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महिलाओं की गिरफ्तारी पर मद्रास उच्च न्यायालय का निर्णय

(मुख्य परीक्षा: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।)

संदर्भ 

मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने दीपा बनाम एस. विजयलक्ष्मी और अन्य मामले में निर्णय दिया कि सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले किसी महिला की गिरफ्तारी को प्रतिबंधित करने संबंधी भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 में उल्लेखित  कानूनी प्रावधान अनिवार्य न होकर निर्देशात्मक है।

हालिया निर्णय 

  • इस मामले में, एक महिला को रात 8 बजे गिरफ्तार किया गया था। उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश ने माना कि गिरफ्तारी दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 46(4) का उल्लंघन है। 
    • हालाँकि, उच्च न्यायालय की दो न्यायाधीशों वाली पीठ ने एक अपील में माना कि CrPC की धारा 46(4) अनिवार्य न होकर केवल निर्देशात्मक है।
  • मद्रास उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि सी.आर.पी.सी. की धारा 46(4) में प्रावधान का पालन न करने के परिणाम नहीं बताए गए हैं। 
    • ऐसे में यदि प्रावधान अनिवार्य होता तो विधानमंडल निश्चित रूप से गैर-अनुपालन के परिणामों के लिए प्रावधान करता। 
  • उच्च न्यायालय के अनुसार किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी करने वाला एक पुलिस अधिकारी एक सार्वजनिक कर्तव्य निभाता है। 
  • न्यायालय ने रेखांकित किया कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है जहाँ रात में एक महिला द्वारा जघन्य अपराध किया जाता है और अनुमति प्राप्त करने के लिए मजिस्ट्रेट उपलब्ध नहीं हो सकता है। 
    • ऐसी स्थिति में, आरोपी महिला भाग सकती है। इसलिए, प्रक्रिया का ऐसा यांत्रिक पालन सार्वजनिक हित को नुकसान पहुँचा सकता है।
  • न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि सी.आर.पी.सी. की धारा 46(4) को निर्देशात्मक और अनिवार्य न मानते हुए भी पुलिस इस प्रावधान को निरर्थक नहीं बना सकती। 
    • वैधानिक आवश्यकता का पालन न करने पर गिरफ्तारी को अवैध घोषित नहीं किया जा सकता है, लेकिन अधिकारी को प्रावधान का पालन न कर पाने के लिए स्पष्टीकरण देना पड़ सकता है।
    •  न्यायालय ने पुलिस को असाधारण परिस्थितियों को स्पष्ट करने के लिए  दिशा-निर्देश जारी करने का भी आदेश दिया।

महिलाओं को प्रदत्त सुरक्षा उपाय 

  • पुलिस द्वारा किसी महिला की गिरफ्तारी के लिए BNSS की धारा 43(5) (पूर्व में CrPC की धारा 46(4) के अनुरूप) के तहत दो सुरक्षा उपाय प्रदान किए गए हैं : 
    • असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले किसी महिला की गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। 
    • असाधारण परिस्थितियों में भी, महिला पुलिस अधिकारी को इस संबंध में लिखित रिपोर्ट देकर संबंधित क्षेत्राधिकार वाले मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति लेनी होगी।
  • सी.आर.पी.सी. की धारा 46(4) महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक लाभकारी प्रावधान है। 
    • हालाँकि, प्रावधान यह स्पष्ट नहीं करता है कि असाधारण स्थिति क्या होगी। 
  • इसके अलावा, धारा 46(1) के प्रावधान के अनुसार गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी को महिला के शरीर को तब तक नहीं छूना चाहिए, जब तक कि वह महिला पुलिस अधिकारी न हो या परिस्थितियों की अन्यथा आवश्यकता न हो।

सी.आर.पी.सी. की धारा 46(4) का उद्भव 

  • महिलाओं की हिरासत पर भारतीय विधि आयोग की 135वीं रिपोर्ट (1989) में सिफारिश की गई थी कि सामान्यतः सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले किसी भी महिला को गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए। 
    • इसके अनुसार यदि कोई असाधारण मामला है, तो तत्काल वरिष्ठ अधिकारी की पूर्व अनुमति प्राप्त की जानी चाहिए। 
    • यदि मामला अत्यधिक अत्यावश्यक है, तो तत्काल वरिष्ठ अधिकारी और मजिस्ट्रेट को कारणों के साथ गिरफ्तारी की रिपोर्ट दी जानी चाहिए। 
  • वर्ष 1996 में विधि आयोग की 154वीं रिपोर्ट में भी इसी तरह की सिफारिशें की गई थीं। 
  • विभिन्न विधि आयोगों कि सिफारिशों के पश्चात वर्ष 2005 में कुछ बदलावों के साथ सी.आर.पी.सी. की धारा 46(4) को शामिल किया गया था।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय 

  • एक मामले में, बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने राज्य को सभी पुलिस अधिकारियों को निर्देश जारी किया कि : 
    • किसी भी महिला को महिला कांस्टेबल की मौजूदगी के बिना हिरासत में नहीं लिया जाएगा। 
    •  किसी भी मामले में सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले महिला की गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। 
  • इस मामले में अपील के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणी की कि  किसी भी परिस्थिति में उक्त निर्देश का सख्ती से पालन करने से व्यावहारिक कठिनाइयाँ उत्पन्न होंगी।
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