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राजनीतिक दलों का विलय तथा दसवीं अनुसूची

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान, राजनीतिक प्रणाली)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान, संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय)

पृष्ठभूमि

हाल ही में, राजस्थान में राष्ट्रीय स्तर के एक राजनीतिक दल की राज्य इकाई के सभी विधान सभा सदस्यों द्वारा दूसरे दल में शामिल होने का मामला न्यायालय पहुँच गया। पिछले वर्ष सितम्बर में इस दल के सभी छ: सदस्य दूसरे दल में शामिल हो गए थे। यह राजनीतिक दल अपने विधान सभा सदस्यों की वापसी की कोशिश कर रहा है। इस प्रकार, राजनीतिक दलों के संदर्भ में दल-बदल रोधी कानून की प्रभावशीलता का परीक्षण आवश्यक है।

दसवीं अनुसूची और राजनीतिक दलों का विलय

  • संविधान की दसवीं अनुसूची सदस्यों के दल-बदल पर रोक लगाती है, जिसका उद्देश्य सरकारों की स्थिरता को बनाए रखना है। हालाँकि, यह अनुसूची दलों के विलय पर रोक नहीं लगाती है।
  • दसवीं अनुसूची के पैरा (उपधारा) 4 (2) में विलय से सम्बंधित प्रावधान हैं। इसके अनुसार, किसी दल के दो-तिहाई सदस्य जब विलय के लिये सहमत हों तो उनको अयोग्यता से छूट प्रदान की गई है।
  • पैरा 4 (2) में संदर्भित विलय को एक प्रकार से कानूनी कवच के रूप में देखा जाता है, जहाँ यह माना जाता है कि सदस्य सही अर्थों में विलय के बजाय अयोग्यता से छूट प्राप्त करने के उद्देश्य से ऐसा करते हैं।

दलों का विलय और राजनीति

  • इस राजनीतिक दल का तर्क है कि राष्ट्रीय स्तर पर विलय किये बिना किसी राष्ट्रीय दल के राज्य इकाई का विलय नहीं किया जा सकता है।
  • हालाँकि, दसवीं अनुसूची राज्य इकाइयों और राष्ट्रीय इकाइयों के बीच इस द्वि-विभाजन या विरोधाभास की पहचान करती है।
  • पैरा 4 (2) के अनुसार, किसी दल के विलय से आशय उस सदन के किसी विधायी दल के विलय से है।
  • इस संदर्भ में, विलय होने वाला दल बी.एस.पी. की राजस्थान विधायी इकाई है न कि राष्ट्रीय स्तर पर बी.एस.पी. है। दसवीं अनुसूची का पैरा 1 दल-बदल रोधी कानून के संदर्भ में निर्दिष्ट शर्तों को परिभाषित करता है। साथ ही, विधायी इकाई को भी स्पष्ट करता है।
  • इसके अनुसार, पैरा 4 के प्रयोजनों के लिये ‘विधान मंडल दल या विधायी दल’ (जो विलय से सम्बंधित है) से तात्पर्य तत्समय किसी राजनीतिक दल से सम्बंधित सदन के सभी सदस्यों के समूह से है।

व्हिप और दल-बदल

  • प्रत्येक विधायक दल विधान सभा के कार्यकाल के प्रारम्भ में दल के व्हिप के सम्बंध में अध्यक्ष को सूचित करता है।
  • इस सम्बंध में उक्त राष्ट्रीय दल के राष्ट्रीय महासचिव द्वारा जारी की गई व्हिप का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि इस तरह के निर्देश आवश्यक रूप से सदन के पटल पर मतदान के लिये जारी किये जाते हैं।
  • दल-बदल रोधी कानून के संदर्भ में किसी राष्ट्रीय नेता के निर्देश को व्हिप नहीं माना जा सकता है।
  • वर्ष 2003 में, 91वें संविधान संशोधन के द्वारा दसवीं अनुसूची से पैरा 3 को हटा दिया गया था। यह संशोधन इसलिये किया गया था क्योंकि एक-तिहाई विभाजन के नियम का दलों द्वारा सदस्यों के ख़रीद-फरोख्त और विभाजन कराने के कारण दुरुपयोग किया जा रहा था।
  • किसी दल के एक-तिहाई सदस्यों को तोड़ना आसान था, अत: अब कानून द्वारा केवल दो-तिहाई (विलय के सम्बंध में) सदस्य होने पर ही दल-बदल से छूट प्रदान की गई है।

अभियोग का आधार

  • वर्तमान विवाद राष्ट्रीय दल द्वारा इस विलय को अवैध और असंवैधानिक बताना है, जिसके अनुसार, किसी राष्ट्रीय दल का विलय राष्ट्रीय स्तर पर होना चाहिये।
  • इस तर्क के समर्थन में इस दल ने उच्चतम न्यायालय के दो निर्णयों का उल्लेख किया है। प्रथम निर्णय वर्ष 2006 में जगजीत सिंह बनाम हरियाणा राज्य के मामले में और दूसरा वर्ष 2007 में राजेंद्र सिंह राणा व अन्य बनाम स्वामी प्रसाद मौर्य के मामले में है।
  • पहला निर्णय हरियाणा विधान सभा में एकल सदस्यीय दलों के चार विधायकों से सम्बंधित है, जो बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए। न्यायालय ने अध्यक्ष द्वारा इन सदस्यों को अयोग्य ठहराने के फैसले को बरक़रार रखा था।
  • दूसरे मामले में, वर्ष 2002 में उत्तर प्रदेश में एक दल के 37 सदस्य (जोकि उस दल के संख्या बल का एक-तिहाई था) विभाजन के बाद दूसरे दल में शामिल हो गए। इस मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इस विभाजन को मुख्य रूप से मान्यता नहीं दी जा सकती क्योंकि ये सभी विधायक एक ही बार में विभाजित नहीं हुए हैं।

ऐसे मामलों में पूर्ववर्ती उदाहरण

  • जुलाई 2019 में, 40 सदस्यीय गोवा विधान सभा में एक दल के 15 विधायको में से 10 सदस्य सत्तारूढ़ दल में शामिल हो गए थे। चूँकि इन सदस्यों की संख्या उस विधायी दल इकाई की कुल संख्या का दो-तिहाई थी इसलिये उन्हें अयोग्यता से छूट दी गई है।
  • हालाँकि, अध्यक्ष द्वारा इन सदस्यों को अयोग्य न ठहराने का निर्णय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है।
  • पिछले वर्ष राज्य सभा में उपराष्ट्रपति वैंकया नायडू ने टी.डी.पी. के 5 सदस्यों में से 4 द्वारा दल-बदलने के बाद भा.ज.पा. में विलय का आदेश दिया था। ऐसा माना जाता है कि इन चार सांसदों को दसवीं अनुसूची के तहत दंड से बचाने के उद्देश्य से विलय किया गया था।
  • इसी प्रकार, तेलंगाना में वर्ष 2016 में, 15 विधायकों में से 12 विधायकों के सत्तारूढ़ दल में शामिल होने के दो वर्ष बाद अध्यक्ष ने दो-तिहाई से अधिक सदस्यों के स्थानांतरण के कारण इसको विलय के रूप में मान्यता दी।
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