(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश)
संदर्भ
वर्तमान में हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य ने ‘अंतर्राष्ट्रीय प्रतिद्वंद्विता, प्रतिस्पर्धा और हितों के टकराव’ को जन्म दिया है। इस क्षेत्र में अपने हितों की रक्षा करना भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है।
स्थलीय सुरक्षा और समुद्री सुरक्षा
- राष्ट्रीय सुरक्षा विमर्श में समुद्री सुरक्षा का विशेष महत्त्व होता है। किसी राष्ट्र की मजबूती में तटीय एवं समुद्री सुरक्षा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- साथ ही, पारंपरिक रूप में स्थलीय सीमाओं को प्रमुखता दी जाती है और यह किसी देश के लिये अधिक प्राथमिक होती है।
- स्थलीय सीमाओं की अपेक्षा समुद्री क्षेत्र का महत्त्व और चुनौतियाँ अधिक हैं, जबकि वर्तमान में समुद्री क्षेत्र की सुरक्षा पर कम ध्यान दिया जाता है। समुद्री क्षेत्र में अत्यधिक रणनीतिक, भू-राजनीतिक और आर्थिक हित निहित हैं।
आई.ओ.आर. का आर्थिक महत्त्व
- भारत, आई.ओ.आर. में सबसे बड़ा तटीय देश है। वर्तमान में भारत इस क्षेत्र की रणनीति में केंद्रीय भूमिका में है।
- यह क्षेत्र आर्थिक रूप से भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इससे होकर कई महत्त्वपूर्ण व्यापार मार्ग गुजरते है। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का लगभग 60-65% और भारत का लगभग 95% व्यापार इस क्षेत्र के माध्यम से होता है।
समुद्री सुरक्षा समन्वय पर जोर
- समुद्री सुरक्षा में शामिल जटिलताओं और हितों के अनुरूप भारत ने सभी स्तरों पर निर्बाध समन्वय की आवश्यकता को रेखांकित किया है।
- इस संदर्भ में हाल ही में वाइस एडमिरल जी. अशोक कुमार (सेवानिवृत्त) को पहले राष्ट्रीय समुद्री सुरक्षा समन्वयक (NMSC) के रूप में नियुक्त किया जाना महत्त्वपूर्ण है।
- यह राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र के हिस्से के रूप में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के साथ समन्वय में कार्य करेगा।
- इसका मुख्य कार्य भारतीय नौसेना, तटरक्षक बल, तटीय और समुद्री सुरक्षा में संलग्न सुरक्षा एजेंसियों तथा 13 तटीय राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के मध्य समन्वय स्थापित करना है।
- भारत सात महत्त्वपूर्ण देशों के साथ समुद्री सीमा साझा करता है। आपदा प्रबंधन, सुरक्षा सहायता और अन्य मुद्दों को लेकर भारत की समुद्री पड़ोसियों के प्रति जिम्मेदारियां भी हैं, जो भारत के लिये इस क्षेत्र में समन्वय को दर्शाती है।
चुनौतियाँ
- वर्तमान में हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा, साइबर सुरक्षा और अंतरिक्ष सुरक्षा से संबंधित नए खतरों का जन्म हुआ है। साथ ही, गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरे भी उत्पन्न हुए है।
- स्थलीय सीमाओं और समुद्री सीमाओं में बहुत भिन्नता होती हैं। उदाहरण के लिये समुद्री सीमाओं पर बाड़ लगाना संभव नहीं है अत: घुसपैठ की स्थिति में इसके लिये शून्य सहनशीलता की अवधारणा सही सिद्ध नहीं हो सकती है।
- स्थलीय सीमा विवाद अधिकांशत: द्विपक्षीय होते हैं। इसके विपरीत समुद्री क्षेत्र बहुपक्षीय हितों वाले क्षेत्र होते हैं, जहां बहुपक्षीय समुद्री कानून लागू होते हैं।
- कोई राष्ट्र समुद्री क्षेत्र में एकतरफा फैसले या संधि को लागू नहीं कर सकता है। यह एक जटिल प्रक्रिया है, जिसके लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लगभग आम सहमति की आवश्यकता होती है। समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCLOS) इसका एक उदाहरण है।
- समुद्री सीमाओं की सुरक्षा के लिये तकनीक एवं इससे निपटने के अन्य तरीकों की आवश्यकता है।
भारत के प्रयास
- भारत द्वारा स्थापित बहु-एजेंसी समुद्री सुरक्षा समूह (MAMSG) को निम्नलिखित बिंदुओं के लिये परिकल्पित किया गया है-
- तटीय और अपतटीय सुरक्षा सहित समुद्री सुरक्षा के सभी पहलुओं के समन्वय को सुनिश्चित करना।
- वर्तमान और भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने में संस्थागत, नीतिगत, तकनीकी और परिचालन अंतराल को भरने के लिये एक स्थायी और प्रभावी तंत्र प्रदान करना।
- यह समूह तत्काल और समन्वित प्रतिक्रिया की आवश्यकता वाले समुद्री आकस्मिकताओं को भी संबोधित करेगा।
- प्रौद्योगिकी और मानव संसाधनों में निवेश समुद्री संसाधनों के दोहन के आर्थिक हित एवं तटीय बुनियादी ढांचा के लिये महत्वपूर्ण हैं।
- साथ ही, समुद्री सुरक्षा के लिये कई महत्त्वपूर्ण नीतिगत मुद्दों को भी बढ़ावा देना आवश्यक है, जिसमें निम्नलिखित बिंदु शामिल हैं-
- समुद्री सुरक्षा पर मौजूदा आदेशों एवं नीतियों का मानचित्रण
- समुद्री आकस्मिकताओं के लिये मानक संचालन प्रक्रियाओं की समीक्षा
- बंदरगाहों की सुरक्षा तथा तटीय बुनियादी ढांचे की समीक्षा
- एक राष्ट्रीय समुद्री डाटाबेस का निर्माण
- तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की क्षमता निर्माण
- नीली अर्थव्यवस्था