(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 व 2 : महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, सामाजिक सशक्तीकरण, केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ, स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र और सेवाओं के विकास व प्रबंधन से संबंधित विषय)
संदर्भ
‘मासिक धर्म संबंधी स्वास्थ्य’ सबसे महत्त्वपूर्ण किंतु निम्न प्राथमिकता वाले लैंगिक मुद्दों में से एक है। दुर्भाग्य से इसे एक सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती तथा राष्ट्र निर्माण में बाधक की बजाय महिलाओं की समस्या के रूप में ही देखा जाता है।
मासिक धर्म और अधिकार
- मासिक धर्म के आधार पर महिलाओं से भेदभावपूर्ण व्यवहार करना अस्पृश्यता का ही एक स्वरुप है। लैंगिक भेदभाव को रोकने संबंधी कानूनों से इतर मासिक धर्म के आधार पर महिलाओं के साथ होने वाली अस्पृश्यता के उन्मूलन के लिये एक विशिष्ट कानून की आवश्यकता है।
- मासिक धर्म के आधार पर किसी महिला/बालिका का बहिष्कार न केवल महिलाओं की शारीरिक स्वायत्तता का उल्लंघन है, बल्कि उनकी निजता के अधिकार का भी उल्लंघन है।
- मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के अतिरिक्त इस प्रकार के भेदभाव से महिलाएँ अवसर की समानता से भी वंचित रह जाती हैं। भारत जैसे कई देशों में यह बड़ी संख्या में बालिकाओं के स्कूल छोड़ने का कारण भी है।
- मासिक धर्म के कारण होने वाले भेदभाव से महिलाओं की भावनात्मक व मानसिक स्थिति, जीवन शैली और स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
सेनेटरी पैड का कम प्रयोग
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (NFHS-4) 2015-16 के अनुसार भारत में 355 मिलियन से अधिक महिलाएँ ऐसी हैं, जिन्हें माहवारी होती है। यद्यपि, केवल 36 प्रतिशत महिलाएँ स्थानीय या व्यावसायिक रूप से उत्पादित सैनिटरी नैपकिन का उपयोग करती थी।
- हाल ही में जारी एन.एफ.एच.एस.-5 के पहले चरण के अनुमानों के अनुसार, मासिक धर्म से संबंधित उत्पादों का उपयोग करने वाली महिलाओं की प्रतिशतता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। यह सुधार विशेष रूप से दमन व दीव और दादरा व नगर हवेली, पश्चिम बंगाल तथा बिहार में देखा गया है।
- इसके बावजूद भारत में मासिक धर्म स्वास्थ्य एक कम प्राथमिकता वाला मुद्दा बना हुआ है, जिसका कारण वर्जनाएं, शर्म, मिथक, गलत सूचनाएँ और स्वच्छता सुविधाओं व मासिक धर्म उत्पादों तक पहुँच में कमी है।
पारंपरिक व प्रतिगामी प्रथाओं का प्रचलन
- मासिक धर्म के दौरान सामाजिक प्रतिबंधों से महिलाओं के स्वास्थ्य, समानता और निजता के अधिकारों का उल्लंघन होता है।
- परम्पराओं के अनुसार, मासिक धर्म के दौरान महिलाओं व लड़कियों को अलग-थलग रखा जाता है, उन्हें धार्मिक स्थलों या रसोईघरों में प्रवेश करने, बाहर खेलने और यहाँ तक कि स्कूल जाने से भी रोका जाता है।
- महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (MoWCD) द्वारा ‘एकीकृत बाल विकास सेवा’ (ICDS) योजना के तहत वर्ष 2018-19 में किये गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, कक्षा VI-VIII में नामांकित कुल छात्राओं में से एक-चौथाई से अधिक यौवनावस्था की शुरुआत के साथ स्कूल छोड़ देती हैं।
महिलाओं के समक्ष उपस्थित समस्याएँ
- मासिक धर्म संबंधी स्वास्थ्य और यौवनावस्था से संबंधित शिक्षा तक असंगत पहुँच के कारण युवा बालिकाओं के लिये मासिक धर्म का अनुभव और भी कठिन हो जाता है। जागरूकता, स्वच्छता प्रबंधन व असुविधाओं के चलते महिलाओं को संक्रमण तथा बीमारियों का भी सामना करना पड़ता है।
- वे मासिक धर्म उत्पादों की जानकारी और सहायता के लिये मां, दादी या महिला शिक्षकों पर निर्भर होती हैं, जिनसे प्राप्त जानकारी प्राय: सामाजिक संरचनाओं, विश्वासों व मिथकों पर आधारित होती है।
- इसके कारण शिक्षा, रोज़गार और अन्य गतिविधियों में भी महिलाओं को समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कई नियोक्ता इसे कार्य अक्षमता और कार्यबल में कम भागीदारी के साथ भी जोड़ते हैं।
सरकार की पहल
- मासिक धर्म स्वच्छता योजना (वर्ष 2011) और राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम (वर्ष 2014) जैसी कई योजनाएँ 10 से 19 वर्ष की आयु-वर्ग की किशोरियों में मासिक धर्म स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिये शुरू की गई हैं।
- सुविधा पहल के माध्यम से, सरकार ने 6,000 जन औषधि केंद्रों से 1 रुपए में 5 करोड़ से अधिक सैनिटरी पैड वितरित किये हैं। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और केरल की राज्य सरकारों ने भी स्कूलों में सैनिटरी पैड वितरित करने के कार्यक्रम लागू किये हैं।
समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता
- सैनिटरी पैड तक पहुँच के साथ-साथ मासिक धर्म स्वास्थ्य प्रबंधन, इसके सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं सामाजिक-आर्थिक परिणामों के बारे में महिलाओं व पुरुषों दोनों को शिक्षित करने की आवश्यकता है।
- स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला एवं बाल विकास और ग्रामीण विकास जैसे सरकार के प्रमुख मंत्रालयों तथा विभागों को एकजुट करने व मासिक धर्म स्वास्थ्य प्रबंधन से संबंधित मुद्दों के प्रति जवाबदेही में सुधार करने की भी आवश्यकता है।
- स्थानीय स्तर पर प्रभावी लोगों और निर्णय-निर्माताओं के साथ-साथ इस मुद्दे की संवेदनशीलता के लिये समुदाय-आधारित दृष्टिकोण की आवश्यकता है। मिथकों और भ्रांतियों को दूर करने के लिये पुरुषों एवं महिलाओं में व्यवहार परिवर्तन अभियान की आवश्यकता है।
- प्रमुख सार्वजनिक स्थानों, कार्यस्थलों, स्कूलों और कॉलेजों के साथ-साथ आँगनवाड़ी केंद्रों या शिशु देखभाल केंद्रों पर सैनिटरी पैड वेंडिंग मशीनों की स्थापना भी एक अच्छा उपाय है।