New
The Biggest Holi Offer UPTO 75% Off, Offer Valid Till : 12 March Call Our Course Coordinator: 9555124124 Request Call Back The Biggest Holi Offer UPTO 75% Off, Offer Valid Till : 12 March Call Our Course Coordinator: 9555124124 Request Call Back

पितृसत्तात्मक व्यवस्था को मज़बूत बनाता ‘गर्भ का चिकित्सकीय समापन (संशोधन) विधेयक, 2020’

(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ; मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र-1: विषय- महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, प्रश्नपत्र-2 विषय: केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि )

संदर्भ

हाल ही में, राज्य सभा ने गर्भ का चिकित्सकीय समापन (संशोधन) विधेयक [Medical Termination of Pregnancy (Amendment) Bill-MTP], 2020 पारित किया है, लोक सभा में यह विधेयक मार्च 2020 में पारित हुआ था। यह विधेयक महिलाओं की सुरक्षित गर्भपात सुविधाओं तक पहुँच सुनिश्चित करता है।

संशोधन विधेयक, 2020 के मुख्य प्रावधान

  • यह विधेयक वर्ष 1971 ‘गर्भ का चिकित्सकीय समापन कानून’ में संशोधन करता है। इसमें महिलाओं की विशेष श्रेणियों के लिये गर्भपात की अधिकतम सीमा को 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दिया गया है।  
  • विशेष श्रेणी में दुष्कर्म और दुर्व्यवहार से पीड़ित महिलाओं तथा अन्य महिलाओं जैसे, दिव्यांग एवं नाबालिगों को परिभाषित किया गया है।
  • विधेयक के अनुसार,  20 सप्ताह तक के गर्भ के समापन के लिये एक पंजीकृत चिकित्सक और 20-24 सप्ताह तक के गर्भ के समापन के लिये दो पंजीकृत चिकित्सकों की राय आवश्यक है।
  • साथ ही, यदि मेडिकल बोर्ड द्वारा भ्रूण में पर्याप्त असामान्यताओं की पुष्टि की जाती है तो गर्भपात की अधिकतम सीमा लागू नहीं होगी।
  • जिस महिला का गर्भपात हुआ है, उसका नाम तथा अन्य विवरण, कानून द्वारा अधिकृत व्यक्ति के अतिरिक्त किसी अन्य के समक्ष प्रकट नहीं किया जाएगा।

विधेयक के सकारात्मक पक्ष

  • इस विधेयक में ‘विवाहित महिला और उसका पति’ को ‘महिला और उसका साथी’ से प्रतिस्थापित कर दिया गया है। वस्तुतः यह प्रावधान अविवाहित महिला द्वारा गर्भधारण या गर्भपात को समाजिक स्तर पर स्वीकार्य बनाने में महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगा।
  • इसमें गर्भपात के लिये तय अधिकतम सीमा को 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दिया गया है। इससे वे महिलाएँ सुरक्षित गर्भपात करा सकेंगी, जिन्हें गंभीर बीमारी, दुष्कर्म अथवा नाबालिग होने के कारण समय रहते अपनी गर्भावस्था की जानकारी नहीं हो पाती।

चुनौतियाँ

  • इसके निर्माण में विशेषज्ञों की सलाह नहीं ली गई। यह विधेयक महिलाओं की स्वायत्तता एवं अधिकारों से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा है, किंतु इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि विधयेक पारित करने वाले दोनों ही सदनों में महिलाओं का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व होने के कारण इसमें उनकी पर्याप्त राय शामिल नहीं है।
  • इस संशोधन विधेयक के अनुसार, गर्भवती महिला के अनुरोध पर गर्भपात नहीं किया जाएगा, बल्कि इसके लिये चिकित्सक की राय आवश्यक है। यह महिला की प्रजनन स्वायत्तता और शारीरिक अखंडता पर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायशास्त्र के विरुद्ध है।
  • विधेयक में एक मेडिकल बोर्ड का प्रावधान है। इससे महिला की गोपनीयता भंग होने तथा प्रक्रियात्मक बाधाओं के कारण गर्भपात संबंधी निर्णय लेने में देरी जैसे मुद्दों का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही, ग्रामीण एवं दूरदराज क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं के लिये इस बोर्ड तक पहुँचना कठिन होगा।
  • इसके अतिरिक्त, भ्रूण में पर्याप्त असामान्यताओं की पुष्टि होने पर अधिकतम समय-सीमा के उपरांत भी गर्भपात की अनुमति होगी, जिससे योग्य व्यक्तियों के प्रति भेदभाव बढ़ सकता है।
  • ध्यातव्य है कि इस विधेयक में केवल महिलाओं के संदर्भ में ही विचार किया गया है, अन्य लैंगिक समुदायों, जैसे- एल.जी.बी.टी. अथवा ट्रांसजेंडर्स के समावेशन पर ध्यान नहीं दिया गया है।
  • दिव्यांगों के अधिकारों के लिये आंदोलनकारियों, नारीवादी समूहों और अन्य नागरिक समाज समूहों द्वारा विधेयक के प्रतिगामी और अव्यवहारिक प्रावधानों पर चिंता व्यक्त की गई है।
  • इस विधेयक के माध्यम से राज्य महिलाओं के प्रजनन एवं यौन अधिकारों को ‘प्रगतिशीलता’ के तर्क के आधार पर सीमित करने का प्रयास करता है। इस प्रकार, महिला अधिकारों की संकीर्ण समझ पितृसत्तात्मक व्यवस्था की ओर उन्मुख कानूनों को और मज़बूती प्रदान करती है।
  • विधेयक को ‘महिलाओं के अधिकारों’ को मज़बूती प्रदान करने वाला बताना विडंबना मात्र है, क्योंकि इसके प्रावधान प्रजनन, कामुकता और मातृत्व से संबंधित विषयों पर महिलाओं की सम्मानजनक स्थिति का समर्थन नहीं करते हैं, बल्कि ये इस धारणा को पुख्ता करते हैं कि प्रजनन एवं यौन संबंधी अधिकारों से संबंधित निर्णय लेने के लिये महिलाएँ आज भी स्वतंत्र नहीं हैं।

निष्कर्ष

एम.टी.पी. संशोधन विधेयक महिलाओं के अधिकार और उनके जीवन की गरिमा से संबंधित है। अतः प्रजनन और मातृत्व जैसे संवेदनशील मुद्दों से संबंधित कानून बनाने या पूर्व के कानूनों में संशोधन के लिये संबंधित वर्ग के प्रतिनिधियों, नागरिक समूहों तथा ज़मीनी स्तर के संगठनों से परामर्श एवं विचार-विमर्श किया जाना आवश्यक है, अन्यथा ऐसे कानून को संवैधानिक चुनौतियों एवं न्यायिक हस्तक्षेपों का सामना करना पड़ सकता है।

« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR
X