भारतीय वायु सेना की क्षमता वृद्धि के लिए अधिकार प्राप्त समिति ने 3 मार्च, 2025 को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में प्रमुख क्षेत्रों की पहचान की और मध्यम एवं दीर्घकालिक उपायों के लिए सिफारिशें कीं।
वायु सेना आधुनिकीकरण पर उच्चस्तरीय समिति के बारे में
- इस समिति का गठन रक्षा मंत्री के निर्देश पर सभी मुद्दों की समग्र रूप से जाँच करने एवं एक स्पष्ट कार्य योजना तैयार करने के लिए किया गया था। इसकी अध्यक्षता रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह ने की।
- इस उच्चस्तरीय समिति की चर्चा में प्रमुख फोकस प्रतिद्वंदी देशों द्वारा तीव्र आधुनिकीकरण प्रयासों के बीच भारतीय वायुसेना में लड़ाकू विमानों को शामिल करने में हो रही भारी देरी पर केंद्रित किया गया।
रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें
- रिपोर्ट में भारतीय वायुसेना ने लड़ाकू विमानों की संख्या में कमी को दूर करने के लिए प्राथमिकताएं सूचीबद्ध की हैं।
- संख्या में इस कमी को पूरा करने के लिए भारतीय वायुसेना को प्रतिवर्ष 35 से 40 लड़ाकू विमानों की ज़रूरत होगी।
- इस रिपोर्ट में एयरोस्पेस क्षेत्र में ‘आत्मनिर्भरता’ को बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र द्वारा सार्वजनिक रक्षा क्षेत्र के उपक्रमों एवं डी.आर.डी.ओ. (DRDO) के प्रयासों को पूरक बनाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया गया है।
- उठाए जाने वाले किसी भी कदम में स्वदेशीकरण एक महत्वपूर्ण पहलू होगा, जिसमें दक्षता लाने और क्षमता को तेजी से बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी महत्वपूर्ण होगी।
वायु सेना की वर्तमान क्षमता
- भारतीय वायुसेना के पास वर्तमान में 31 लड़ाकू स्क्वाड्रन हैं जबकि स्वीकृत संख्या 42.5 स्क्वाड्रन है।
- यद्यपि लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एल.सी.ए.)-एमके1ए की डिलीवरी में देरी हुई है जबकि जगुआर, मिग-29यूपीजी एवं मिराज-2000 जैसे कई मौजूदा लड़ाकू विमानों को भी इस दशक के अंत तक चरणबद्ध तरीके से हटा दिया जाएगा।
- बड़ा और अधिक सक्षम एलसीए-एमके2 विकासाधीन है, जबकि देश का पांचवीं पीढ़ी का जेट एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए) पूर्ण रूप से विकसित होने से कम से कम एक दशक दूर है।