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मेहरगढ़ : एक प्राचीन सभ्यता का गौरवशाली स्थल

(प्रारंभिक परीक्षा : भारत का इतिहास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-1: भारतीय विरासत और संस्कृति, विश्व का इतिहास व भूगोल एवं समाज : भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य तथा वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे)

संदर्भ 

नेचर पत्रिका में नवपाषाणिक स्थल मेहरगढ़ के संबंध में प्रकशित एक नए शोध ने मेहरगढ़ पर अब तक के अध्ययनों को चुनौती दी है।   

अध्ययन के बारे में 

  • यह अध्ययन नवपाषाण समाधियों से प्राप्त मानव दंत-इनेमल (Tooth Enamel) पर नई रेडियोकार्बन डेटिंग विधि के विश्लेषण के आधार किया गया। 
  • मेहरगढ़ को अब तक विश्व के प्राचीनतम कृषि स्थलों में एक माना जाता था। शोध से प्राप्त साक्ष्यों से न केवल कृषि के आरंभ की तिथि में परिवर्तन हुआ है बल्कि यह भी संकेत है कि मेहरगढ़ में कृषि का विकास संभवतः स्थानीय नहीं, बल्कि पश्चिमी प्रभावों के प्रसार (Diffusion) का परिणाम था।

शोध के प्रमुख निष्कर्ष 

अवधि का पुनर्निर्धारण

  • 23 नवपाषाण समाधियों से प्राप्त मानव दंत-इनेमल (Tooth Enamel) पर विश्लेषण के आधार पर यह पाया गया कि आरंभिक नवपाषाण काल लगभग 5223-4914 ई.पू. से 4769-4679 ई.पू. के बीच रहा जोकि केवल 186 से 531 वर्षों तक ही चला
    • पहले यह माना जाता था कि मेहरगढ़ की नवपाषाण संस्कृति का प्रसार लगभग 3000 वर्षों तक रहा था।

कृषि का विकास

  • पहले यह माना जाता था कि मेहरगढ़ में कृषि का स्वतः विकास हुआ।
  • नए साक्ष्यों से संकेत मिलता है कि मेहरगढ़ में कृषि स्थानीय रूप से नहीं, बल्कि पश्चिमी क्षेत्रों, विशेष रूप से ईरान एवं मेसोपोटामिया से आई थी
  • इसके पक्ष में साक्ष्य:
    • पशुपालन में पश्चिम एशियाई पालतू जानवरों की उपस्थिति
    • जैव-पुरातात्विक (Bioarchaeological) विश्लेषण

बर्तन निर्माण के संदर्भ में 

  • मेहरगढ़ के कालखंड I में बर्तन नहीं पाए गए थे, जबकि पश्चिमी एशिया में उस समय तक मृद्भांड आम हो चुके थे।
  • कालखंड IIA (लगभग 4650 ई. पू. के बाद) में पहली बार मृद्भांड मिलते हैं। इसका अर्थ है कि यहाँ मृद्भांड का निर्माण अपेक्षाकृत देरी से शुरू हुआ।

स्थल संरचना का विकास

9 कब्रगाह स्तर एवं भवन निर्माण की परतें बहुत ही कम समय में निर्मित हुई। इससे मेहरगढ़ के धीरे-धीरे विकास की पूर्व धारणा अब अस्थिर प्रतीत होती है।

मेहरगढ़ के बारे में 

  • परिचय: मेहरगढ़ पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में बोलन दर्रे के पास कच्छी मैदान में स्थित एक नवपाषाणिक स्थल है।
    • मेहरगढ़ को हड़प्पा संस्कृति की पूर्ववर्ती (Precursor) माना जाता है।
  • भौगोलिक महत्व: यह स्थल दक्षिण एशिया को ईरान एवं पश्चिम एशिया से जोड़ने वाले प्राचीन मार्ग पर स्थित है।
  • खोज: इसकी खोज वर्ष 1974 में फ्रांसीसी पुरातत्वविद् Jean-François Jarrige एवं उनकी टीम द्वारा की गई।
  • कालक्रम (Chronology) : मेहरगढ़ की संस्कृति को आमतौर पर 4 प्रमुख कालों में बाँटा गया है जिसकी अलग-अलग विशेषताएं हैं। 
    • कालखंड I: कृषि एवं पशुपालन की शुरुआत
    • कालखंड II : मृद्भांडो का उपयोग शुरू, घरों में ईंटों का प्रयोग
    • कालखंड III : औजारों में सुधार, व्यापार के संकेत, सामाजिक संरचना का विकास 
    • कालखंड IV: शहरीकरण के संकेत, बाद में हड़प्पा संस्कृति से जुड़ाव

प्रमुख पुरातात्विक साक्ष्य 

  • बस्तियाँ : कच्ची ईंटों से बने मकान, भंडारण कक्ष, आंगन
  • दफन स्थल : कब्रों में मृद्भांड, औजार, आभूषण– पुनर्जन्म की धारणा
  • कृषि उपकरण : हाथ से चलाए जाने वाले हंसिए, दरांती, अनाज पीसने की चक्की
  • पशुपालन : गोवंश, भेड़, बकरी– अस्थि अवशेष
  • औजार एवं कला : अस्थि, तांबे एवं पत्थर से बने औजार; मिट्टी की मूर्तियाँ
  • व्यापार संकेत : दूरस्थ क्षेत्र से आए मनके, सीप– व्यापार या संपर्क के संकेत
  • कपास के प्राचीनतम साक्ष्य : उत्खनन में कपास के रेशे एवं बीजों के अवशेष 
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