(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाओं से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3- आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियाँ, धन-शोधन तथा इसे रोकने से सबंधित विषय)
संदर्भ
हाल ही में, प्रकाशित पेंडोरा पेपर लीक ने एक बार पुनः धन-शोधन की गतिविधियों को चर्चा में ला दिया है।
पृष्ठभूमि
- इंटरनेशनल कन्सोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (ICIJ) ने वैश्विक वित्तीय संरचना के कामकाज को उजागर करने के लिये लगभग 12 मिलियन दस्तावेजों पर शोध और विश्लेषण किया है, जो अवैध वित्तीय प्रवाह में मदद कर अमीरों को उनकी आय और गतिविधियों को छिपाने में सक्षम बनाता है। उनमें से एक ‘पेंडोरा पेपर लीक’ है।
- वर्ष 2008 के बाद से विभिन्न वित्तीय संस्थानों तथा अमीरों के गठजोड़ वाली फ़ाइलें गायब हो गईं। वर्ष 2008 में एल.जी.टी. बैंक ऑफ़ लिचेंस्टीन के पूर्व कर्मचारी ने कर अधिकारियों को अवैध वित्तीय प्रवाह के सबंध में कुछ जानकारी दी, जिसमें कुछ भारतीय नाम भी शामिल थे।
- वर्ष 2014 में लक्ज़मबर्ग दस्तावेज़ लीक केस सामने आया। वर्ष 2017 में पैराडाइस पेपर 100 वर्ष पुरानी वैश्विक ऑफशोर लॉ फर्म एप्पलबाई से लीक हो गए थे। इसी प्रकार, वर्ष 2016 में पनामा पेपर्स को पनामा की वित्तीय फर्म, मोसैक फोन्सेका के सर्वर को हैक करके प्राप्त किया गया था। इन खुलासों में, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड (BVI) का नाम प्रमुखता से सामने आया था।
- अवैध वित्तीय प्रवाह का एक बड़ा हिस्सा न्यूयॉर्क और लंदन जैसे शहरों से जुड़ा है, जो दुनिया के सबसे बड़े वित्तीय केंद्र हैं। लीक हुए आँकड़ों से पता चलता है कि ये संस्थाएँ टैक्स हैवन के माध्यम से अमीरों और शक्तिशाली लोगों के धन को स्थानांतरित करती हैं।
धनशोधन की कार्यप्रणाली
- टैक्स हैवन देश व संस्थाएँ ट्रस्ट, शेल कंपनियों और 'लेयरिंग' की प्रक्रिया का उपयोग करके संपत्ति के वास्तविक स्वामित्व को छिपाने का कार्य करती हैं। विभिन्न वित्तीय फर्म इसके लिये अमीरों को अपनी सेवाएँ प्रदान करती हैं।
- लेयरिंग की प्रक्रिया में एक शेल-कंपनी द्वारा एक टैक्स हैवन स्थान से दूसरे टैक्स हैवन स्थान पर फंड ले जाना और पिछली कंपनी को लिक्विड करना शामिल है। इस तरह, पैसा कई टैक्स हैवन स्थानों के माध्यम से अंतिम गंतव्य तक ले जाया जाता है। चूंकि हर स्थान पर साक्ष्य मिटा दिये जाते हैं, इसलिये कर अधिकारियों के लिये धन के प्रवाह को ट्रैक करना मुश्किल हो जाता है।
- दुनिया के अधिकांश अमीर अपनी कर देयता को कम करने के लिये इस तरह के जोड़-तोड़ का उपयोग करते हैं, भले ही उनकी आय कानूनी रूप से अर्जित की गई हो।
- इसके तहत धन को राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर ले जाया जाता है ताकि इसे लेनदारों व सरकार की पहुँच से दूर किया जा सके।
भारत में धनशोधन की स्थिति
- भारत में भी धनशोधन की गतिविधियाँ होती रही हैं। हाल ही में, घटित पेंडोरा पेपर लीक में भी कई भारतियों के नाम सामने आए हैं, जिसमें पूर्व क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर भी शामिल हैं। इससे पूर्व पनामा पेपर्स लीक में भी अनेक भारतीयों के नाम शामिल थे।
- भारत से अनेक आर्थिक अपराधी लंदन जैसे टैक्स हैवन देशों में भाग गए, जिसमें नीरव मोदी व विजय माल्या जैसे अपराधी शामिल हैं और कई भारतीय, भारतीय- अनिवासी (Non-Residents Indian) बन गए है, जो टैक्स हैवन देशों में शेल कंपनियों व ट्रस्टों को संचालित करते हैं।
- विभिन्न धन शोधन गतिविधियों के माध्यम से यह संकेत मिलता है कि भारत में असंगठित क्षेत्र की अपेक्षा संगठित क्षेत्र धन-शोधन की गतिविधियों में अधिक लिप्त है।
चुनौतियाँ
- धनशोधन जैसी गतिविधियों के कारण सरकार के कर-संग्रहण में कमी आती है फलत: लोक कल्याणकारी योजनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- धनशोधन के कारण समानांतर अर्थव्यस्था का विकास होता है जिसकी गणना नही की जा सकती, फलत: वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद का आंकलन नही हो पाता है।
- टैक्स हैवन देशों ने पूँजी को अत्यधिक गतिशील बनाया है, जिसने देशों को पूंजी आकर्षित करने के लिये कर दरों को कम करने के लिये मजबूर किया है।
समाधान
- हाल ही में, लगभग 140 देशों के बीच 15% की दर से न्यूनतम वैश्विक कार्पोरेट कर लगाने का समझौता किया गया है। इससे धन-शोधन गतिविधियों में कमी आने की संभावना है।
- बैंकिंग गोपनीयता को समाप्त कर विभिन्न बैंकों को अपने खाताधारकों की अवैध वित्तीय गतिविधियों के बारे में संबंधित प्राधिकरण को सूचित करना चाहिये, जिससे धन-शोधन जैसी अवैध गतिविधियों पर अंकुश लगाया जा सके।
- विदेशी पूँजी के प्रवाह पर टोबिन टैक्स लगाना चाहिये ताकि इस पर अंकुश लगाया जा सके।
- सरकार द्वारा धन-शोधन निवारण अधिनियम (Prevention of Money Laundering Act) को कठोरता से लागू किया जाना चाहिये, साथ ही असंगठित क्षेत्र की अपेक्षा संगठित क्षेत्र पर ध्यान देने की अधिक आवश्यकता है, जो इन गतिविधियों में अधिक लिप्त हैं।
- सरकार द्वारा विभिन्न देशों के साथ दोहरा कराधान समझौता (DTAA- Double Taxation Avoidance Agrement) किया जाना चाहिये ताकि अवैध वित्तीय प्रवाह पर अंकुश लगाया जा सके।
निष्कर्ष
अवैध वित्तीय प्रवाह पर अंकुश लगाने हेतु सरकारों तथा अन्य वैश्विक समूहों ने प्रयास किये है। तथापि ये गतिविधियाँ मुख्यतः बड़े राजनेताओं व शक्तिशाली लोगों से जुड़ी हुई हैं, जो स्वयं सरकारी तंत्र का हिस्सा हैं। ऐसे में विभिन्न सरकारों की राजनैतिक इक्छाशक्ति के मध्यम से ही इन गतिविधियों पर अंकुश लगाया जा सकता है।