संदर्भ
- ‘भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण’ (TRAI) ने वाणिज्यिक के साथ-साथ नियंत्रित (Captive) उपयोग हेतु 'कम बिट दर के अनुप्रयोगों के लिये उपग्रह-आधारित संयोजकता (Connectivity) लाइसेंसिंग ढाँचे' के संबंध में एक परामर्श पत्र जारी किया है।
- दूरसंचार विभाग ने भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण अधिनियम, 1997 की धारा 11 (1) (a) के तहत 'कम बिट दर के अनुप्रयोगों के लिये उपग्रह-आधारित संयोजकता के संबंध में सुझाव प्रस्तुत करने का अनुरोध किया था।
उपग्रह-आधारित संयोजकता
- यह एक स्व-नियंत्रित संचार प्रणाली है। इसके अंतर्गत पृथ्वी से प्राप्त सिग्नल को ट्रांसपोंडर के साथ एकीकृत करके रिसीवर व रेडियो सिग्नल के ट्रांसमीटर के माध्यम से पृथ्वी पर वापस भेजा जाता है।
- इसकी सहायता से दूरसंचार प्रसारण, डी.टी.एच. सेवाओं, दूरस्थ शिक्षा व चिकित्सा, मौसम संबंधी जानकारी व आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास हुआ है।
कम-बिट-दर उपग्रह-आधारित संचार अनुप्रयोग
- कम बिट-दर अनुप्रयोग सेंसर-आधारित अनुप्रयोग हैं, जिनका उपयोग ए.टी.एम, ट्रैफ़िक प्रबंधन, वाहन ट्रैकिंग तथा इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स संबंधी उपकरणों में किया जाता है।
- इन अनुप्रयोगों में आपूर्ति शृंखला प्रबंधन, समय पर वितरण, वास्तविक समय आधारित अवस्थिति तथा दवा व भोजन जैसी प्रशीतित वस्तुओं का कोल्ड चेन प्रबंधन शामिल हैं।
- यह उन क्षेत्रों में स्मार्ट सिटीज़ स्थापित करने में सक्षम होगा, जहाँ स्थलीय नेटवर्क उपलब्ध नहीं है अथवा कवरेज अंतराल है।
उपग्रह-आधारित संयोजकता के लाभ
- भारत जैसे व्यापक भौगोलिक क्षेत्र वाले देश में उपग्रह आधारित संचार दूरस्थ तथा दुर्गम क्षेत्रों में कवरेज प्रदान कर सकता है। ट्राई के अनुसार, उपग्रह प्रौद्योगिकी की विशिष्टता व इससे होने वाले लाभ देश भर में संचार के बुनियादी ढाँचे का विकास करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
- उपग्रह संचार प्रौद्योगिकियों के विकास के साथ-साथ कम-बिट-दर के आधार पर नए प्रकार के अनुप्रयोग उभर रहे हैं। ऐसे अनुप्रयोगों के लिये कम लागत, श्रम तथा छोटे आकार के टर्मिनल्स की आवश्यकता होती है। ये न्यूनतम हानि के साथ सिग्नल ट्रांसफर के कार्य को प्रभावी ढंग से करने में सक्षम हैं।