- मलखम्भ या मल्लखम्भ दो शब्दों मल्ल (पहलवान या बलवान) तथा खम्भ (खम्भा या पोल) से मिलकर बना है।
- यह भारत का एक पारम्परिक खेल है, जिसमें खिलाड़ी लकड़ी के एक ऊर्ध्वाधर खम्भे या रस्सी के ऊपर तरह-तरह के करतब दिखाते हैं। इसकी उत्पत्ति महाराष्ट्र में हुई थी।
- वर्ष 2013 में मध्य प्रदेश द्वारा मलखम्भ को राजकीय खेल घोषित किया गया। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा मलखम्भ खेल से सम्बंधित प्रभाष जोशी पुरस्कार दिया जाता है।
- राष्ट्रीय स्तर पर इसके तीन प्रकार प्रचलित हैं -
1. फिक्स्ड/स्थायी मलखम्भ – इसमें ज़मीन में गढ़ी हुई 10 से 12 फीट ऊँची शीशम या सागौन (Teak) की लकड़ी (व्यास – 1.5 से 2 इंच तक) पर करतब दिखाया जाता है। इसका अभ्यास मुख्यतः पुरुषों द्वारा किया जाता है। इसे पोल मलखम्भ भी कहा जाता है।
2. हेंगिंग मलखम्भ – यह फिक्स्ड मलखम्भ का छोटा संस्करण है। इसमें सामान्यतः संतुलन अभ्यास किया जाता है। इसमें लकड़ी के एक खम्भे पर हुक तथा चेन की सहायता से ज़मीन से लगभग 4 फीट की ऊंचाई पर एक दूसरी लकड़ी को लटकाकर मलखम्भ का अभ्यास किया जाता है। इसका अभ्यास भी मुख्यतः पुरुषों द्वारा ही किया जाता है।
3. शेप मलखम्भ – यह मलखम्भ का आधुनिक प्रकार है। इसका अभ्यास मुख्यतः महिलाओं द्वारा किया जाता है। इसमें रस्सी की सहायता से विभिन्न यौगिक मुद्राओं का प्रदर्शन किया जाता है। इसे रोप मलखम्भ (Rope Mallakhamb) भी कहा जाता है।
अन्य महत्त्वपूर्ण बिंदु
- वर्ष 1981 में मलखम्भ फेडरेशन ऑफ़ इंडिया (एम.एफ.आई.) द्वारा मलखम्भ को पहली बार एक प्रतियोगी खेल के रूप में विकसित किया गया था। वर्ष 1981 में ही आयोजित प्रथम राष्ट्रीय चैंपियनशिप में पहली बार नियम निर्धारित किये गए थे।
- ध्यातव्य है कि मलखम्भ के पुनर्विकास में योगदान देने वाले उज्जैन (मध्यप्रदेश) निवासी बामशंकर जोशी और अन्य लोगों द्वारा एक अखिल भारतीय संगठन- ‘मलखम्भ फेडरेशन ऑफ़ इंडिया’ की स्थापना की गई।
- वर्ष 2016 में उज्जैन के मलखम्भ कोच योगेश मालवीय को द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया।