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बहुप्रतीक्षित पुलिस सुधार

(प्रारंभिक परीक्षा : भारतीय राज्यतंत्र और शासन – लोकनीति और अधिकार सम्बंधी मुद्दे )
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 : शासन व्यवस्था– पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, घटी कुछ घटनाओं, जैसे- तमिलनाडु के एक ज़िले में दलित पिता और पुत्र की पुलिस हिरासत में संदिग्ध मौत तथा हाथरस बलात्कार मामले ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है, जिसने पुलिस सुधारों की माँग को आवश्यक बना दिया है।

पृष्ठभूमि

भारत के प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश का अपना अलग पुलिस बल है। संविधान के अनुच्छेद- 246 के तहत पुलिस राज्य का विषय है। राज्य सरकारें पुलिस अधिनियमों, नियमों तथा विनियमों का निर्माण करती हैं तथा जिन राज्यों ने अपने पुलिस अधिनियम पारित नहीं किये हैं, वे केंद्रीय पुलिस अधिनियम द्वारा शासित होते हैं।

राष्ट्रीय पुलिस आयोग (National Police Commission - NPC)

  • भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुलिस आयोग का निर्माण वर्ष 1977 में किया गया था, जिसमें पुलिस संगठन, इसकी भूमिका, कार्य, जवाबदेही, जनता के साथ सम्बंध, पुलिस के कार्यों में राजनीतिक हस्तक्षेप तथा शक्तियों के दुरूपयोग सम्बंधी मूल्यांकन के सन्दर्भ में व्यापक टर्म्स ऑफ़ रिफरेन्स (TOR) तैयार किये गए थे।
  • आयोग द्वारा वर्ष 1979 और 1981 के मध्य 8 रिपोर्ट तैयार की गईं, जिनमें मौजूदा पुलिस संरचना में व्यापक सुधारों का सुझाव दिया गया।

पुलिस व्यवस्था की वर्तमान चुनौतियाँ

  • राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी पुलिस सुधारों में एक महत्त्वपूर्ण बाधा हैं।
  • पुलिस संगठन में संवेदनशील कार्यसंस्कृति का अभाव है।
  • राजनेताओं-अपराधियों-पुलिस की मज़बूत साठगांठ।
  • श्रमशक्ति की कमी।
  • आधुनिक तकनीक का अभाव।
  • मामले या सूचनाओं से सम्बंधी जानकारी के संग्रहण हेतु एक एकीकृत केंद्रीय व्यवस्था का अभाव।
  • पुलिस के पास आधुनिक हथियारों और वाहनों की कमी है।
  • बढ़ता भ्रष्टाचार।
  • पेशेवर कार्यप्रणाली का अभाव।

महत्त्वपूर्ण सुझाव

  • राष्ट्रीय पुलिस आयोग द्वारा पुलिस के खिलाफ शिकायतों की निष्पक्ष और न्यायपूर्ण जाँच हेतु एक ऐसी व्यवस्था के निर्माण पर बल दिया जाए, जिसमें विभागीय अधिकारियों और एक स्वंतत्र प्राधिकरण द्वारा पूछताछ और विश्लेषण के पश्चात् रिपोर्ट तैयार की जाए।
  • निम्नलिखित मामलों की जाँच अनिवार्य रूप से होनी चाहिये –
    • पुलिस हिरासत में महिलाओं का कथित बलात्कार।
    • पुलिस हिरासत में हुई मौत या गम्भीर चोट (Grievous Hurt)।
    • गैर कानूनी सभाओं को हटाने में पुलिस फायरिंग में 2 या 2 से अधिक व्यक्तियों की मौत।
  • पुलिस के आपराधिक न्यायिक प्रणाली के सभी विभागों द्वारा समन्वय तथा दक्षता से कार्य करने हेतु राज्य स्तर पर एकीकृत व्यवस्था के निर्माण की आवश्यकता है, जो समय-समय पर व्यापक निगरानी और सुधारात्मक उपाय लागू कर सके।
  • पुलिस को राजनीतिक हस्तक्षेपों (पुलिस अधिकारीयों के चयन, उनके स्थानांतरण या निलम्बन सम्बंधी तथा विभिन्न आपराधिक मामलों में) से मुक्त रखते हुए निष्पक्षता से सेवा प्रदान करनी चाहिये तथा सेवा उन्मुख कार्यों/भूमिका (Service Oriented Role) के लिये पुलिस को निरंतर प्रशिक्षित किया जाना चाहिये।
  • सुभेद्य वर्गो के मामलों में पुलिस द्वारा संवेदनशील व्यवहार किया जाना चाहिये और थर्ड डिग्री टॉर्चर प्रणाली के उपयोग को कम किया जाना चाहिये।
  • महिलाओं तथा बच्चों से सम्बंधित मामलों की जाँच में महिला अधिकारियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होनी चाहिये।
  • पुलिस संगठन में सुधार हेतु परामर्श और निगरानी सम्बंधी कार्यों तथा पुलिस प्रशासन हेतु बजटीय प्रबंधन के लिये एक केंद्रीय पुलिस समिति (Central Police Committee) के गठन की आवश्यकता है।
  • पुलिस अधिनियम, 1861 को एक नए पुलिस अधिनियम से प्रतिस्थापित किये जाने की आवश्यकता है।
  • इन सुधारों को न्यायपालिका द्वारा केंद्र और राज्य स्तर पर अनिवार्य रूप से लागू करना चाहिये।
  • पुलिस आयोग की प्रमुख सिफारिशों को अभी तक लागू नहीं किया गया है। नेताओं और नौकरशाहों ने अपने निहित स्वार्थों हेतु पुलिस प्रणाली पर मज़बूत नियंत्रण स्थापित कर रखा है।

निष्कर्ष

देश में प्रत्येक बड़ी घटना के बाद पुलिस सुधारों के लिये आयोग और समितियाँ गठित की जाती हैं परंतु इन आयोग और समितियों की अनुशंसाएँ अभिलेखागार तक ही सीमित रहती हैं। हालाँकि कुछ स्वंतत्र और निष्पक्ष विचार रखने वाले व्यक्ति या संस्थाओं द्वारा समय-समय पर पुलिस सुधार की माँग विभिन्न मीडिया माध्यमों के ज़रिये उठाई जाती है।

प्री फैक्ट्स :

  • एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की एक रिपोर्ट (2018) के अनुसार, 1580 सांसद और विधायक अपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं।
  • ADR निष्पक्ष गैर सरकारी संगठन है जो चुनाव और राजनीतिक सुधारों के क्षेत्रों में कार्य करता है यह संगठन भारतीय राजनीति में पारदर्शिता, जवाबदेही, धन और बल की शक्ति के प्रभाव को कम करने का प्रयास करता है।
  • राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल (CHRI) एक स्वंतत्र और निष्पक्ष गैर लाभकारी तथा अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन है। वर्तमान में इस संस्था के 53 सदस्य राष्ट्र हैं तथा इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।

स्रोत : द हिन्दू

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