(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3 : पशु पालन संबंधी अर्थशास्त्र।)
संदर्भ
हाल ही में, बेंगलुरु के शोधकर्ताओं ने सक्रिय संघटक के रूप में करक्यूमिन के साथ एक प्राकृतिक फाइटोकेमिकल यौगिक की इम्युनोमोड्यूलेशन क्षमता की जाँच की है। यह मैस्टाइटिस नामक संक्रामक रोग के विरुद्ध मवेशियों में प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करने में सहायक होगा।
प्रमुख बिंदु
- भारत में मैस्टाइटिस के कारण होने वाला आर्थिक नुकसान प्रतिवर्ष लगभग 13000 करोड़ रूपए से अधिक है। वर्तमान में इस रोग के विरुद्ध कोई टीकाकरण उपलब्ध नहीं है।
- विदित है कि यह एक घातक स्तन ग्रंथि संक्रमण है, जो डेयरी मवेशियों में सबसे आम बीमारी है। इसे बोलचाल की भाषा में थनैला रोग के नाम से भी जाना जाता है।
रोग के कारण
- यह रोग सूक्ष्मजीवों के कारण होता है, जिसमें विषाणु, माइकोप्लाज्मा,कवक और जीवाणु शामिल हैं।
- इन सूक्ष्मजीवों में पास्चरेला मल्टोसिडा, स्यूडोमोनास प्योसायनस, ई-कोलाई जैसे जीवाणु एवं एस्परगिलस फ्यूमिगेटस,ए मिडुलस, कैंडिडा एसपीपी जैसे कवक शामिल है।
- स्तन के आस-पास शारीरिक चोट, स्वच्छता का अभाव और घाव भी इस रोग का कारण बनते हैं।
रोग के लक्षण
|
- थन में सूजन
- रक्त के थक्कों और दुर्गंधयुक्त भूरे रंग के स्राव से दूषित दूध
- पशु के शरीर के तापमान में वृद्धि
- भूख की कमी, पाचन विकारों और दस्त से पीड़ित होना
|
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिये निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं-
- गायों को लेटने के लिये साफ, सूखा और पर्याप्त स्थान उपलब्ध कराना चाहिये।
- प्रत्येक गाय के थनों की सफाई के लिये अलग कपड़े या कागज़ का उपयोग करना चाहिये।
- दूध दुहने से पहले थन पूरी तरह से सूखा और साफ होना चाहिये।
- दूध निकालने के बाद कीटाणुनाशक थन डिप्स का उपयोग करना चाहिये।
- दूध दुहने के बाद गायों को खिलाएं ताकि वे तुरंत लेट न जाएं। यह सूक्ष्मजीवों को स्तन ग्रंथि में प्रवेश करने से रोकता है।
उपचार
- कैलिफ़ोर्निया मैस्टाइटिस टेस्ट (CMT) के माध्यम से लक्षणों के प्रकट होने से पहले ही प्रारंभिक चरण में रोग का पता लगाया जा सकता है।
- संक्रमण का पता चलने के बाद प्राथमिक उपचार में थन की सतह पर बर्फ के टुकड़े लगाना चाहिये।
- संक्रमित स्तन से संक्रमित दूध को दिन में तीन बार निकालकर सुरक्षित तरीके से फेंक देना चाहिये। स्वच्छ निपटान सुनिश्चित करने के लिये संक्रमित दूध में 5% फिनोल को मिला देना चाहिये।
- समूह में गायों को दुहते समय पहले स्वस्थ गायों और बाद में संक्रमित गायों को दुहना चाहिये।
- बछड़ों को संक्रमित स्तन से दूध पीने को रोकना चाहिये।
- किसी प्रमाणित पशु चिकित्सक से परामर्श करके एंटीबायोटिक दवाओं का उपचार शुरू किया जाना चाहिये।