(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, गरीबी और विकासात्मक विषय)
संदर्भ
हाल ही में, भारत के महापंजीयक कार्यालय के नमूना पंजीकरण प्रणाली (SRS) की विशेष विवरणिका के अनुसार, ‘मातृ मृत्यु अनुपात’ (Maternal Mortality Ratio: MMR) में 10 अंकों की कमी आई है।
प्रमुख बिंदु
- इस विवरणिका के अनुसार, 8.8% की कमी के साथ एम.एम.आर. वर्ष 2016-18 में 113 से कम होकर वर्ष 2017-19 में 103 हो गया है।
- मातृ मृत्यु अनुपात में लगातार तीसरे वर्ष गिरावट दर्ज़ की गई है। भारत, राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (NHP) में निर्धारित एम.एम.आर. लक्ष्य को प्राप्त करने के नज़दीक है। इस नीति में वर्ष 2020 तक 100 प्रति लाख जीवित जन्म के लक्ष्य को प्राप्त करना है।
- साथ ही, भारत वर्ष 2030 तक 70 प्रति लाख जीवित जन्म के सतत् विकास लक्ष्य (SDG) को प्राप्त करने के अनुरूप कार्यरत है।
मातृ मृत्यु अनुपात
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, आकस्मिक या अप्रत्याशित कारणों को छोड़कर गर्भावस्था या उसके प्रबंधन से संबंधित किसी भी कारण से प्रति लाख जीवित जन्म पर मातृ मृत्यु की वार्षिक संख्या को ‘मातृ मृत्यु अनुपात’ कहते है। इस प्रकार, मातृ मृत्यु अनुपात एक निश्चित समयावधि के दौरान प्रति एक लाख जीवित बच्चों के जन्म पर मातृ मृत्यु की संख्या है।
|
राज्यों की स्थिति
- 7 राज्यों ने एस.डी.जी. में निर्धारित एम.एम.आर. को प्राप्त कर लिया है-
- 9 राज्यों ने एन.एच.पी. में निर्धारित एम.एम.आर. को प्राप्त कर लिया है-
- इसमें उपरोक्त सात राज्यों के अतिरिक्त कर्नाटक (83) और हरियाणा (96) शामिल हैं।
- 100-150 के बीच एम.एम.आर. वाले राज्यों की संख्या 6 है-
- उत्तराखंड (101)
- पश्चिम बंगाल (109)
- पंजाब (114)
- बिहार (130)
- ओडिशा (136)
- राजस्थान (141)
- 150 से अधिक एम.एम.आर. वाले राज्यों की संख्या 4 है-
- छत्तीसगढ़ (160)
- मध्य प्रदेश (163)
- उत्तर प्रदेश (167)
- असम (205)
उत्साहजनक सुधार
- इस अवधि के दौरान उत्तर प्रदेश के एम.एम.आर. में सर्वाधिक कमी (30 अंक) दर्ज की गई। इस मामले में दूसरे स्थान पर राजस्थान (23 अंकों की कमी) और तीसरे; चौथे व पाँचवें स्थान पर क्रमशः बिहार, पंजाब तथा ओडिशा हैं।
- केरल, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में एम.एम.आर. में 15% से अधिक की गिरावट दर्ज की गई है। हालाँकि, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ में एम.एम.आर. में वृद्धि देखी गई है।
भारत में उच्च मातृ मृत्यु दर के कारण
- भारत में उच्च मातृ मृत्यु दर के प्रमुख कारणों में असुरक्षित गर्भपात, प्रसव-पूर्व एवं प्रसव-पश्चात् रक्त स्राव, अरक्तता, उच्च रक्त चाप विकार तथा प्रसव-पश्चात् संक्रमण आदि शामिल हैं।
- इसके अतिरिक्त, बाल विवाह, निर्धनता, अशिक्षा, रूढ़िवादिता, संतानों के मध्य कम अंतराल, अविवेकपूर्ण मातृत्व प्रबंधन तथा अन्य अस्वास्थ्यकर सामाजिक कुरीतियाँ भी इसके लिये ज़िम्मेदार हैं।
- देश में चिकित्सालयों तथा मातृत्व केंद्रों की कमी, समाज में स्त्रियों की उपेक्षा तथा कल्याणकारी संस्थाओं का अभाव भी इसके प्रमुख कारणों में शामिल हैं।
मातृ मृत्यु दर में सुधार के लिये सरकारी प्रयास
- प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान- वर्ष 2016 में प्रारंभ यह अभियान प्रत्येक माह की 9 तारीख को गर्भवती महिलाओं को निश्चित दिन, नि:शुल्क और गुणवत्तापूर्ण प्रसवपूर्व देखभाल सुनिश्चित करता है।
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना- यह एक प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) योजना है जिसके तहत गर्भवती महिलाओं को उनके बैंक खाते में नकद लाभ प्रदान किया जाता है। इससे उनकी बढ़ी हुई पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने और मजदूरी की हानि की आंशिक रूप से क्षतिपूर्ति करने में सहायता मिलती है। इस योजना को वर्ष 2017 से लागू किया गया है।
- लेबर रूम क्वालिटी इम्प्रूवमेंट इनिशिएटिव (लक्ष्य)- वर्ष 2017 में शुरू इस पहल का उद्देश्य लेबर रूम और मैटरनिटी ऑपरेशन थिएटर में देखभाल की गुणवत्ता में सुधार लाना है।
- पोषण अभियान- भारत सरकार ने समयबद्ध तरीके से बच्चों, किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं की पोषण स्थिति में सुधार लाने के लक्ष्य के साथ इसे वर्ष 2018 से लागू किया है।
- एनीमिया मुक्त भारत (AMB)- वर्ष 2018 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने अनीमिया मुक्त भारत रणनीति की शुरूआत की थी, जिसका उद्देश्य जीवन चक्र पहुंच में पोषण और गैर-पोषण कारणों से एनीमिया के प्रसार को कम करना है।
- सुरक्षित मातृत्व आश्वासन (सुमन)- यह वर्ष 2019 से प्रभावी हुआ। इसका उद्देश्य बिना किसी लागत के सुनिश्चित, सम्मानजनक, गरिमामयी और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना है ताकि सभी रोकथाम योग्य मातृ और नवजात मौत को समाप्त किया जा सके।
- जननी सुरक्षा योजना (JSY)- यह एक मांग प्रोत्साहन और सशर्त नकद हस्तांतरण योजना है जिसे अप्रैल 2005 में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य गर्भवती महिलाओं के संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देकर मातृ और शिशु मृत्यु दर को कम करना है।
- जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK)- इसका उद्देश्य गर्भवती महिलाओं और बीमार शिशुओं को सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों में सिजेरियन सेक्शन, नि:शुल्क परिवहन, निदान, दवाएं, अन्य उपभोग्य वस्तुएं, आहार और रक्त सहित सेवाओं की मुफ्त आपूर्ति करना है।
अन्य उपाय
- मानवशक्ति, रक्त भंडारण इकाइयों, रेफरल लिंकेज आदि को सुनिश्चित करके प्रथम रेफरल इकाइयों (FRU) को कार्यरत करना।
- माताओं और बच्चों को प्रदान की जाने वाली देखभाल की गुणवत्ता में सुधार के लिये अधिक केस लोड सुविधाओं पर मातृ एवं बाल स्वास्थ्य (MCH) विंग की स्थापना।
- जटिल गर्भधारण को संभालने के लिये देश भर में उच्च केस लोड तृतीयक देखभाल सुविधाओं पर प्रसूति आई.सी.यू./एच.डी.यू. का संचालन।
- मातृ मृत्यु निगरानी समीक्षा, सुविधा और सामुदायिक स्तर दोनों पर लागू की जाती है। इसका उद्देश्य उचित स्तर पर सुधारात्मक कार्रवाई करना और प्रसूति देखभाल की गुणवत्ता में सुधार लाना है।
- मासिक ‘ग्राम स्वास्थ्य, स्वच्छता और पोषण दिवस’, पोषण सहित मातृ एवं शिशु देखभाल के प्रावधान के लिये एक पहुंच (आउटरीच) गतिविधि है।