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MSME क्षेत्र: चुनौतियाँ और सरकारी प्रयास

(प्रारम्भिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास, गरीबी, समावेशन, जनसांख्यिकी, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल; मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3: विषय- भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से सम्बंधित विषय, समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय)

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs) क्षेत्र पिछले पाँच दशको में भारतीय अर्थव्यवस्था में एक अत्यधिक जीवंत एवं गतिशील क्षेत्र के रूप में उभरा है। इस क्षेत्र ने भारत की अर्थव्यवस्था को आर्थिकमंदी के समय मंदी में फँसने से बचाया था। कुल मिलाकर यह क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था के लिये रीढ़ की हड्डी जैसा किरदार निभा रहा है। वर्तमान समय में यह क्षेत्र कुछ विशेष दिक्कतों व चुनौतियों का सामना कर रहा है।

पृष्ठभूमि:

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग (एम.एस.एम.ई.) क्षेत्र को विश्व भर में विकास के इंजन के रूप में जाना जाता है। दुनिया के कई देशों ने इस क्षेत्र के विकास के सम्बंध और सभी सरकारी कार्यों में समन्वय की देखरेख के लिये एक नोडल एजेंसी के रूप में एम.एस.एम.ई. विकास एजेंसी की स्थापना की है। भारत के मामले में भी मध्यम उद्योग स्थापना को एक अलग नियम के अंतर्गत परिभाषित किया गया है जो कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) विकास अधिनियम, 2006 (02 अक्टूबर, 2016 से लागू) है।

1. सूक्ष्म उद्योग की परिभाषा (Definition of Micro Industries):-जिन उद्योगों में निवेश एक करोड़ से कम एवं टर्नओवर 5 करोड़ से कम है उन्हें सूक्ष्म उद्योग कहा जायेगा।
2. लघु उद्योग की परिभाषा (Definition of Small Industries):- जिन उद्योगों में निवेश 10 करोड़ से कम एवं टर्नओवर 50 करोड़ से कम है उन्हें सूक्ष्म उद्योग कहा जायेगा।
3. मध्यम उद्योग की परिभाषा (Definition of Medium Industries):-जिन उद्योगों में निवेश 20 करोड़ से कम एवं टर्नओवर 100 करोड़ से कम है उन्हें मध्यम उद्योग कहा जायेगा।

MSMEs के साथ जुड़े विषय:

  • एम.एस.एम.ई द्वारा जी.डी.पी. में 20% का योगदान देने और लगभग 110 मिलियन श्रमिकों को रोज़गार देने के बावजूद, इसे अधिक उत्पादक और प्रतिस्पर्धी बनाने के लिये एक दूरगामी वसाहसिक नीति बनाने में सरकार विफल रही है।
  • एक बड़ी समस्या यह है कि एम.एस.एम.ई.क्षेत्र का आकार बड़ा नहीं हो रहा है और उनकी गतिशीलता में भी कमी आ रही है। अनुमानित कुल 6 करोड़ उद्यमों में से 99% सीमित आकांक्षा वाले सूक्ष्म उद्यम ही हैं।
  • संरचनात्मक प्रतिस्पर्धा की कमी इनसे जुड़ा मूल मुद्दा है।

संरचनात्मक चुनौतियों का समाधान:

आकार

  • यदि हम भारत के सबसे बड़े कपड़ा समूह (क्लस्टर)तथा बांग्लादेश के सबसे बड़े समूह पर विचार करें। तिरुपुर में 70% से अधिक इकाइयाँ,10 से कम कर्मचारियों वाली सूक्ष्म उद्यम हैं, जबकि बांग्लादेश के नारायणगंज में केवल 20% इकाइयों में 10 से कम कर्मचारी कार्य करते हैं।
  • यह कारक बांग्लादेश में क्लस्टर को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाता है और बांग्लादेश के निर्यात को भारत की तुलना में तेज़ी से बढ़ने में मदद करता है।
  • हालाँकि बांग्लादेश की परिस्थितियाँ कई अन्य मामलों में अनकूल भी हैं,लेकिन यह संरचनात्मक अंतर महत्त्वपूर्ण है।

आकार और उत्पादकता के बीच सम्बंध:

  • OECD द्वारा उद्योगरत MSMEs के उत्पादकता से जुड़े आँकड़े बताते हैं कि मध्यम फर्मों (50-250 कर्मचारियों वाली फर्में) की उत्पादकता सूक्ष्म फर्मों (<9 कर्मचारियों) की तुलना में 80-100% अधिक हो सकती है।
  • बड़े पैमाने पर कार्य करने से उन्हें कौशल में सुधार करने के लिये लोगों को बेहतर प्रौद्योगिकी और प्रक्रियाओं में व नवाचार में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित करता है।
  • जितनी ज़्यादा प्रतिस्पर्धा होती है कम्पनी उतनी आगे बढती है और अक्सर देखा गया है कि अनेक छोटी कम्पनियाँ भी उच्च प्रतिस्पर्धा की वजह से विश्वस्तर पर बहुत आगे तक गई हैं।
  • क्षमताओं और उत्पादकता में वृद्धि और सुधार, किसी भी देश की औद्योगिक संरचना की गतिशीलता के लियेअत्यंत ज़रूरी है।
  • सूक्ष्म-उद्यमों की यह गतिशीलता चीन की असाधाराण औद्योगिक सफलता के मुख्य कारणों में से थी, यद्यपि मीडिया में इसे रिपोर्ट नहीं किया गया।

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों का भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान:

  • वर्तमान में MSMEs के द्वारा भारत में लगभग12 करोड़ लोगों को रोज़गार प्राप्त हुआ है।
  • MSMEs, भारत के कुल निर्यात में करीब 45% योगदान देते हैं।
  • MSMEs, भारत के विनिर्माण-सकल घरेलू उत्पाद में 6.11% का योगदान देते हैं, सेवा क्षेत्र से मिलने वाली GDP में 25% का योगदान देते हैं।
  • इस क्षेत्र ने लगातार 10% से अधिक की वार्षिक वृद्धि दर को बनाए रखा है।
  • देश के सकल घरेलू उत्पाद में इस क्षेत्र का योगदान लगभग 8% का है।
  • MSMEs की बहुत सी इकाइयाँ ग्रामीण क्षेत्रों में भी स्थित हैं जिसके कारण गाँवों से शहरों की ओर पलायन रुका है।

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) के लिये आर्थिक पैकेज 2020 में घोषित मुख्य बातें:

  • जो MSMEs सक्षम हैं, लेकिन कोरोना की वजह से दिक्कत में हैं, उन्हें कारोबार विस्तार के लिये 10,000 करोड़ रुपये के फंड ऑफ फंड्स के माध्यम से सहयोग दिया जाएगा। यह विभिन्न MSMEs को इक्विटी फण्ड के तहत फंडिंग उपलब्ध कराएगा।
  • तीन लाख करोड़ रुपए तक के कोलेटरल फ्री ऑटोमेटिक लोन MSME को बिना गारंटी के दिये जाएंगे। इस स्कीम का लाभ 31 अक्तूबर 2020 तक लिया जा सकता है।
  • इस लोन को चुकाने की समय सीमा चार साल की होगी और मूलधन चुकाने के लिये12 महीनों का अतिरिक्त समय दिया जायेगा। पहले एक साल में मूलधन चुकाने की ज़रुरत नहीं होगी।
  • जो MSME अच्छा कारोबार कर रहे हैंऔर विस्तार करना चाहते हैंलेकिन विस्तार करने के लिये फण्ड नहीं हैं उनके लिये भी फंड ऑफ़ फंड्स बनाया जा रहा है। इससे पचास हज़ार करोड़ की इक्विटी आएगी।
  • इस आर्थिक पैकेज से 45 लाख MSMEs को फायदा मिलेगा।

MSMEs की मुख्य चुनौतियाँ:

  • आँकड़ों का अभाव:
    • भारत में MSMEs सामान्यतः अत्यंत लघु स्तर पर कार्य करते हैं व अधिकांश पंजीकृत नहीं हैं। इनमें से अधिकतर के किसी प्रकार के खाते नहीं हैं एवं वेवस्तु और सेवा कर (GST) देने या अन्य नियमों का पालन सक्रिय रूप से नहीं करते।
    • इससे वे कुछ कर तो बचा लेते हैं किन्तु पंजीकरण न होने के कारण आवश्यकता के समय सरकार उन तक नहीं पहुँच पाती जिससे वे सब्सिडी आदि से वंचित रह जाते हैं। कोविड-19 के समय यह विशेष रूप से देखा गया।
  • आर्थिक चुनौतियाँ:वर्ष 2018 में अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (International Finance Corporation- IFC) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, MSME क्षेत्र को उनकी कुल आवश्यकता का एक-तिहाई (लगभग 11 लाख करोड़ रुपए) से कम ऋण ही उपलब्ध हो पाता है।
    • MSMEs अपना अधिकांश ऋण अनौपचारिक स्रोतों से प्राप्त करते हैं इसी वजह से रिज़र्व बैंक इनमें तरलता बढाने को लेकर ज़्यादा उपाय नहीं कर पाता।

इसके अलावा भी कुछ अन्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं। जैसे-

  • उत्पादन का छोटा पैमाना
  • पुरानी तकनीक का इस्तेमाल
  • आपूर्ति श्रृंखला की अक्षमताएँ, बढ़ती हुई घरेलू और वैश्विक प्रतिस्पर्धा
  • कार्यरत पूँजी की कमी
  • समय पर बड़ी और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से व्यापार प्राप्त नहीं होना।
  • अपर्याप्त कुशल कार्यशक्ति

आगे की राह:

इस तरह के मुद्दों के साथ बने रहने तथा बड़े और वैश्विक उद्यमों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लियेएम.एस.एम.ई. को अपने अभियान में नवीन दृष्टिकोण अपनाने की ज़रूरत है। उन्हें एक मज़बूत तकनीकी आधार, प्रतिस्पर्धा की भावना और खुद को पुनर्गठित करने की प्रबल इच्छाशक्ति की ज़रुरत है।

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