(प्रारंभिक परीक्षा : आर्थिक और सामाजिक विकास- सतत् विकास, गरीबी, समावेशन, जनसांख्यिकी, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : सामाजिक न्याय; स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास व प्रबंधन से संबंधित विषय) |
संदर्भ
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने ‘व्यक्तियों की गरिमा एवं स्वतंत्रता- मैनुअल स्कैवेंजरों के अधिकार’ विषय पर खुली चर्चा में सीवर लाइनों व सेप्टिक टैंकों के सफाई कर्मचारियों की मौत पर चिंता व्यक्त की है।
क्या है मैनुअल स्कैवेंजिंग
- यूएन इंडिया के अनुसार , मैनुअल स्कैवेंजिंग से तात्पर्य सूखे शौचालयों और सीवरों से मानव मल को हाथ से साफ करने, निपटान करने या संभालने की प्रथा से है। इसे सबसे निम्न स्तर का अपमानजनक व्यवसाय माना जाता है।
- भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग पर वर्ष 1993 से ही आधिकारिक तौर पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग के तीन रूपों की पहचान की है :
- सेप्टिक टैंकों की सफाई
- नालियों और सीवरों की सफाई
- सार्वजनिक सड़कों और शुष्क शौचालयों से मानव अपशिष्ट को हटाना
भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग के कारण
- ऐतिहासिक कारक : भारत में हाथ से मैला ढोने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है। गुप्त काल के दौरान हिंदू धर्म के उदय के साथ जाति-आधारित श्रम विभाजन अधिक कठोर हो गया। इसके बाद मुगल काल के दौरान पर्दा प्रथा ने इस प्रथा को अनिवार्य बना दिया गया।
- ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन ने अपशिष्ट प्रबंधन के लिए दलितों को नियुक्त करके इस प्रथा को अधिक संस्थागत बना दिया, जिससे जाति-आधारित व्यावसायिक भूमिकाओं को मजबूती मिली।
- जाति आधारित सामाजिक पदानुक्रम : भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग ऐतिहासिक रूप से जाति व्यवस्था से जुड़ी हुई है, जहां हाशिए पर स्थित जातियों को इस प्रकार के व्यवसायों में मजबूर किया जाता है।
- सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना 2011 के अनुसार, भारत में 180,657 परिवार आजीविका के लिए मैनुअल स्कैवेंजिंग में संलग्न हैं।
- वर्ष 2019 के एक अध्ययन के अनुसार, दलित उपजातियों के छह मिलियन परिवारों में से 40 से 60% सफाई कार्य में संलग्न हैं।
- वैकल्पिक रोजगार की कमी : मैनुअल स्कैवेंजर की गरीबी और सामाजिक बहिष्कार के कारण शिक्षा व कौशल विकास कार्यक्रमों तक सीमित पहुँच है जिसके कारण इन वर्गों के पास आजीविका के वैकल्पिक रोजगार अवसरों की कमी है।
- कानून का कमजोर क्रियान्वयन : मैनुअल स्कैवेंजर संबंधी क्रियाकलाप पर पहली बार वर्ष 1993 में मैनुअल स्कैवेंजर एवं शुष्क शौचालय निर्माण (निषेध) अधिनियम (MSCDL अधिनियम) द्वारा प्रतिबंध लगाया गया था। इसके तहत कानून के किसी भी प्रावधान का पालन न करने को संज्ञेय अपराध के रूप में दंडनीय माना गया।
- हालाँकि, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की एक भी वार्षिक रिपोर्ट में आज तक MSCDL अधिनियम के तहत कोई अपराध दर्ज नहीं किया गया है।
सम्बद्ध मुद्दे एवं चुनौतियाँ
- स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ : भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग से गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं, जिसमें श्वसन संबंधी समस्याएं, हैजा और तपेदिक तथा हेपेटाइटिस जैसी बीमारियों के संक्रमण का खतरा होता है।
- सामाजिक समस्याएँ : यह व्यवसाय सामाजिक कलंक, जाति-आधारित उत्पीड़न और आर्थिक शोषण को बढ़ावा देता है। इसके अलावा इस काम की अमानवीय प्रकृति मनोवैज्ञानिक आघात, चिंता एवं अवसाद का भी कारण बनती है।
- संसाधनों तक सीमित पहुँच : सामाजिक अलगाव, अशिक्षा एवं जागरूकता के अभाव के कारण इस व्यवसाय में नियोजित लोगों के पास सरकारी योजनाओं एवं संसाधनों तक सीमित पहुँच होती है जो उन्हें इसी व्यवसाय में संलग्न रहने के लिए मजबूर करता है।
- संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन : हाथ से मैला ढोने की प्रथा भारतीय संविधान में प्रदत्त अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है जो गरिमापूर्ण जीवन को सुनिश्चित करता है।
- उच्च मृत्यु दर : मैला ढोने वालों के बीच उच्च मृत्यु दर एक प्रमुख चिंता का विषय है।
- राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार वर्ष 1993 से 2024 के बीच भारत में सीवर/सेप्टिक टैंक से लगभग1,289 लोगों की मौत हुई है।
- इसमें सर्वाधिक मौतें तमिलनाडु (253) में हुईं, उसके बाद गुजरात (183), उत्तर प्रदेश (133) एवं दिल्ली (116) का स्थान रहा।
- इसके अलावा केवल पिछले पांच वर्षों (2019 से 2023) के दौरान सीवर और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई के कारण लगभग 377 लोगों की मौत हुई है।
- सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में बाधक : भारत सतत विकास एजेंडा 2030 का हस्ताक्षरकर्ता है। ऐसे में मैनुअल स्कैवेंजिंग स्वच्छ जल एवं स्वच्छता (लक्ष्य 6), सभ्य कार्य व आर्थिक विकास (लक्ष्य 8), असमानता में कमी (लक्ष्य 10) और शांति, न्याय तथा मजबूत संस्थाओं (लक्ष्य 10) से संबंधित सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की प्राप्ति मे बाधक है।
- डेनिश इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन राइट्स के अनुसार एस.डी.जी. के तहत परिभाषित 169 लक्ष्यों में से 156 मानवाधिकारों और लगभग 10 श्रम मानकों से संबंधित हैं। यह बहिष्कृत समुदायों और विभिन्न अधिकार-धारकों जैसे कि हाथ से मैला ढोने और स्वच्छता कार्य में लगे लोगों की प्रगति के मापन के महत्व को रेखांकित करता है।
मैनुअल स्कैवेंजिंग से संबंधित कानून/योजनाएँ
- मैला ढोने का कार्य एवं शुष्क शौचालयों का निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993 : यह अधिनियम मैला ढोने वालों के रोजगार एवं अस्वास्थ्यकर शौचालयों के निर्माण पर प्रतिबंध लगाता है। इसके तहत यह सुनिश्चित किया गया कि इस प्रथा में लिप्त लोगों को मानवीय सम्मान के साथ जीने के उनके अधिकार से वंचित न किया जाए। इस अधिनियम में उल्लंघन को संज्ञेय अपराध मानते हुए कारावास व जुर्माने का प्रावधान किया गया।
- मैनुअल स्कैवेंजिंग पुनर्वास स्वरोजगार योजना, 2007 (SRMS) : इस योजना का उद्देश्य मैनुअल स्कैवेंजरों और उनके आश्रितों को वैकल्पिक व्यवसायों के लिए सहायता प्रदान करना है।
- मैनुअल स्कैवेंजर के रूप में रोजगार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013: यह अधिनियम मैनुअल स्कैवेंजरों को नियोजित करने, अस्वास्थ्यकर शौचालयों के निर्माण तथा बिना सुरक्षात्मक उपकरणों के सीवरों और सेप्टिक टैंकों की मैनुअल सफाई पर प्रतिबंध लगाता है। इसमें मैनुअल स्कैवेंजरों और उनके परिवारों के पुनर्वास संबंधी प्रावधान भी हैं।
- अन्य प्रावधान : यह स्थानीय प्राधिकारियों, छावनी बोर्डों और रेलवे प्राधिकारियों पर अस्वास्थ्यकर शौचालयों का सर्वेक्षण करने तथा स्वच्छ सामुदायिक शौचालयों का निर्माण करने की जिम्मेदारी भी तय करता है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा दिए गए सुझाव
- प्रभावी कल्याण कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए बेहतर प्रतिनिधित्व और जमीनी स्तर पर निगरानी की आवश्यकता
- पुनर्वास कार्यक्रमों और न्यूनतम मजदूरी के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए सर्वेक्षण करना
- 2013 अधिनियम में सफाई कर्मचारियों और मैनुअल स्कैवेंजरों के बीच अंतर करना
- स्थायी आजीविका के लिए महिलाओं के नेतृत्व वाले स्वयं सहायता समूह को सशक्त बनाने के लिए सफाई के मशीनीकरण एवं प्रशिक्षण को प्रोत्साहित करना
- स्वच्छ भारत मिशन एवं नमस्ते योजनाओं के तहत मैनुअल स्कैवेंजिंग डाटा और सीवर मृत्यु की रिपोर्टिंग, बजट विश्लेषण और जागरूकता अभियानों में पारदर्शिता की आवश्यकता
- मैनुअल स्कैवेंजिंग और सीवर सफाई में शामिल लोगों के लिए क्षमता निर्माण प्रशिक्षण
- खतरनाक अपशिष्ट सफाई के लिए तकनीकी नवाचार लाने वालों को वित्तीय सहायता प्रदान करना
- डी-स्लेजिंग बाजार का पैनल बनाना और इसके संचालन को विनियमित करना
- सुरक्षा गियर उपलब्ध कराना और जागरूकता कार्यशालाओं का संचालन करना
- स्वास्थ्य बीमा, शिक्षा, आदि के लिए डाटाबेस बनाने के लिए हाथ से मैला ढोने में शामिल व्यक्तियों की पहचान करने के लिए निगरानी तंत्र की आवश्यकता
- सीवर लाइनों और सेप्टिक टैंकों की सफाई के लिए प्रौद्योगिकी/रोबोट का उपयोग करके एक पायलट परियोजना चलाने की आवश्यकता पर बल
इसे भी जानिए!
राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (National Commission for Safai Karamcharis)
- गठन : 12 अगस्त, 1994 को ‘राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग अधिनियम, 1993’ द्वारा एक वैधानिक निकाय के रूप में तीन वर्ष की अवधि के लिए
- इस अधिनियम की वैधता को बढ़ाया जाता रहा है। अंतत: वर्ष 2004 में ‘राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग अधिनियम, 1993’ को समाप्त कर दिया गया।
- नोडल मंत्रालय : वर्तमान में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अंतर्गत एक गैर-सांविधिक निकाय (अधिनियम की समाप्ति के बाद) के रूप में कार्यरत
- इसका कार्यकाल समय-समय पर सरकारी प्रस्तावों के माध्यम से बढ़ाया जाता है।
- प्रमुख कार्य
- सफाई कर्मचारियों की स्थिति, सुविधाओं और अवसरों में असमानताओं को समाप्त करने की दिशा में केन्द्र सरकार को विशिष्ट कार्य कार्यक्रमों की सिफारिश करना
- मैनुअल स्कैवेंजिंग से संबंधित सफाई कर्मचारियों के सामाजिक एवं आर्थिक पुनर्वास से संबंधित कार्यक्रमों तथा योजनाओं के कार्यान्वयन का अध्ययन व मूल्यांकन करना
- सरकार, नगर पालिकाओं और पंचायतों सहित विभिन्न नियोक्ताओं के अधीन कार्यरत सफाई कर्मचारियों के स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं मजदूरी से संबंधित कार्य स्थितियों का अध्ययन, निगरानी व सिफारिशें करना।
- सफाई कर्मचारियों से संबंधित किसी भी मामले पर केंद्र या राज्य सरकारों को रिपोर्ट प्रस्तुत करना
- केंद्र सरकार द्वारा सौंपा गया अन्य कोई भी कार्य
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