत में कोविड-19 संक्रमण की दूसरी लहर कमज़ोर होने के साथ, खाद्य सुरक्षा, गरीबों और वंचित वर्ग की आजीविका तथा महामारी के विनाशकारी प्रभाव पर ध्यान देना महत्त्वपूर्ण हो गया है।

वैश्विक भूख की समस्या

  • वैश्विक भूख में खतरनाक वृद्धि पर भी ध्यान देना आवश्यक है, जो अभी सामने आ रही है।
  • वर्ष 2020 में विश्व भूख की बिगड़ती स्थिति से जूझ रहा था, जो मुख्यतः कोविड-19 महामारी से संबंधित था।
  • महामारी के प्रभाव अभी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हुए हैं। हालाँकि, एक बहु-एजेंसी रिपोर्ट, ‘द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड’ का अनुमान है कि वैश्विक आबादी का लगभग दसवाँ हिस्सा, (लगभग 81.1 करोड़ लोग) विगत वर्ष कुपोषित था।

भारत की स्थिति

  • हरित क्रांति से संचालित खाद्य उत्पादन ने आत्मनिर्भरता की दिशा में प्रेरक यात्रा की, जिसके कारण भारत ने विगत कुछ वर्षों में खाद्य उत्पादन में प्रगति की है।
  • वर्ष 2020 में भारत ने 30 करोड़ टन से अधिक अनाज का उत्पादन किया तथा 10 करोड़ टन का खाद्य भंडारण किया था।
  • देश में विगत कुछ वर्षों में रिकॉर्ड फसल उत्पादन दर्ज किया गया है। वित्त वर्ष 2021 में भारत ने रिकॉर्ड 1.98 करोड़ टन चावल और गेहूँ का निर्यात किया।

महत्त्वपूर्ण सुरक्षा जाल

  • कोविड-19 के प्रभाव के कारण भारत में कमज़ोर और वंचित परिवारों को ‘लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली’ (TPDS) द्वारा खाद्य संकट के विरुद्ध बफर करना जारी रखा है।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से खाद्यान्न की माँग में वृद्धि की प्रत्याशा में केंद्र सरकार द्वारा शुरू किये गए प्रमुख उपायों में राज्यों को छह महीने के लिये अपने आवंटन को एक बार में उठाने की अनुमति देना शामिल है।
  • जैसा कि आँकड़ों से ज्ञात होता है, लॉकडाउन के दौरान सब्सिडीयुक्त और मुफ्त खाद्यान्नों के वितरण में अभूतपूर्व वृद्धि हुई थी।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली महामारी की चपेट में आए लाखों लोगों के लिये जीवन-रेखा बन गई है।

पात्रता में वृद्धि

  • खाद्य सुरक्षा परिदृश्य के एक गतिशील विश्लेषण और विभिन्न हितधारकों की प्रतिक्रिया ने भारत सरकार को वर्ष 2020 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के लाभार्थियों को दी गई पात्रताओं को बढ़ाने की अनुमति दी है।
  • उदाहरणार्थ, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) के तहत, 81.3 करोड़ एन.एफ.एस.ए. लाभार्थियों को अप्रैल से नवंबर 2020 में आठ महीने तक प्रति व्यक्ति प्रति माह अतिरिक्त 5 किलोग्राम खाद्यान्न और प्रति परिवार 1 किलोग्राम दाल मुफ्त प्रदान की गई है।
  • ‘आत्मनिर्भर भारत’ पैकेज के तहत 8 करोड़ प्रवासियों को प्रति माह 5 किलो खाद्यान्न मुफ्त में उपलब्ध कराया गया।
  • सरकार ने गैर-सरकारी संगठनों/नागरिक समाज संगठनों को भारतीय खाद्य निगम (FCI) के गोदामों से सीधे रियायती कीमतों पर चावल और गेहूँ खरीदने की अनुमति दी।
  • चावल विगत वर्ष 22 प्रति किलोग्राम (बाज़ार मूल्य 35 प्रति किलोग्राम) और गेहूँ 21 प्रति किलोग्राम (बाज़ार मूल्य 27 प्रति किलोग्राम) पर बेचा गया था।

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना

  • ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना’ को एन.एफ.एस.ए. के तहत कवर किये गए 81 करोड़ लाभार्थियों को कोविड-प्रेरित आर्थिक कठिनाइयों से राहत प्रदान करने के उद्देश्य से वर्ष 2020 में आठ माह के लिये संचालित किया गया था।
  • योजना के तीसरे चरण को इस वर्ष जून से दो माह के लिये फिर से क्रियान्वित किया गया था, तथा बाद में चौथे चरण के तहत इसे नवंबर तक बढ़ा दिया गया।
  • पी.एम.जी.के.ए.वाई. के तीसरे चरण के दौरान, आवंटित खाद्यान्न का लगभग 89 प्रतिशत लाभार्थियों को वितरित किया गया है।
  • मई में उक्त वितरण 94 प्रतिशत तक पहुँच गया है। विगत वर्ष आठ महीनों तथा इस वर्ष सात महीनों में पी.एम.जी.के.ए.वाई. का कुल परिव्यय 2,28,000 करोड़ रहा है।

    चुनौतियों का समाधान

    • कोविड-19 महामारी ने एक बार फिर खाद्य अधिकारों की ‘पहुँच और पोर्टबिलिटी’ के पहलुओं पर ध्यान आकर्षित किया है।
    • दिव्यांग व्यक्तियों, बुजुर्गों, एकल महिलाओं के नेतृत्व वाले परिवारों, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों, एच.आई.वी. प्रभावित व्यक्तियों, विस्थापित व्यक्तियों, शरणार्थियों, अनाथ बच्चों सहित जोखिम वाले समूहों को खाद्य सहायता सुनिश्चित करना आवश्यक है, ताकि कोई पीछे न छुट जाए।
    • भारत की सार्वजनिक खाद्य वितरण प्रणाली का पैमाना बहुत बड़ा है और निरंतर निगरानी और सुधार के माध्यम से संचालित हुआ है, जो कि सराहनीय है।
    • लेकिन सुभेद्य आबादी के तक पहुँच और समावेश को बेहतर बनाने के लिये अभी और प्रयास करने की आवश्यकता है।

    आगे की राह

    1. वन नेशन वन राशन कार्ड (ONORC) की शुरूआत

    • ‘वन नेशन वन राशन कार्ड’ योजना की शुरुआत एक ऐसा नवाचार है, जो ‘गेम चेंजर’ साबित हो सकता है, जिससे लाभार्थियों को देश में कहीं से भी अपने ‘खाद्य सुरक्षा के अधिकार’ को प्राप्त करने की अनुमति प्राप्त होती है।
    • यह योजना आपूर्ति शृंखला, वितरण और अगले चरण तक पहुँच का बड़े पैमाने पर डिजिटलीकरण करती है तथा सुनिश्चित करती है कि भारत में कहीं से भी किसी को लाभ प्राप्त हो सके।

    2. जलवायु परिवर्तन

    • जलवायु परिवर्तन का गंभीर प्रभाव कृषि और खाद्य सुरक्षा पर पड़ेगा , जिसके कारण गरीबों और कमज़ोर लोगों पर इसके परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं।
    • ऐसे कार्यक्रमों के लिये बड़े पैमाने पर प्रयासों की आवश्यकता है, जो ‘लचीली कृषि’ के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
    • आधुनिक कृषि बदलते मौसम के अनुकूल हो, फसलों की नई किस्मों, कुशल सिंचाई प्रणालियों तथा कृषि-जलवायु क्षेत्रों के अनुसार फसलों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

    3. खाद्य पदार्थों की बर्बादी को रोकना

    • उत्पादित सभी भोज्य पदार्थों का एक तिहाई बर्बाद हो जाता है, अतः इस नुकसान को रोकने के लिये प्रयास बढ़ाए जाने चाहिये।
    • खाद्य उत्पादन के लिये प्रयोग की जाने वाली ऊर्जा, दुनिया की कुल ऊर्जा उपभोग का लगभग 10 प्रतिशत है।
    • खाद्य हानि और खाद्य अपशिष्ट से जुड़ी वार्षिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन CO2 समकक्ष के लगभग 3.5 गीगाटन तक पहुँच जाती है।

    4. खाद्य प्रणाली में रूपांतरण

    • वर्ष 2021 आगामी संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन, विकास के लिये पोषण शिखर सम्मेलन और जलवायु परिवर्तन पर कोप-26 (COP-26) के साथ खाद्य प्रणालियों को रूपांतरण के माध्यम से ‘खाद्य सुरक्षा और पोषण’ को आगे बढ़ाने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है।
    • उक्त आयोजनों के परिणाम निश्चित रूप से ‘पोषण पर संयुक्त राष्ट्र दशक’ की दूसरी छमाही की कार्रवाई को आकार देंगे।

    निष्कर्ष

    उक्त परिवर्तन में भारत को एक केंद्रीय भूमिका निभानी होगी। साथ ही, एक ‘लचीला, न्यायसंगत और खाद्य-सुरक्षित’ विश्व की विचार प्रक्रियाओं और मॉडलों को संबोधित करने के लिये अनुभव और समाधान प्रदान करना होगा।

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