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भारत-भूटान के मध्य समझौता ज्ञापन

(प्रारम्भिक परीक्षा: पर्यावरण पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन सम्बंधी मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न­पत्र- 2: भारत तथा इसके पड़ोसी देशों से सम्बंध)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा भारत और भूटान के मध्य पर्यावरण के क्षेत्र में सहयोग पर समझौता ज्ञापन (Memorandum of Understanding--MoU) को स्वीकृति प्रदान की गई है।

पृष्ठभूमि

  • भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और भूटान सरकार के राष्ट्रीय पर्यावरण आयोग (National Environment Commission-NEC) के बीच 11 मार्च, 2013 को जो समझौता ज्ञापन किया गया था उसकी समयावधि 10 मार्च, 2016 में समाप्त हो गई थी।
  • इसी समझौता ज्ञापन के लाभों को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण के क्षेत्र में सहयोग और समन्वय को बनाए रखने के उद्देश्य से दोनों देशों के मध्य एक नया समझौता ज्ञापन किया गया है।

नए समझौता ज्ञापन के मुख्य बिंदु

  • नया समझौता ज्ञापन हस्ताक्षर करने की तिथि से लेकर दस वर्ष की अवधि तक के लिये लागू रहेगा।
  • इस समझौते के तहत द्विपक्षीय हितों और पारस्परिक रूप से सहमत प्राप्त प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए वायु, अपशिष्ट, रासायनिक प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में सहयोग किया जाएगा।
  • समझौता ज्ञापन के उद्देश्यों को पूरा करने हेतु पारस्परिक गतिविधियों के लिये सभी स्तरों पर संगठनों, निजी कम्पनियों, सरकारी संस्थानों एवं दोनों देशों के अनुसंधान संस्थानों को प्रोत्साहित किया जाएगा।
  • पारस्परिक गतिविधियों की प्रगति की समीक्षा एवं विश्लेषण हेतु सयुंक्त कार्यसमूह या द्विपक्षीय बैठकों का आयोजन किया जाएगा।
  • दोनों पक्षों द्वारा सम्बंधित मंत्रालयों या एजेंसियों को प्रगति और उपलब्धियों के सम्बंध में विधिवत जानकारी प्रदान की जाएगी।

भारत-भूटान सम्बंध

  • दक्षिण एशिया का छोटा-सा देश भूटान तथा भारत के मध्य सम्बंध शुरुआत से ही मधुर रहे हैं। दोनों देशों के बीच सामाजिक एवं सांस्कृतिक निकटता है।
  • वर्ष 1910 में ब्रिटेन द्वारा भूटान के साथ पुनाखा की संधि के पश्चात भारत-भूटान सम्बंधों की नींव रखी गई।
  • भारत तथा भूटान के मध्य सीमा खुली होने के कारण सीमा सुरक्षा हेतु द्विपक्षीय भारत-भूटान समूह सीमा प्रबंधन और सुरक्षा की स्थापना की गई है।
  • भारत द्वारा सयुंक्त राष्ट्र में भूटान जैसे छोटे देश के प्रवेश का समर्थन करने के पश्चात से ही भूटान के लिये विशेष आर्थिक सहायता का मार्ग खुल पाया है।
  • भारत और भूटान के मध्य 8 अगस्त, 1949 को दार्जलिंग में शांति और मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किये गए थे। इस संधि को भारत-भूटान संधि के नाम से भी जाना जाता है।
  • भारत-भूटान संधि को भारत तथा भूटान के विदेशी सम्बंधों का आधार माना जाता है तथा इसी आधार पर दोनों देश विदेश नीति तैयार करते हैं। इस मैत्री संधि के अनुसार, भूटान को विदेशी मामलों में भारत की राय लेना आवश्यक था, किंतु वर्ष 2007 में इसमें संशोधन करके प्रावधान किया गया कि भूटान अब केवल भारत के हितों को प्रभावित करने वाले मामलों के सम्बंध में ही राय लेगा।
  • भूटान एक हिमालयी राष्ट्र है जिसे भारत अपने सुरक्षा प्रहरी के रूप में देखता है, साथ ही भारत सम्प्रभुता और लोकतंत्र के प्रति भूटान की प्रगति का भी समर्थन करता है।
  • भूटान की अर्थव्यवस्था मुख्यतः जल-विद्युत निर्यात पर निर्भर है। भूटान का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी भारत ही रहा है। वर्ष 1961 में शुरू हुई भूटान की पहली पंचवर्षीय योजना के बाद से भारत वहाँ निरंतर वित्तीय निवेश कर रहा है। भारत एवं भूटान के मध्य मुक्त व्यापार समझौता (Free Trade Agreement) वर्ष 1972 में हुआ था।

भारत-भूटान के सम्बंधों में नई चुनौतियाँ

  • भारत और भूटान के मध्य सहयोग का सबसे प्रमुख क्षेत्र पनबिजली है। यह दोनों देशों के बीच आर्थिक सम्बंधों का केंद्रबिंदु है। भूटान की जी.डी.पी. में इसका सबसे अधिक योगदान है। भारत विभिन्न पनबिजली संयंत्रों के निर्माण में भूटान को सक्रिय सहयोग प्रदान करता रहा है।
  • पनबिजली ही भारत और भूटान के मध्य चिंता का प्रमुख कारण भी है। भूटान पर लगातार पनबिजली कर्ज बढ़ता जा रहा है तथा इस सार्वजनिक ऋण के भुगतान के लिये चीन लगातार भूटान के सामने प्रस्ताव रख रहा है। भूटान भी भारत पर अपनी निर्भरता को कम करना चाहता है।
  • भूटान निरंतर अपनी अर्थव्यवस्था में विविधता का रास्ता अपना रहा है। इस सहयोग के लिये वह चीन को भारत के विकल्प के रूप में देख रहा है। हालाँकि, वर्तमान में चीन तथा भूटान के मध्य व्यापारिक एवं आर्थिक सम्बंध सीमित ही हैं।
  • भूटान द्वारा एक तिहाई वस्तुओं का आयात चीन से किया जाता है| इससे स्पष्ट होता है कि चीन भूटान के साथ व्यापारिक मामलों में पैर जमाने का प्रयास कर रहा है।
  • चीन की भूटान में बढ़ती पैठ भारत की सुरक्षा की दृष्टि से भी चिंता का विषय है। चीन इस हिमालयी राष्ट्र में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिये संस्कृति और पर्यटन जैसी सॉफ्ट पॉवर की कूटनीति का प्रयोग कर रहा है। भूटान में लगातार चीनी पर्यटकों की संख्या में वृद्धि हो रही है, जिसे भूटान अपनी आर्थिक बढ़त के रूप में देख रहा है, साथ ही भूटान की जी.डी.पी. में दूसरी सबसे बड़ी हिस्सेदारी पर्यटन की ही है।

आगे की राह

  • भारत को भूटान के साथ अपने रिश्तों में विविधता लाने के साथ-साथ अपनी भूमिका भी बदलनी होगी। अब भूटान कम विकसित देशों के समूह से बाहर निकलना चाहता है और आर्थिक रूप से अधिक आत्मनिर्भर बनना चाहता है। भारत भूटान में अपने निवेश में वृद्धि कर भूटान की प्रगति में सहायता कर सकता है।
  • मैत्री संधि के अनुच्छेद-2 के अनुसार, भारत भूटान के प्रशासनिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा, किंतु उसके बाहरी सम्बंधों में सलाह दे सकता है। चीन द्वारा इस प्रावधान का विरोध किया जाता रहा है। लेकिन डोकलाम विवाद के समय में भूटान का प्रमुख सहयोगी भारत ही रहा था, जिसने अपने पड़ोसी देश (भूटान) की रक्षा के लिये चीन का विरोध किया था।
  • चीन, भूटान के साथ अपने सम्बंधों को केवल आर्थिक रूप से ही सीमित नहीं रखना चाहता, बल्कि भूटान की घरेलू एवं विदेश नीतियों को भी प्रभावित करना चाहता है। फिलहाल तो भूटान में भारत के लिये खतरे की बात नहीं है, किंतु अफ़सोस करने से पहले सुरक्षित हो जाना हमेशा बेहतर रहता है।
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