(मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3, भारतीय अर्थव्यवस्था, योजना संसाधन, विकास, रोज़गार से संबंधित मुद्दे)
संदर्भ
- हाल ही में, भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में अर्थव्यवस्था की नीतिगत ब्याज दरों को अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया है। इसके साथ ही रिज़र्व बैंक ने अपने नीतिगत निर्णय लेने के दृष्टिकोण में भी कोई परिवर्तन नही किया है।
- गौरतलब है कि मौद्रिक नीति समिति द्वारा नीतिगत ब्याज दरों को अपरिवर्तित रखने का निर्णय 5-1 के बहुमत से लिया गया। इसका उद्देश्य मुद्रास्फीति को भविष्य में निश्चित लक्ष्य के भीतर बनाए रखना है।
- इसके अंतर्गत रेपो दर को 4 प्रतिशत, रिवर्स रेपो दर को 3.35 प्रतिशत तथा सीमांत स्थायी सुविधा (MSF) दर एवं बैंक दर को 4.25 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया गया है।
मौद्रिक नीति समीक्षा
- भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति द्वारा प्रत्येक दो माह बाद मौद्रिक नीति की समीक्षा की जाती है। इसके अंतर्गत अर्थव्यवस्था से संबंधित महत्त्वपूर्ण पक्षों का अवलोकन किया जाता है।
- इसका उद्देश्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखते हुए आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है। इसमें नीतिगत ब्याजदरों में परिवर्तन से संबंधित निर्णय लिये जाते हैं।
निर्णय की पृष्ठभूमि
- भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा आर्थिक विकास एवं मुद्रास्फीति के संबंध में नीतिगत दृष्टिकोण का मूल्यांकन किया जाता है। मुद्रास्फीति के संदर्भ में इसका उद्देश्य मुद्रास्फीति को 4 प्रतिशत के आसपास बनाए रखना है। इसमें 2 प्रतिशत अंकों की वृद्धि या कमी हो सकती है अर्थात यह 2 प्रतिशत से 6 प्रतिशत के मध्य रह सकती है।
- रिज़र्व बैंक द्वारा आर्थिक विकास के संबंध में कोई विशिष्ट लक्ष्य निर्धारित नही किया गया है। वर्ष 2018 के बाद से, जबसे शक्तिकांत दास ने रिज़र्व बैंक के गवर्नर का पद ग्रहण किया है, रिज़र्व बैंक द्वारा मुद्रास्फीति के स्थान पर विकास को प्राथमिकता दी जा रही है।
- इसके अंतर्गत रिज़र्व बैंक द्वारा अर्थव्यवस्था में प्रचलित ब्याज दरों में कमी शामिल है। ऐसा संभवतः इसलिये किया जा रहा था कि मुद्रास्फीति रिज़र्व बैंक के सहज क्षेत्र में थी।
- वर्ष 2019 के अंतिम माह से मुद्रास्फीति की दर 6 प्रतिशत से अधिक रही है। ऐसी स्थिति में रिज़र्व बैंक के लिये ब्याज दरों में कटौती करना जटिल कार्य हो गया। ऐसा तब हुआ जब कोविड-19 महामारी से उपजी मंदी के संदर्भ में ऐसा किया जाना अपेक्षित था।
- नीतिगत दरों में कमी करने में असमर्थ केंद्रीय बैंक ने बाज़ार में तरलता में वृद्धि की। इसके पीछे रिज़र्व बैंक का उद्देश्य ऋण लेने वालों, चाहे वे छोटे व्यवसायी हों या बड़ी कंपनियाँ, को सक्षम बनाना था। रिज़र्व बैंक द्वारा बाज़ार में तरलता बढ़ाने से मुद्रास्फीति में भी वृद्धि हुई, जो कि पहले से ही अधिक चल रही थी।
- रिज़र्व बैंक द्वारा बाज़ार में तरलता को बढ़ावा दिया गया। परंतु आँकड़े बताते हैं कि बैंकों ने इन फंडों का एक बड़ा भाग ‘रिवर्स रेपो रेट’ के माध्यम से केंद्रीय बैंक के पास वापस रख दिया। इसका प्रमुख कारण था की बैंक पहले से ही गैर-निष्पादित सम्पत्तियों (NPA) का सामना कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में बैंक नवीन ऋणों का विस्तार नहीं करना चाहते।
- बैंक इस बात को लेकर सशंकित हैं कि ऋण लेने वाले ऋण चुकाने में सक्षम होंगे या नहीं। इसके साथ ही वर्तमान में बाज़ार में मंदी के कारण ऋण की माँग में भी कमी आई है।
- गौरतलब है कि, मौद्रिक नीति की समीक्षा के क्रम में रिज़र्व बैंक के सम्मुख विकास की धीमी गति एवं बढती मुद्रास्फीति रूपी दो चुनौतियाँ मौजूद थीं। रिज़र्व बैंक को इस पर विचार करना था कि क्या उसे मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के लिये रेपो दर में वृद्धि करनी चाहिये या आर्थिक सुधार के उद्देश्य से उसे कम रखना चाहिये? इस क्रम में रिज़र्व बैंक ने नीतिगत दरों को अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया है।
मुद्रास्फीति एवं विकास दर में संबंध
- मुद्रास्फीति एवं विकास दर में एक सीमा तक प्रत्यक्ष संबंध पाया जाता है। विकास दर में वृद्धि के लिये आवश्यक है कि उत्पादन में बढ़ोतरी की जाए। उत्पादन में वृद्धि के लिये निवेश को बढ़ाना आवश्यक है।
- अतः निवेश में वृद्धि के लिये आवश्यक है कि ब्याज दरों में कमी की जाए। हालाँकि, यदि ब्याज दर में वृद्धि की जाती है तो विकास दर नकारात्मक रूप से प्रभावित होगी।
निर्णय का मुद्रास्फीति पर प्रभाव
- मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखना रिज़र्व बैंक की प्राथमिक ज़िम्मेदारी है। मई एवं जून माह में मुद्रास्फीति की दर 6 प्रतिशत से अधिक रही है। जबकि केंद्रीय बैंक ने इसे क्षणिक घटना बताया है।
- आँकड़ों के अनुसार, रिज़र्व बैंक द्वारा अगले वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में कीमतों में 5.1 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान व्यक्त किया गया है। गौरतलब है कि यह वृद्धि तब हो रही है जब अर्थव्यवस्था के समक्ष माँग काफी कम है तथा जब माँग में वृद्धि होगी तो मुद्रास्फीति की संभावना और बढ़ेगी।
- यदि मुद्रास्फीति में कमी नहीं आती है तो केंद्रीय बैंक दिसंबर 2021 या फरवरी 2022 की मौद्रिक समीक्षा में ब्याज दरों में वृद्धि कर सकता है।
- केंद्रीय बैंक के ब्याज दरों में वृद्धि न करने के निर्णय से सभी ऋण लेने वालों को मदद मिल रही है। इससे उनके द्वारा ऋण के लिये भुगतान की जाने वाली वास्तविक ब्याज दर में कमी आती है।
- केंद्रीय बैंक के अनुसार वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में खुदरा मुद्रास्फीति के 5.1 प्रतिशत रहने की उम्मीद है। इसका तात्पर्य है कि सरकार को अब केंद्रीय बैंक से आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये अधिक सहयोग की आशा नहीं करनी चाहिये।
- सरकार को यह स्वीकार करना चाहिये कि सकल घरेलू उत्पाद को बढ़ावा देने कि प्राथमिक ज़िम्मेदारी उसकी है न कि केंद्रीय बैंक की।
निर्णय का आर्थिक विकास पर प्रभाव
- केंद्रीय बैंक ने मौद्रिक नीति में महामारी के प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से विकास के पुनरुद्धार को प्राथमिकता दी है।
- इसने चालू वित्तवर्ष के लिये अपने विकास दर अनुमान को 9.5 प्रतिशत पर बरकरार रखने का निर्णय लिया है। इसने अपनी जून माह की समीक्षा में भी इसे 9.5 प्रतिशत ही रखा था।
- यदि भारत आर्थिक सुधार की सुदृढ़ स्थिति में होता तो केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिये ध्यान केंद्रित कर सकता था। परंतु केंद्रीय बैंक को संदेह है कि यदि वह मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से यदि ब्याज दरों में वृद्धि करता है तो आर्थिक सुधार को नुकसान पहुँच सकता है।
निष्कर्ष
वर्तमान में देश विकास दर की कमी एवं बढ़ती मुद्रास्फीति रूपी दोहरी चुनौतियों का सामना कर रहा है। रिज़र्व बैंक की हाल ही में की गई मौद्रिक नीति समीक्षा में इसमें संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया गया है। परंतु इसके लिये सारी ज़िम्मेदारी केंद्रीय बैंक पर ही नहीं डाली जा सकती। विकास दर को बढ़ाने के लिये सरकार द्वारा भी सकारात्मक कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।