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सूक्ष्म-वित्त (Microfinance)

  • सूक्ष्म-वित्त (Microfinance) का तात्पर्य ऐसे वित्तीय सेवाओं (Financial Services) से है, जो कम आय वाले (Low-Income) और वंचित वर्गों (Underserved Populations) को प्रदान की जाती हैं, खासकर उन्हें जो पारंपरिक बैंकों (Traditional Banks) से बाहर रह जाते हैं।
  • इसका मुख्य उद्देश्य है:वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) — यानी गरीबों, विशेषकर महिलाओं (Women) और ग्रामीण समुदायों (Rural Communities) को सशक्त बनाना।
    यह बिना किसी संपार्श्विक (Collateral-Free) के छोटे ऋण (Small Loans) और अन्य वित्तीय उपकरण (Financial Tools) उपलब्ध कराता है।

सूक्ष्म-वित्त के घटक (Components of Microfinance)

  • सूक्ष्म ऋण (Microcredit):-यह छोटे ऋण (Small Loans) होते हैं, जो लोगों को स्वरोज़गार (Self-Employment) या आय-सृजन (Income-Generating Activities) के लिए दिए जाते हैं।उदाहरण: बकरी पालन, सब्ज़ी की दुकान, सिलाई मशीन आदि के लिए कर्ज।

  • सूक्ष्म बचत (Micro Savings):-यह ऐसे सुरक्षित और सुलभ बचत खाते (Secure and Accessible Savings Accounts) होते हैं, जो कम आय वाले लोगों (Low-Income Groups) के लिए बनाए जाते हैं।उद्देश्य: लोगों को भविष्य के लिए पैसा जमा करने की आदत डालना।

  • सूक्ष्म बीमा (Micro Insurance):-यह कम प्रीमियम पर उपलब्ध बीमा सेवाएं हैं, जो स्वास्थ्य जोखिम (Health Risks), फसल का नुकसान (Crop Failure) या प्राकृतिक आपदाओं (Natural Disasters) से सुरक्षा प्रदान करती हैं।

  • मनी ट्रांसफर (Money Transfers):-यह कम लागत वाली (Low-Cost) धन भेजने की सेवाएं होती हैं, जो प्रवासी श्रमिकों (Migrant Workers) और ग्रामीण परिवारों (Rural Families) के लिए उपयोगी होती हैं।उद्देश्य: शहरों में कमाने वाले लोग आसानी से अपने गांवों में पैसे भेज सकें।

भारत में सूक्ष्म-वित्त का विकास (Evolution of Microfinance in India)

कालखंड (Year/Phase)

महत्वपूर्ण पड़ाव (Key Milestones)

1970–1980 का दशक

SEWA (स्वरोजगार महिला संघ - Self-Employed Women’s Association) और ग्रामीण ऋण (Rural Credit) के प्रारंभिक प्रयोग

1992

SHG–Bank Linkage Programme की शुरुआत NABARD द्वारा

1990–2000 का दशक

SKS, Bandhan, Ujjivan जैसी सूक्ष्म-वित्त संस्थाओं (Microfinance Institutions - MFIs) का उदय

2011

Malegam Committee Report – आंध्र प्रदेश संकट (Andhra Pradesh Microfinance Crisis) के बाद एमएफआई क्षेत्र पर रिपोर्ट

2022

RBI द्वारा नया विनियामक ढांचा (Revised Regulatory Framework) – उधारकर्ताओं की सुरक्षा के लिए

प्रमुख संस्थाएं (Key Institutions Involved)

  • NABARD (नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट): SHG-बैंक लिंक मॉडल का अग्रदूत (Pioneer)।
  • SIDBI (Small Industries Development Bank of India): MFIs को पुनर्वित्त (Refinance) करता है और समावेशी वित्त (Inclusive Finance) को बढ़ावा देता है।
  • RBI (भारतीय रिज़र्व बैंक):-NBFC-MFIs का नियामक (Regulator) है।
  • MUDRA बैंक:-प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) के तहत छोटे उद्यमों को ऋण देता है और MFIs को पुनर्वित्त देता है।

भारत में सूक्ष्म-वित्त के मॉडल (Models of Microfinance in India)

स्व-सहायता समूह – बैंक लिंक मॉडल (SHG–Bank Linkage Model)

  • प्रवर्तक (Promoted by): NABARD
  • SHGs में 10–20 लोग होते हैं जो सामूहिक रूप से बचत करते हैं और आपस में ऋण देते हैं।
    बाद में बैंक इन समूहों को ऋण देते हैं।
  • मुख्य विशेषताएं:
    • सामूहिक निर्णय (Collective Decision-Making)
    • साथी निगरानी (Peer Monitoring)
    • महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment)

सूक्ष्म-वित्त संस्थाएं (Microfinance Institutions - MFIs)

  • NBFC-MFI के रूप में RBI के अधीन पंजीकृत।
  • व्यक्तिगत या समूह को छोटे ऋण देते हैं।
  • Joint Liability Group (JLG) मॉडल अपनाते हैं – जिसमें समूह के सदस्यों के बीच आपसी दबाव (Peer Pressure) से समय पर ऋण चुकता होता है।
  • अक्सर बैंक की तुलना में ब्याज दर अधिक होती है।

RBI का संशोधित विनियामक ढांचा – 2022 (Revised Regulatory Framework – 2022)

उद्देश्य:-सभी प्रकार के उधारदाताओं (Lenders) — जैसे:

  • NBFCs
  • बैंक (Banks)
  • स्मॉल फाइनेंस बैंक (Small Finance Banks)
  • सहकारी बैंक (Cooperative Banks)
  • गैर-लाभकारी MFIs (Not-for-Profit MFIs) — के लिए एक समान नियम लागू करना।

प्रमुख विशेषताएं (Key Features)

मुख्य विशेषताएँ:

  • माइक्रोफाइनेंस ऋण की एक समान परिभाषा:
  • 3 लाख से कम वार्षिक आय वाले परिवारों को ऋण।
  • कोई संपार्श्विक आवश्यकता नहीं।
  • पुनर्भुगतान दायित्वों पर सीमा:
  • कुल EMI उधारकर्ता की मासिक आय के 50% से अधिक नहीं होनी चाहिए।

ब्याज दर सीमा हटाना:

  • ऋणदाताओं को पारदर्शी, बोर्ड-अनुमोदित दरें तय करनी चाहिए।
  • उधारकर्ताओं की मज़बूत सुरक्षा:
  • शर्तों का खुलासा, उचित शिकायत निवारण और उचित वसूली प्रथाएँ।

सूक्ष्म-वित्त के लाभ (Benefits of Microfinance)

  • बैंकों से वंचित लोगों की वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion of the Unbanked): वे लोग जिन्हें पारंपरिक बैंकिंग सेवाएँ नहीं मिल पातीं, अब बैंकिंग प्रणाली से जुड़ते हैं।
  • महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment): 70–80% ग्राहक महिलाएँ होती हैं, जो आत्मनिर्भर बनती हैं और घरेलू निर्णयों में भागीदारी बढ़ती है।
  • आय सृजन और स्वरोजगार (Income Generation and Self-Employment): छोटे व्यापार या कुटीर उद्योग (Micro Enterprises) शुरू करने में सहायता मिलती है।
  • अनौपचारिक साहूकारों पर निर्भरता में कमी (Reduces Dependence on Informal Moneylenders): महंगे ब्याज पर कर्ज देने वाले साहूकारों से छुटकारा।
  • ग्रामीण भारत में उद्यमिता संस्कृति को बढ़ावा (Promotes Entrepreneurial Culture in Rural India): ग्रामीण क्षेत्रों में कारोबार की भावना को प्रेरित करता है।
  • बचत की आदत और जोखिम सहनशीलता (Encourages Saving Habits and Risk Resilience): लोग बचत करना सीखते हैं और संकट के समय आर्थिक रूप से बेहतर ढंग से निपटते हैं।

चुनौतियाँ और आलोचनाएँ (Challenges and Criticisms)

  • उच्च ब्याज दरें (High Interest Rates): कई MFIs द्वारा 20–25% से अधिक ब्याज लिया जाता है।
  • अत्यधिक ऋण भार (Over-Indebtedness): लोग कई MFIs से कर्ज लेकर कर्ज के जाल में फँस जाते हैं।
  • जबरन वसूली की प्रथा (Coercive Recovery Practices): वसूली के सख्त तरीके से मानसिक दबाव बढ़ता है;
    जैसे – आंध्र प्रदेश संकट (Andhra Pradesh 2010) में किसानों की आत्महत्या।
  • लक्ष्य से भटकाव (Mission Drift): कुछ MFIs लाभ (Profit) कमाने पर अधिक ध्यान देती हैं, गरीबी उन्मूलन पर नहीं।
  • वित्तीय साक्षरता की कमी (Lack of Financial Literacy): उधारकर्ता शर्तें और कर्ज चुकाने की प्रक्रिया नहीं समझ पाते।
  • विनियामक छल (Regulatory Arbitrage): कुछ MFIs NGO के रूप में पंजीकृत होकर RBI की निगरानी से बच निकलती हैं।

सरकारी पहलें (Government Initiatives Related to Microfinance)

  • प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY): बगैर बैंक खातों वाले लोगों को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ने की पहल।
  • मुद्रा योजना (MUDRA Yojana): 10 लाख तक के कर्ज छोटे उद्यमियों को प्रदान करना।
  • DAY-NRLM (Deendayal Antyodaya Yojana – National Rural Livelihood Mission):ग्रामीण गरीब महिलाओं को SHG बनाकर आजीविका सहायता प्रदान करना।
  • डिजिटल वित्तीय साक्षरता अभियान (Digital Financial Literacy Campaigns): डिजिटल वित्तीय साधनों को समझने और इस्तेमाल में सहायता।

महत्वपूर्ण समितियाँ (Important Committees)

  • मालेगाम समिति (Malegam Committee – 2011): NBFC-MFIs के लिए विनियामक दिशानिर्देश तय किए।
  • उषा थोराट समिति (Usha Thorat Committee – 2010): लघु वित्तीय बैंक (Small Finance Banks) जैसे विभिन्न प्रकार के बैंकों की सिफारिश की।
  • रंगराजन समिति (Rangarajan Committee – 2008): वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) पर व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत की।
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