New
IAS Foundation Course (Prelims + Mains): Delhi & Prayagraj | Call: 9555124124

वैवाहिक बलात्कार: महिलाओं के लिये एक अपमान

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाओं से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 - सामाजिक सशक्तिकरण, महिलाओं की समस्याएं एवं उनके रक्षोपाय से संबंधित प्रश्न)

संदर्भ

हाल ही में, 'छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय' ने एक पति के विरुद्ध लगाए गए आरोपों को चुनौती देने वाली एक 'आपराधिक पुनरीक्षण याचिका' पर फैसला दिया है।

मामले की पृष्ठभूमि

आवेदक की पत्नी के आरोपों के आधार पर, एक निचली अदालत ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (बलात्कार), धारा 377 (प्राकृतिक नियम के विरुद्ध संभोग) और धारा 498A (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा पत्नी के प्रति क्रूरता) के तहत आरोप तय किये थे।

उच्च न्यायालय का निर्णय

  • उच्च न्यायालय ने धारा 498A और धारा 377 के तहत आरोपों को बरकरार रखा, लेकिन धारा 376 के तहत आवेदक को दोषमुक्त कर दिया।
  • न्यायालय के मुताबिक धारा 375 (बलात्कार की परिभाषा) के अपवाद 2 के आधार पर, किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ संभोग (बशर्ते उसकी आयु 18 वर्ष पूरी हो गई हो) बलात्कार के अपराध की श्रेणी में नहीं आता।
  • चूँकि, वस्तुतः अगर इस निर्णय की बात करें तो उच्च न्यायालय इसके लिये विधिक रूप से बाध्य था, क्योंकि विद्यमान कानून पति पर अपनी पत्नी के साथ बलात्कार के लिये मुकदमा चलाने या दंडित करने से छूट देता है। वस्तुतः इसके पीछे यह मान्यता है कि विवाहित व्यक्तियों के बीच शारीरिक संबंध सहमति से बनाए जाते हैं। अतः इस प्रकार की कानूनी कल्पना के कारण अदालत द्वारा यह निर्णय दिया गया था।

असंगत प्रावधान

  • किसी अन्य पुरुष की तरह ही एक पति पर अपनी पत्नी के साथ यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़ और ज़बरन कपड़े उतारने जैसे अपराधों के लिये मुकदमा चलाया जा सकता है।
  • अपनी पत्नी से अलग हुए पति (हालाँकि तलाकशुदा नहीं) पर भी बलात्कार का मुकदमा चलाया जा सकता है (धारा 376B)।
  • धारा 377 (नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ, 2018 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से पहले पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध के लिये सहमति धारा 377 के लिये प्रासंगिक नहीं थी, लेकिन अब है) के तहत एक पति पर अपनी पत्नी के साथ गैर-सहमति से बनाए गए यौन संबंधों के लिये आरोप लगाया जा सकता है।
  • नतीजतन, जबरन या सहमति के बिना पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ बनाए गए यौन संबंध आपराधिक अभियोजन से सुरक्षित नहीं हैं।

पितृसत्तात्मक विश्वास एवं तर्क

  • वैवाहिक बलात्कार वस्तुतः व्यक्तिगत स्वतंत्रता, गरिमा और मौलिक अधिकारों, जैसे कि अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) और अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) में निहित लैंगिक समानता के संवैधानिक लक्ष्यों के विरुद्ध है।
  • 'जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ' (2018) में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि व्यभिचार का अपराध असंवैधानिक था, क्योंकि यह इस सिद्धांत पर आधारित था कि एक महिला शादी के बाद अपने पति की संपत्ति है।
  • वैवाहिक बलात्कार इस मान्यता को बढ़ावा देता है कि शादी के बाद, पत्नी की व्यक्तिगत और यौन स्वायत्तता, शारीरिक अखंडता और मानवीय गरिमा के अधिकार का पति के प्रति आत्मसमर्पित कर दिया जाता है। अतः पति उसका यौन स्वामी है और उसके साथ बलात्कार करने का उसका अधिकार कानूनी रूप से सुरक्षित है।
  • वैवाहिक बलात्कार के बचाव में प्रायः यह तर्क दिया जाता है कि यदि वैवाहिक बलात्कार को एक आपराधिक कृत्य के रूप में मान्यता दी गई तो यह  'विवाह की संस्था को नष्ट कर देगा'। यह बात 'स्वतंत्र विचार बनाम भारत संघ' (2017) में सरकार द्वारा कही गई थी।
  • इस दावे को खारिज करते हुए, शीर्ष न्यायालय ने कहा कि, विवाह संस्थागत नहीं, बल्कि व्यक्तिगत है - विवाह को अवैध और दंडनीय बनाने वाले क़ानून के अलावा अन्य कोई भी विवाह की 'संस्था' को नष्ट नहीं कर सकता है।"
  • वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण के खिलाफ अक्सर एक और तर्क दिया जाता है कि चूँकि विवाह एक यौन संबंध है, इसलिये वैवाहिक बलात्कार के आरोपों की वैधता का निर्धारण करना मुश्किल होगा।
  • वस्तुतः वैवाहिक बलात्कार विवाह नहीं है क्योंकि इसके समर्थन वाले तर्क न्यायनिर्णयन में बाधा उत्पन्न करते हैं। अतः यह एक खतरनाक रूप से गलत धारणा है।
  • जबकि, वर्तमान कानून इस गलत धारणा का समर्थन करता हुआ प्रतीत होता है, लेकिन विवाह स्थायी यौन सहमति का प्रतीक नहीं है।

अधीनता को रेखांकित करना

  • यह चौंकाने वाली बात है कि आई.पी.सी. की धारा 375 का अपवाद 2 आज तक विद्यमान है।
  • हमारे संविधान के उदार और प्रगतिशील मूल्यों के विपरीत तथा महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर अभिसमय जैसे उपायों के तहत भारत के अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का उल्लंघन, पुरुषों के लिये महिलाओं की अधीनता को रेखांकित करता है, विशेष रूप से विवाह के संबंध में।
  • वर्ष 2017 में, उच्चतम न्यायालय ने स्वतंत्र विचार वाले मामलें में इस अपवाद पर ध्यान दिया था, ताकि अपनी नाबालिग पत्नियों से बलात्कार करने वाले पति इसके पीछे छिप न सकें।
  • अब समय आ गया है कि वयस्क महिलाओं को विवाह में समान सुरक्षा और गरिमा प्रदान की जाए।
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR