दक्षिण अफ्रीका के म्पुमलांगा प्रांत में पाए जाने वाले तेंदुओं पर किए गए ‘माइटोजीनोम’ आनुवंशिक शोध के अनुसार, इनकी उत्पत्ति लगभग 1 मिलियन वर्ष पूर्व हिमयुग के दौरान मध्य एवं दक्षिणी अफ्रीका के तेंदुओं से हुई है।
क्या है माइटोजीनोम (Mitogenome)
- डी.एन.ए. कोशिकाओं के केंद्रक के अलावा माइटोकॉन्ड्रियल जीनोम (Mitochondrial Genome) या माइटो जीनोम में भी पाया जाता है।
- माइटोजीनोम डी.एन.ए. अणु होते हैं जो कोशिका के केंद्रक के बाहर चारों ओर तैरते रहते हैं।
- इनमें विशिष्ट आनुवंशिक जानकारी का संग्रह होता है जो मातृ रूप से विरासत में मिलती है, अर्थात इसमें केवल मां से संतानों में आने वाली आनुवंशिक जानकारी ही होती है।
- ये कोशिकाओं में इतनी प्रचुर मात्रा में होते हैं कि इन्हें निकालना बहुत आसान होता है।
- माइटोजीनोम का अध्ययन किसी प्रजाति की वंशावली को ट्रैक करने का एक विश्वसनीय तरीका है क्योंकि जीन समय के साथ नियमित दर पर उत्परिवर्तन (परिवर्तन) करते हैं।
शोध अध्ययन के निष्कर्ष
- दक्षिण अफ़्रीकी तेंदुओं की उत्पत्ति दो अद्वितीय समूहों (या उप-परिवारों) से हुई है जो लगभग 0.8 मिलियन वर्ष पूर्व दक्षिणी एवं मध्य अफ़्रीका में पाए जाते थे।
- इन समूहों की उत्पत्ति संभवतः 1.6 मिलियन से 0.52 मिलियन वर्ष पहले मध्य-प्लीस्टोसीन (हिम युग) के दौरान हुई थी, जब दुनिया एक अस्थिर जलवायु की स्थिति में थी।
- प्लेइस्टोसिन युग (जिसे हिमयुग भी कहा जाता है) को गर्म एवं आर्द्र जलवायु के साथ बारी-बारी से ठंडे व शुष्क चक्रों के लिए चिह्नित किया गया है।
- इसने पूरे अफ्रीकी महाद्वीप के परिदृश्य में काफी बदलाव किए जिससे सवाना घास के मैदानों का बार-बार विस्तार एवं संकुचन हुआ।
- शुष्क अवधि के दौरान जानवरों की आबादी में भी बिखराव हुआ क्योंकि घास के मैदान रेगिस्तान में परिवर्तित हो गए।
निष्कर्षों का महत्व
- इन तेंदुओं को उचित रूप से वर्गीकृत करने में सहायता
- तेंदुए के विकास के बारे में आगे के शोध में सहायक
- वर्तमान आबादी का प्राचीन आबादी से संबंध और वर्तमान भौगोलिक उपस्थिति तक आने के उसके इतिहास की समझ से पशु संरक्षण प्रयासों को बेहतर करने में मदद